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शैफ

''तुम बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाती हो। लाजवाब!!'' नितिन ने खाने के बाद अपनी चचेरी छोटी बहन नीलम की पाक-कला की प्रशंसा करते हुए कहा।
''धन्यवाद भाई साहब! आप तो जानते ही हैं बचपन से ही खाना खाने और बनाने का कितना शौक है मुझे।'' - नीलम ने खुश होते हुए कहा।
''ये तो सच है। तुम खाने में जान डाल देती हो।''- नितिन ने हामी भरी।
''कोशिश करती हूँ भैया। बल्कि, आदित्य भी मुझे आजकल रसोई में मदद करने लगा है। मेरी ही तरह इसे भी बड़ा मज़ा आता है नये-नए पकवान बनाने में।"- नीलम ने अपने बेटे आदित्य की ओर इशारा करते हुए कहा।
''अरे! क्या बात कर रही हो ?'' - बड़े भैया ने आश्चर्य से पूछा ?
''हाँ भाईसाहब! सब्जियाँ साफ़ करने और काटने में, केक, इडली के घोल बनाने में, और भी कितनी ही कामों में मदद कर देता है। पिज़्ज़ा और अलग-अलग तरह के सैंडविच, कई तरह के मिल्कशेक ये सब तो खुद ही बना लेता है। जब भी कुछ बनाती हूँ तो क्या-क्या सामान और मसाले डाल रही हूँ, कितनी मात्रा में डाल रही हूँ, सब जानना चाहता है।" - नीलम ने गर्व से बताया।
''सच में? क्या ये सच है आदित्य? जो भी तुम्हारी मम्मी कह रही हैं?'' - मामाजी ने अपने दस वर्षीय भांजे की ओर देखते हुए पूछा।
''जी मामाजी!'' - आदित्य ने विनम्रता से उत्तर दिया। ''बल्कि मैं तो और भी ज्यादा सहायता करना चाहता हूँ लेकिन मम्मी नहीं चाहती कि मैं ज्यादा गैस स्टोव के आस-पास रहूं। कहती हैं बच्चों के साथ सावधानी बरतना ज़रूरी है।"
''सही कहती है तुम्हारी माँ। लेकिन ये बताओ, ये लड़का होते हुए भी तुम्हें खाना बनाने का चस्का कहाँ से लग गया? नीलम को बचपन से शौक है लेकिन हम भाइयों ने तो कभी कोई इच्छा नहीं दिखायी। और वैसे भी लड़के तो तभी ये सब करते हैं जब और कोई चारा ही न हो। जब पढ़ाई या नौकरी करते समय घर से दूर अकेले रहना पड़े तो कभी चाय-कॉफी या मैगी बना ली। बस इतना ही। बाकी खाने के लिए या तो टिफ़िन लगा लिया कहीं से या किसी होटल से मंगा लिया।
और घर में तो शादी के पहले माँ और शादी के बाद पत्नी होती ही है इस सबके लिए। अरे खाना तो लड़कियां बनाती हैं।'' - नितिन ने लगभग मज़ाक बनाते हुए कहा।
नीलम और आदित्य उनकी बात सुनकर दंग रह गए। नीलम सोच रही थी कि अपने शौक के बारे में मामाजी से ऐसा सुनकर आदित्य को कैसा लग रहा होगा। जवाब भी आदित्य से ही मिला।
''ठीक है मामाजी। ये बताइये - हमारे देश का सबसे प्रसिद्ध शेफ कौन है?-'' उसने बड़ी गंभीरता से मामाजी से पूछा।
मामाजी ने कुछ सोचते हुए कहा - ''एस. के."
एक आदमी!!, एक पुरुष!! - हैं ना, मामाजी?- आदित्य ने चहकते हुए कहा।
मामाजी कुछ न बोले।
अब ये बताइये, हम जहाँ भी होटल, रेस्त्रां, ढाबे आदि में खाना खाने जाते हैं, वहां क्या देखते हैं? अधिकतर वहां खाना बनाने वाले और हमें परोसने वाले कौन होते हैं? आदमी ही ना? - आदित्य ने थोड़ा गर्व से कहा इस बार।
अब मामाजी आदित्य की और देखकर मुस्कुरा रहे थे। भांजा सिर्फ खाना ही नहीं, बातें बनाने में भी होशियार है।
''तो फिर ये ''खाना तो लड़कियां बनाती हैं''- वाली बात कहाँ से सच हुयी?'' - आदित्य ने थोड़ा रूककर प्रश्न किया।
अपने छोटे से भांजे के मुँह से इतनी तर्कसगंत बात सुनकर मामाजी का मुँह बंद हो गया और आँखें खुल गयीं।

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