तुम हो किंचित निकट यहीं
तुम हो किंचित निकट यहीं महेन्द्र मुकुंन्द पिय! तुम हो किंचित निकट यहीं.......... ऐसा होता आभास मुझे। मृदु-गंध-पवन तन छू मेरा, देकर जाती...
तुम हो किंचित निकट यहीं
भीगी रातें
When shadow disappear
मैं कवि हूं …
WE & THEY
मौन अखरता है।
घर की याद
जग में जीना
तमाशा
संबंध सुहाना है
FALL OF A FEATHER
आत्ममंथन
मौन
लबों की मुस्कुराहट
आम लडकी
आईना
NATURE AND ITS ELEMENTS
Donkey No, You are gentle
मंथन मन का
दुख की सरिता गहरी