नताशा हर्ष गुरनानी
स्नेहा आज अपने दोनों जुड़वा बच्चो रोहन और अवनी की दसवीं के परीक्षा परिणाम की पत्री हाथ में लेके अतीत में खोई हुई थी।
वो पढ़ाई में हमेशा अव्वल रही, सभी विषय वो बहुत मन से पढ़ती थी पर उसका सबसे पसंदीदा विषय हिंदी ही रहा, वो हिंदी में हमेशा सबसे ज्यादा नंबर ले आती, कहानी, कविताएं लिखना उसे पसंद था तो वो भी हिंदी में लिखती और जब उसे सराहना मिलती तो उसका उत्साह और बढ़ जाता।
उसने हिंदी में ही एम ए, बी एड, एम फिल किया और यूनिवर्सिटी में हिंदी की व्याख्याता बन बच्चो को हिंदी ही पढ़ाती, उसका हिंदी बोलने का अंदाज भी इतना अच्छा होता कि लोग मंत्र मुग्ध हो उसको सुनते थे।
समीर से शादी हुई, समीर मल्टी नेशनल कंपनी में चीफ इंजीनियर की पोस्ट पर थे।
दोनों का वैवाहिक जीवन बहुत सुखद रहा और उनके इस प्यारे संसार में दो फूल रोहन और अवनी ने दस्तक दी।
परिवार में सब सुख था रोहन और अवनी को पढ़ने के मिशनरी स्कूल में उनका दाखिला कराया गया।
रोहन तो फिर भी अंतर मुखी था पर अवनी सब कुछ मुंह पर कह देती थी।
स्नेहा दोनो बच्चों को पढ़ाई कराती बाकी सब विषयों पर तो वो ध्यान देते पर अवनी हिंदी विषय पर पढ़ने में आना कानी करती और ध्यान नही देती।
जब परीक्षा के परिणाम आए तो बाकी विषयों में दोनो बच्चों के अच्छे नंबर आए थे पर हिंदी में रोहन के थोड़े कम आए थे और अवनी तो बाउंड्री पर पास हुई थी।
स्नेहा उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश करती पर अवनी पढ़ती ही नही एक दिन अवनी ने कहा आई डोंट लाइक हिंदी।
ये सुन स्नेहा हैरान रह गई और सोचने लगी अपने देश की मातृ भाषा को अवनी पसंद नही करती।
पर अब उसे अपनी मां के पसंदीदा विषय और अपनी मातृ भाषा को पसंद ही नही, प्यार भी करना होगा।
अब स्नेहा अवनी को खेल-खेल में हिंदी पढ़ाने लगी, फिर अक्षरों का जाल बना देती जिसमे स्वर और व्यंजन होते उस जाल से शब्द बनाने होते।
दोनो बच्चो को ऐसे पढ़ना अच्छा लगने लगे और वो शब्द बना देते।
फिर स्नेहा खाना खिलाते समय कमरे में रखी किसी भी चीज का नाम बोल देती और पुछती ये कहां लिखा है दोनो बच्चे उस शब्द को ढूंढते और इस तरह वो हिंदी पढ़ने और लिखने लगे और अब उन्हें हिंदी अच्छी लगने लगी।
इसका पता वार्षिक परीक्षा के परिणाम में चला जब दोनो बच्चो के नंबर हिंदी में भी बहुत अच्छे नंबर आए।
पर स्नेहा ने फिर भी उनको बाकी विषयों के साथ-साथ हिंदी भी नियम से पढ़ाई और आज दोनो बच्चो की दसवीं की परीक्षा में हिंदी में बाकी विषयों से ज्यादा नंबर आए है। ये उसके संयम और मेहनत का फल था।
अपनी मातृ भाषा बोलने और लिखने में हमेशा गर्व महसूस होना चाहिए।
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