मीनाक्षी चौहान
दूनी खुशी हो रही है, एक तो मन मुताबिक डील फ़ाइनल हो गई दूसरे तीन दिन बाद अपने घर वापस लौट रहा हूँ। ये खुशगवार मौसम, ठंडी-ठंडी हवाएँ, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और सामने एकदम खाली सी सड़क। बस दौड़ा दी गाड़ी। थोड़ी खुशी थोड़ी मस्ती और थोड़ी स्पीड का मेल तो होता ही बेजोड़ है। अपनी मस्ती में मस्त गाड़ी चला रहा था कि ना जाने झुरमुट से कहाँ वो ट्रैफ़िक पुलिस का सिपाही प्रकट हो गया। गाड़ी रुकवा ली मेरी। "आपका चालान किया गया है।"
"चालान?.......चालान किस बात का सर जी?"
"ओवर स्पीड का।"
"अब सड़क खाली थी तो मैंने स्पीड जरा बढ़ा दी। मानता हूँ स्पीड थोड़ी ज्यादा थी।"
"ज्यादा?........अस्सी से ऊपर दौड़ रही थी आपकी गाड़ी। जानते तो होंगे यहाँ स्पीड लिमिट चालीस है। जगह-जगह साईन बोर्ड लगे हैं पढ़े नहीं लगता है आपने।"
"अरे सर जी जाने भी दीजिये। मामला रफा-दफा करिये।" मैनें बात वहीं दबाने की गुजारिश की।
"आप हमारे बड़े साहब से बात कर लो वो बैठें हैं पेड़ के नीचे। बड़े भले आदमी हैं।" उसने चीड़ के पेड़ की ओर इशारा किया। गाड़ी लॉक करके हम दोनों उस ओर चल दिये।
"साब जी स्पीड गन कैमरा में इनकी गाड़ी की स्पीड अस्सी से ऊपर आयी है।" बड़े अफसर को उसने सारी कहानी अच्छे से समझा दी।
"सब कुछ सुनसुना कर वो बड़े अफसर मुझसे बड़ी ही तहजीब के साथ बोले," हजार का फ़ाइन तो आपको भरना ही होगा।"
"सर, मैं कोई टूरिस्ट थोड़े ही ना हूँ, बिजनेसमैन हूँ। यहाँ अक्सर आता-जाता रहता हूँ। आप तो समझदार है।"
"फैमिलीमैन तो हैं ना, ...........जैसे मेरी फैमिली मेरी राह देखती है जाहिर सी बात है आपकी फैमिली भी आपका इन्तज़ार कर रही होगी।
ये पहाड़ हैं, हादसा होते देर नहीं लगती। फ़ाइन तो आपको पूरा देना पड़ेगा। समझिये ये चालान सजा नहीं एक सबक है।" उस बड़े अफसर ने तो लेक्चर झाड़ना शुरु कर दिया। मेरा पूरे हजार रुपये का चालान काट कर ही माना। अब भरने पड़े मुझे पूरे के पूरे पैसे। डेशबोर्ड पर चालान की पर्ची पटक कर मन ही मन उसे कोसते हुए आगे बढ़ा कि अब गाड़ी ने रेंगना शुरु कर दिया।
आगे जाम लगा हुआ था वजह पूछी पता चला तेज स्पीड के चलते एक वैन कंट्रोल् खो कर नीचे खाई में जा गिरी। कलेजा धक्क से हो गया, हलक सूख गई। जाम से निकलते ही सबसे पहले पानी पिया। पानी पीते-पीते नज़र डेशबोर्ड पर गई जहाँ वो सबक की पर्ची फड़फड़ा रही थी। उठाकर रख लिया वो सबक अपने धड़कते हुए दिल के पास बनी जेब में।
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