मधु मधुमन
पहले ख़ुद बेकली ढूँढते हैं।
फिर सुकूं की घड़ी ढूँढते हैं।
बख़्त में ही न हो शय जो अपने
हम वही, बस वही ढूँढते हैं।
जाने क्या हो गया है जहां को
लोग हर चीज़ फ़्री ढूँढते हैं।
दाग़ होते हैं चेहरे पे अपने
आइने में कमी ढूँढते हैं।
हम भी अहमक हैं जो इस सदी में
पहले सी सादगी ढूँढते हैं।
दोष तो है हमारा ही जो हम
सब में संजीदगी ढूँढते हैं।
प्यार मिलता नहीं हर किसी को
ढूँढने को सभी ढूँढते हैं।
दर्द दिल का सँभलता नहीं जब
लोग तब शाइरी ढूँढते हैं।
छोड़ ‘मधुमन‘ ये बातें पुरानी
बात कोई नई ढूँढते हैं।
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