और आँखें खुल गई
एक जंगल के निकट एक महात्मा रहते थे। वे बड़े अतिथि-भक्त थे। नित्यप्रति जो भी पथिक उनकी कुटिया के सामने से गुजरता था, उसे रोककर भोजन दिया...
और आँखें खुल गई
पूर्णत्व
हमसे आगे हम
सोलह श्रृंगार
कठिनाईयां
अपूरणीय क्षति
एक हमसफर ....
जो पास है वही खास है।
डर के आगे जीत है
बढ़ता फैशन, घटते संस्कार
आधुनिक सच
नाच न जाने आंगन टेढ़ा
"माँ की ममता"
मां तुम बहुत याद आती हो
नमक का दारोगा
खुशी का रिमोट
दो बैलों की कथा
छुट्टी वाला रविवार कब आएगा
जीवन एक संघर्ष
अतिथि सत्कार