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नूर

डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव

माँ आप जल्दी से अच्छी सी साड़ी पहन लो और हाँ जरा सा फेस पैक लगा लो, आपका रंग बहुत गहरा होता जा रहा है। अपनी पत्नी नीरजा को आवाज लगाते हुए श्री ने कहा-" सुनो! माँ को जरा सी क्रीम पाउडर भी लगा देना। आज शाम मेरी कंपनी के मालिक चाय पर आ रहें हैं।" माँ बिल्कुल स्मार्ट लगनी चाहिए।"
जी.... इतना कहकर नीरजा सासु माँ के कमरे की तरफ बढ़ गयी। वह सासु माँ को साड़ी बदलने का, चेहरा चमकाने का पुरजोर प्रयास कर रही थी। मगर सासु माँ अपनी जिद्द पर अड़ी थी -"मुझे कुछ नहीं करना। जब शृंगार करने की उम्र थी तब क्रीम पाउडर न लगाया... जा तू अपना नाश्ते की तैयारी कर ... हाँ श्री को कह दियो कि अगर माँ को माँ कहने में शर्म आती है तो मैं अपने कमरे से बाहर नहीं आऊंगी। जब मेहमान चले जाएं तब बुला लेना बाहर.... ।" नीरजा तो सासु माँ की आदत से भलीभाँति परिचित थी।
10 साल में वह खूब समझती थी कि माँ नारियल सी हैं ऊपर से कड़क... अंदर से ममता का सागर.... आखिर 30 सालों तक अध्यापिका के रूप में काम किया है। शिक्षक तो स्वभाव से ही अनुशासित होते हैं। वह सासु माँ के कहे अनुसार बाहर आकर किचन में काम निबटाने लगी। कुछ ही देर में श्री के साथ लगभग उसी की हमउम्र समीर ने प्रवेश किया।
नीरजा ने चाय नाश्ते की मेज सजा दी। कुछ देर में समीर ने कहा- "श्री! क्या आज माताजी कहीं गयी हुई हैं? उनके भी दर्शन हो जाते तो.... " श्री को बोलने से पहले ही नीरजा ने कहा- "माँ अपने कमरे में ही हैं। मैं बुलाती हूँ।" समीर ने कहा- "अरे! मैं वहीं माताजी से मिल लूँगा। उन्हें परेशान क्यों करना? श्री संकोच के साथ माँ के कमरे की तरफ चल दिया।
श्री ने आवाज लगाते हुए कहा- "माँ! देखो आपसे समीर सर मिलने आए हैं।" माँ किताब को एक तरफ रखते हुए बोली- "आओ बेटा! मुझे लगा कि बच्चों के बीच में मैं क्या बात करूंगी बस इसीलिए.... समीर ने सादर प्रणाम कहा और चरण स्पर्श करने के बाद साथ पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो बातों-बातों में माँ ने गीता के श्लोक, कबीर की साखियाँ कितने प्रेरक प्रसंग कह डाले।
समीर ने कुछ याद करने की कोशिश करते हुए पूछा - "आप लोग यहाँ कितने समय से हैं?" माँ ने कहा- "यहाँ आए तो चार पाँच साल ही हुए हैं। पहले हम आगरा में रहते थे। वहीं सरकारी स्कूल में मैंने 25 सालों तक पढ़ाया। समीर एकाएक बोल उठा - "क्या आप दीपिका मैम..... माँ हैरान होते हुए बोली... तुम मेरे नाम से कैसे.... मैम मैं भी उसी स्कूल में सिमर मैम की कक्षा में था। आपने मुझे कभी पढ़ाया नहीं पर मैंने आपको बहुत सुना है। आज भी वही आवाज, वही उर्जा वही विश्वास.... ये सब सुनकर माँ के चेहरे का विश्वास दोगुना हो गया। समीर ने चलते-चलते श्री से कहा - "मैम के ज्ञान की लौ से आज भी उनके चेहरे पर अनोखा नूर है।" श्री माँ की प्रशंसा सुनकर कुछ देर पहले की बात को याद कर मन ही मन खुद को छोटा महसूस कर रहा था।

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