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कसूर

हरिशंकर गोयल

रोहित अपनी दुकान पर बैठा-बैठा मोबाइल में कुछ वीडियो देख रहा था। आजकल बहुत सारी लड़कियां पैसा कमाने के चक्कर में ऊलजलूल वीडियो बनाकर वायरल करती रहती हैं। लोग उन वीडियोज को देखते रहते हैं और आगे फॉरवर्ड करते रहते हैं। रोहित खाली समय पास करने के लिए ऐसे वीडियो देख लेता है। इन दिनों उसका धंधा थोड़ा मंदा चल रहा है। जबसे कोरोना आया है तबसे धंधा उठ ही नहीं पाया है। पर बेचारे दुकानदार कहां जायें? उनका धणी धोरी कौन है?
इतने में एक सिपाही उसकी दुकान पर आया। सिपाही को देखकर हर आदमी एक बार तो सकपका ही जाता है। आखिर पुलिस ने अपनी इमेज इतनी "शानदार" बना रखी है कि लोग सपनों में भी पुलिस को देखना नहीं चाहते हैं। सिपाही ने आदतन अपनी शैली में पूछा
"रोहित तेरा ही नाम है क्या" ?
रोहित को लगा कि पता नहीं कौन सी आफत आ गई है सिपाही के रूप में? उसने डरते-डरते कहा "हां, मेरा ही नाम है। पर बात क्या है"? उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं।
"बात तो मैडम समझायेगी तुझे। चल, थाने बुलाया है मैडम ने"
"कौन सी मैडम? कौन सा थाना? मैंने किया ही क्या है जो मैं थाने चलूं? रोहित डर गया था।
"तू नीतू मैडम को नहीं जानता? महिला थाने की थानेदार हैं नीतू मैडम। चल, शटर गिरा और मेरे साथ चल। इसी में तेरी भलाई है।" सिपाही अकड़ कर बोला।
रोहित कुछ आगे कहता इससे पहले रोहित के पापा केदारनाथ दुकान पर आ गये। सिपाही को दुकान पर देखकर वे भी चकरा गये। आंखों ही आंखों में केदारनाथ और रोहित में बातचीत हुई। केदारनाथ सिपाही से बोला, "साहब अभी धंधे का टाइम है। आजकल वैसे भी धंधा थोड़ा मंदा चल रहा है और यदि दुकान बंद कर थाने जायेंगे तो उसका असर हमारे धंधे पर भी पड़ेगा। दुकान बंद कर के हम लोग थाने पहुंच जायेंगे।”
सिपाही अपनी जिद पर अड़ा रहा। केदारनाथ ने कहा, "एक बार अपनी मैडम से मेरी बात करवा दीजिए। यदि वे जिद करेंगी तो हम अभी चल देंगे।"
सिपाही ने नीतू मैडम से केदारनाथ की बात करवा दी। नीतू मैडम मान गईं। शाम को दुकान बंद कर रोहित, केदारनाथ और रोहित का बड़ा भाई मोहित तीनों महिला थाने पहुंच गये। उनकी पेशी नीतू थानेदार के सामने हुई।
"ये सरिता कौन है? लगता है कि इसे आप लोगों से विशेष लगाव है। तभी तो आप सबके खिलाफ परिवाद पेश किया है उसने।" नीतू मैडम अपनी गोल आंखें घुमाते हुए बोलीं।
सरिता का नाम सुनकर तीनों को लकवा मार गया। "ओहो, तो ये सब सरिता का किया धरा है? इतनी उम्मीद तो नहीं थी उससे।" रोहित के मन में खयाल आया।
केदारनाथ सरिता का नाम सुनकर बोल उठे "अजी सरिता बहू है हमारी। आजकल पीहर में रह रही है। वहीं नौकरी करती है। बताइये मैडम बात क्या है आखिर?" केदारनाथ जैसे तैसे बोला।
"बात तो बहुत बड़ी है। सरिता ने रोहित पर आरोप लगाया है कि वह दारू पीकर उसे रोज मारता पीटता है। उससे दहेज मांगता है। रोज सट्टा खेलता है। सट्टे में उसने सब कुछ बरबाद कर दिया, अब उसकी तनख्वाह के पीछे पड़ा है।" नीतू मैडम एक-एक शब्द चबा-चबा कर बोल रही थी।
"ऐसी बात नहीं है मैडम। सब मनगढ़ंत बातें हैं। सरिता और रोहित की शादी हुए चार साल हो गये हैं। इन चार सालों में सरिता मुश्किल से चार महीने रही होगी हमारे यहां। गर्मी और सर्दियों की छुट्टियों में ही आती थी हमारे घर में। पर अब तो साल भर से आई भी नहीं है। इसलिए मारपीट का आरोप तो वैसे ही खारिज हो जाता है। सट्टा क्या होता है, हम में से कोई नहीं जानता है। और रही बात बहू की तनख्वाह की, तो उसने पहले दिन ही रोहित को कह दिया था कि उसकी तनख्वाह केवल उसकी है। पति की आय में उसका पूरा अधिकार है लेकिन पत्नी की आय में पति का कोई अधिकार नहीं है। बड़ा अजीब चलन है आज का। भगवान ने हमें सब कुछ दे रखा है, हमें उसकी तनख्वाह में से एक भी रुपया नहीं चाहिए मैडम। हम तो उसे देते ही रहते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हमें देने लायक बनाये रखे।
उसे हर बार लेने जाते हैं और छोड़ने जाते हैं तब हर बार टैक्सी करके जाते हैं। वह खर्चा भी हम ही उठाते हैं। यहां पर भी वह घर का कुछ भी काम नहीं करती है। छुट्टयों में आती थी तब भी कोई काम नहीं करती थी। दिन भर मोबाइल में ही लगी रहती थी। पता नहीं क्या करती थी वह मोबाइल में? न जाने किस-किस से बात करती थी वह। हमें तो कभी-कभी शक होता था कि कहीं इसका अफेयर तो नहीं है किसी के साथ? पर कभी कहा नहीं उससे। वह जब भी यहां आती है, खूब शॉपिंग करती है। सारा पैसा रोहित ही देता है। हमें तो आज तक समझ नहीं आया है कि वह आखिर चाहती क्या है हमसे?" कहते-कहते केदारनाथ की हिलकी बंध गई।
"वह तो यह भी कहती है कि रोहित के संबंध अपनी भाभी से हैं इसलिए वह रोहित से दूर रहती है।" नीतू मैडम ने विस्फोट करते हुए कहा।
नीतू मैडम की बात सुनकर रोहित का चेहरा एकदम से बुझ गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि सरिता उस पर इतना घिनौना आरोप लगायेगी। वह नीची गर्दन करके बैठा रहा। जवाब केदारनाथ ने ही दिया।
"पता नहीं किस जन्म में हमने इतने पाप किये हैं जो हमें ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं। भाभी मां समान होती है मैडम। ऐसा घिनौना आरोप लगाते हुए उसे जरा सी भी लाज नहीं आई? उसने न केवल अपने पति का अपमान किया है बल्कि एक स्त्री के चरित्र को भी दागदार बना दिया है। यह आरोप केवल रोहित पर नहीं है अपितु मेरी बड़ी बहू संगीता पर भी है। मेरी बड़ी बहू को हमारे घर में आए हुए करीब 7 वर्ष हो गये हैं। उसने हमारे घर को स्वर्ग बना दिया है और सरिता ने इसे नर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आदमी आदमी का फर्क होता है। एक आदमी घर को स्वर्ग बना देता है तो दूसरा स्वर्ग को भी नर्क बना देता है। हमने तो उससे तलाक लेने के लिए कोर्ट में अर्जी भी लगा दी है।"
"ये जज साहब कौन हैं?" नीतू मैडम ने घूरते हुए पूछा।
"अरे मैडम, असली जड़ तो वही हैं। सरिता के मामाजी हैं वे। डिस्ट्रिक्ट जज हैं इसलिए अपने पद का बेजां फायदा उठा रहे हैं वे। सब उन्हीं का किया धरा है। उल्टी सीधी पट्टी पढ़ाते रहते हैं और हम लोगों को धमकाते रहते हैं। अब आप ही बताओ मैडम कि हम क्या करें?"
नीतू मैडम ने सब कुछ सुनकर थोड़ी देर सोचा। फिर कहने लगी, "मुझे तुम लोगों की कहानी में कोई रुचि नहीं है। मुझे भी नौकरी करनी है। जज से पंगा कौन ले? हमारे डीसीपी साहब का हुक्म है कि मामले को सैटल करवाना है। बताओ कितना रुपया दे सकते हो?" आखिर में असल बात पर आ ही गई मैडम जी।
"मैडम, हम तो गरीब आदमी हैं। इसकी शादी में दोनों तरफ का सारा खर्चा हमने ही किया था। बहू को 25 तोला जेवर चढाया था। उसे भी वह अपने साथ ले गई। अब हमारे पास क्या रखा है देने के लिए?"
"जज साहब ने एक करोड़ रुपए के लिए कहा है। यदि एक करोड़ रुपए उसे दे दो तो तुम्हारा केस रफा दफा कर सकती हूं नहीं तो जिन्दगी भर सब लोग जेल की चक्की पीसते रहोगे।" उसने गुस्से से कहा ।
नीतू मैडम के इतना कहने से वहां पर एकाएक निस्तब्धता छा गई। बाद में रोहित बोला, "मैडम जी, आप तो हमें जहर देकर मार डालो। वैसे भी अब जीकर क्या करेंगे? इतने पैसे हैं नहीं और बिना पैसों के तलाक होगी नहीं। अकेले ही रहना है तो क्यों नहीं जेल में ही रहा जाये? अगर मुकद्दर में जेल की रोटी खाना ही लिखा है तो फिर ऐसा ही सही। मेरा इतना ही कसूर है कि मैंने सरिता से विवाह किया। उस अपराध की सजा यदि मेरे परिवार की तबाही है तो मुझे वह भी मंजूर है। मैं किसी जज के या आपके दबाव में आकर कोई फैसला करने वाला नहीं हूं। बाकी ऊपर वाले की मर्जी।" रोहित का गला भर आया था।
नीतू थानेदार को अपने डीसीपी का आदेश मानना था इसलिए उसने रोहित और केदारनाथ को गिरफ्तार कर लिया और बाकी घरवालों को गिरफ्तार कर थाने लाने के लिए पुलिस फोर्स भेज दी।

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