मोना जैन
अभी नई-नई ही तो आई थी शुमी यहां। हैरानी सिर्फ उसे इस बात की थी उस आफिस में चालीस के स्टाफ के बीच सिर्फ छह लड़कियां ही थी।
ऊपर से सबके कामों में विभिन्नता होने के कारण सब के अलग-अलग केबिन थे।
शुमी तो एक दम से भयग्रस्त सी हो गई कि कहीं उसके घर वाले मानेंगे, ऐसी जगह पर काम करने देने के लिए।
खैर जो भी हो शुभी ने अपने मन में कुछ सोचा और बाहर जाने लगी।
तभी रोमी की नजर उस पर गई उसने कहा दीदी जरा यहां आइये, शुमी को लगा जैसे कि वो कोई मन के भेद जानने वाला जादूगर हो।
उसने कहा दीदी अभी आप बाहर मत जाओ।
किसी भी निर्णय पर जाने से पहले दो मिनट मेरी बात सुन लीजिए।
मैं जानता हूं दीदी आप क्या सोच रहे हैं कि इतने सारे पुरुषों के बीच में सिर्फ थोड़ी सी ही स्त्रियां?
यहां रहकर आपको अजीब लगेगा। अरे, दीदी हम सब यहां एक फैमिली की तरह रहते हैं। जहां जरूरत पड़ने पर सब आपस में एक-दूसरे की मदद करते हैं। सारे त्योहार मिलजुल कर मनाते हैं।
आप को यहां इतने सारे भाई मिल जायेंगे हमें एक बहन और हमारी पुरानी दीदियों को एक और सहयोगी। रोमी, शुमी को सब बातें समझा ही रहा था कि इतने में रोमी को पीछे ताली वजने की आवाज आई उसने मुड़कर देखा तो बास ताली बजा रहे थे।
बास ने पास आकर रोमी की पीठ थपथपाई और कहा तुम जैसे लोग अगर हर जगह हो तो महिलाओं को कभी भी झिझक का सामना नहीं करना पड़ेगा।
रोमी की बातों ने शुमी का हौसला बढ़ाया और उसने दूसरी आफिस ज्वाइन करने का फैसला त्याग दिया।
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