अभिलाषा कक्कड़
पंडित बृजमोहन जैसे ही नहा कर आये तो स्वयं बहुत ही को असहज सा महसूस करने लगे। पत्नी मंगला ने पूछा कि क्या हुआ तो कहने लगे कि कुछ अच्छा नहीं लग रहा, जी बहुत घबरा रहा है। तो आज की सारी पूजा कैंसल कर दीजिए। माना कि शादियों का समय चल रहा है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आप एक दिन में दो-दो शादियों करवायें मंगला समझाने के इरादे से बोली। अरी पगली हमारे लिए भी यही वक़्त तो है चार पैसे कमाने का बेटियाँ शादी के लायक़ हो रही हैं। बहुत जल्दी अब उनके हाथ भी पीले करने हैं। यह कहते पंडित जी तकिये पर गिर गये। पति की हालत देख मंगला ज़ोर ज़ोर से रतन और रेशम को बुलाने लगी। दोनों भाग कर आई, रतन पिता की गिरती हालत देख पड़ोसी को गाड़ी में ले जाने के लिए बुला ले आई। अस्पताल जाते ही डाक्टर ने बताया कि इन्हें दिल का दौरा पड़ा और देखते ही देखते एक ओर आघात ने पंडित जी के शरीर का आधा हिस्सा मार दिया।
परिवार पर अचानक से संकटों का पहाड़ टूट पड़ा। घर का मुखिया और एक मात्र आमदनी का सहारा, बीमारी भी ऐसी कि चार दिनों में जाने वाली नहीं। पंडित जी की दो बेटियाँ रतन और रेशम दोनों ही बहुत संस्कारी रूप और गुणों से सम्पन्न थी। माँ को घर चलाने में कई कामों में संघर्ष करते देख रतन जो कि बड़ी बेटी उसने अपने कालेज की आख़िरी पढ़ाई घर में बैठकर ही पूरी करने का फ़ैसला लिया और ट्यूशन चलाकर माँ की मदद करने लगी। धीरे-धीरे चरमराती हुईं आर्थिक स्थिति नियन्त्रण में आने लगी। फिर एक दिन ख़बर सुनकर पंडित जी के एक बहुत ही पुराने मित्र पंडित सुबोध कांत उनसे मिलने आये। मित्र की ऐसी हालत देखकर उनका चित दुख से भर गया। पैसे से परिवार की मदद कर सके ऐसी उनकी माली हालत ना थी फिर भी मन में एक विचार लेकर वहाँ से निकले कि उनसे जितना बन पड़ेगा वो अपने मित्र के परिवार की अवश्य मदद करेंगे। फिर एक दिन सुबोधकांत बड़ी बेटी रतन के विवाह हेतु एक प्रस्ताव लेकर आयें। बहुत ही उच्च कोटि के विचारों वाले लोग हैं, दहेज धूमधाम से शादी खर्चा सामने बिठाकर लड़की देखना इन सबसे कोसो मील दूर उनकी बस हाँ है। ऐसा सुनते ही मंगला की आँखें चमक गई और बोली लड़का क्या करता है?
सुबोध कांत - लड़का हरिप्रसाद पेशे से वकील हैं अच्छी ख़ासी उसकी वकालत चल रही है। लड़का बहुत ही नेक और उदार दिल का इन्सान है। ऐसा सब कहते हैं। बस छोटी सी कमी है दिखने में वो बहुत सामान्य है। रतन बिटिया जैसा सुन्दर नहीं है। सोच लो अच्छे से आपका परिवार और परवरिश की बात सुनकर उनकी तो हाँ है पाँच सात लोग लेकर आयेंगे और यही घर में मैं ही ब्याह करवा दूँगा।
मंगला - लड़कों की शक्ल सूरत नहीं कामकाज और घर परिवार देखा जाता है क्यूँ जी आप क्या कहते हैं? बिस्तर पर लेटे पति की तरफ़ देखकर बोली पति ने भी हाँ में सिर हिला दिया। तो ठीक है हमारी भी हाँ है।
रतन भी सब सुन रही थी। जानती थी माँ ने जो फ़ैसला ले लिया उससे पीछे हटने वाली नहीं और घर के हालात भी यही कहते हैं कि चुपचाप जो हो रहा है उसे स्वीकार करो। ब्याह का दिन तय हुआ और एक छोटी सी बारात पंडित जी के द्वार निश्चित दिन पर आ पहुँची। दुल्हन बनी रतन को जब बाहर लाया गया तो वकील साहब देखते ही रह गये। शक्ल सूरत में वो रतन के आसपास भी नहीं थे। श्यामल रंग मोटी चपटी नाक आँखों पर मोटा चश्मा, देखते ही उन्हें फेरे लेने से पहले रतन से बात करना ज़रूरी लगा। दोनों को एक कमरे में बिठाया गया। वकील साहब ने कहा मैं नहीं चाहता कि तुम्हें बाद में पछतावा हो कि तुम्हारे साथ धोखा हुआ है। मैं दिखने में तुमसे काफ़ी कम हूँ। तुम चाहो तो अपना फ़ैसला बदल सकती हो मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगेगा। रतन को वकील साहब की यह पहली सादगी पसन्द आई और उसने कहा कि मैं दिल से इस शादी के लिए तैयार हूँ आप तनिक भी चिन्ता ना करें। पूरे रस्मों रिवाज के साथ रतन की विदाई हुई और पति देव के घर में कुछ ही देर में पहुँच गई।
सुबह रतन की जब नींद खुली तो सुबह के दस बज चुके थे। घड़ी देख कर रतन झटके से उठी और जल्दी से तैयार होकर रसोई में सासु माँ के पास चली गई। उनके पाँव छूने के लिए झुकी तो सास ने दिल से लगा लिया। और जल्दी से बहू के लिए चाय बनाकर ले आई और बातें करने लगी। हरिप्रसाद हमारी एकमात्र औलाद है। शादी के दस साल तक हम बच्चे के लिए तरसते रहे। ना जाने कितने तीर्थ स्थानों मंदिरों में जाकर मन्नतों के बाद ईश्वर ने हमारी पुकार सुनी और हमें माता-पिता बनने का सुख मिला। ईश्वर की ही देन हैं।
हरिप्रसाद और जैसे उसी का ही रूप हैं। दिल का बहुत ही साफ़ और नेक दिल इन्सान है। इन्सान तो क्या एक छोटे से जानवर का भी दुख नहीं देख सकता। ह्रदय इसका प्रेम से भरा हुआ है। सबकी मदद करता है। किसी को निराश नहीं करता। इस जन्म का तू मुझे नहीं पता लेकिन पिछले जन्म में ज़रूर अच्छे करम किये होगे जो हमें हरिप्रसाद जैसा पुत्र मिला। वो जल्दी से बेटी अपनी मन की बात नहीं कहता तू अब उसकी जीवनसंगिनी है अब तुझे ही उसे समझना होगा इन बातों के साथ घटों सास बहू बैठी बतियाती रही।
अगले दिन माँ ने बहू बेटा को मंदिर जाने के लिए भेजा। रतन बहुत अच्छे से तैयार हुई। पति के साथ उसका पहला गमन था। मंदिर ज़्यादा घर से दूर नहीं था। दोनों बातें करते हुए साथ-साथ चलने लगे। अभी कुछ कदम चले ही थे कि रतन हैरान हुई देख कर पति ने रास्ते में जो भी चीज़ पैरों के लिए हानिकारक लगी जैसे काँच पत्थर काँटे झाडी सब अपने हाथ से हटाये। गली के कुकर छोटे पिल्ले सबको बैठकर प्यार किया। जो भी रास्ते में मिला सबसे बड़े प्रेम अदबी से मिला। रतन पति की यह उदारता देख कर मुस्कराती रही। मन से वह भी कोमल भाव रखती थी लेकिन पति के आगे वो बहुत कम थे। बीतते वक़्त के साथ रतन घर के अन्दर की बातें जानने लगी। घर का खर्चा पिता जो कि एक रिटायर्ड अध्यापक थे उनकी पेंशन से चलता था। पति की पुरानी सी गाड़ी घर के लिए कम लोगों की मदद के लिए ज़्यादा थी। राशन सामग्री का बहुत हिस्सा दर पर आये ज़रूरत मदों भिखारियों को खिलाने में जाता था। पति की वकालत अच्छी जा रही थी लेकिन पैसा घर में कहीं आता नज़र नहीं आ रहा था। सासु माँ से पुछने पर पता चला कि हरिप्रसाद ग़रीब निर्बल लोगों के मुक़दमे की फ़ीस नहीं लेता।
बचपन में किसी मजबूर पर ज़ुल्म होता देखता तो आकर कहता मैं बड़ा होकर इनके इन्साफ़ के लिए लड़ूँगा और देखो ईश्वर ने इसे वकील बनाकर इसका लक्ष्य पूरा किया। पति ज़रूरत से ज़्यादा सत्कर्मी था लेकिन एक बात रतन देख कर खुश हुई हरिप्रसाद में कुछ तो आम लोगों जैसा भी था, वो था कपड़ों से प्यार। कपड़े साफ़ सुथरे स्त्री किये हो ऐसी तमन्ना उनकी आँखों में सदा दिखती। कपड़ों पर दाग छींटा ना लगे इस बात से सदा सजग रहते। पति की इस इच्छा का रतन अच्छे से ख़्याल रखने लगी।
बीतते वक़्त के साथ ज़िन्दगी आगे बढ़ी। रतन और हरिप्रसाद दो बच्चों के माता-पिता बने। हरिप्रसाद के माता-पिता एक के बाद एक इस दुनिया से विदा ले गये। रतन पूरी तरह अपनी गृहस्थी सम्भालने में व्यस्त हो गई। उसके लिए उसके बच्चे और उनकी ख़ुशियों से बढ़कर कुछ नहीं था। पति की नेकियाँ जब राहों में आकर खड़ी होने लगी तो रतन एकदम से स्वार्थी हो गई। पति को दुनिया से काटने के लिए झूठ बोलने लगी बातें छुपाने लगी। मुफ़्त में मुक़दमे लड़ने पर पति से झगड़ा करती। कोई मदद माँगने आता है तो ना करने में देर ना लगाती। उसे भगवान नहीं इन्सान चाहिए था अपना पति अपने बच्चों का पिता चाहिए था। धीरे-धीरे हरिप्रसाद दुनिया से कट कर अपने घर और बच्चों तक सीमित रह गया। रतन बहुत खुश थी। फिर एक दिन बहुत मुबारक दिन आया रतन की छोटी बहन रेशम की शादी का, रतन जोरशोर से तैयारियों ख़रीदारियों में लग गई। सबके लिए कपड़े ख़रीदे पति के लिए भी क़ीमती पेट कोट टाई सूट ख़रीद कर लाई। सूट देखकर हरिप्रसाद बहुत खुश हुए। जाने में समय से बहुत देर पहले ही तैयार होकर बैठ गये और ना जाने कितनी बार ख़ुद को आईने में देखकर आये। तभी रतन ने आकर कहा कि शगुन डालने का लिफ़ाफ़ा नहीं मिल रहा और थोड़ी देर में गाड़ी भी आने वाली है। हरिप्रसाद बोले तुम लोग तैयार हो मैं लेकर आता हूँ। लिफ़ाफ़े लेकर जब वापिस लौट रहे थे सामने दलदल में एक छोटे से सूअर का बच्चा धँसा हुआ था और बाहर निकलने का निरन्तर प्रयत्न कर रहा था। दलदल के बाहर कीचड़ से सनी उसकी माँ भी खड़ी थी। शायद अपने बच्चे को बचाने में अपनी सब कोशिशों में हार चुकी थी। वकील साहब को आसपास एक छोटे से बच्चे के अलावा कोई दिखाई नहीं दिया। उन्होंने अपना कोट उतार कर उस बच्चे को पकड़ाया और स्वयं उस मासूम की मदद के लिए कीचड़ में उतर गये। दलदल काफ़ी गहरा था लेकिन वकील साहब भी आसपास के उठे हुए पत्थरों को पकड़कर बच्चे तक पहुँच गये। इधर जाने के लिए गाड़ी आ गई और पति का कुछ पता नहीं तो घबराकर रतन फ़ोन करने लगी। फ़ोन कोट की जेब में था, बच्चे ने बताया कि जिन अंकल का यह फ़ोन है वो दलदल में फँसे हुए हैं।
रतन सुनते ही दौड़ीं, बच्चे भी माँ के पीछे दौड़े। वहाँ देखते रतन जड़ सी हो गई पति दूर दलदल से एक छोटे से सुअर के बच्चे को उठाकर आ रहे थे ख़ुद गिर गिर कर भी उस बच्चे को सँभाले हुए थे। आज पति की करूणा में रतन भी बह गई। गला रूँध गया आँखों से आँसू बह गये। अन्तरिम में सभी वासनाओं की विसंगति टूट गई। प्रेम की ऐसी पावन गंगा उसके घर में स्वयं परमात्मा ने बहाईं थी और वो उसमें दूषित सोच की गंदगी डाल रही थी। इस दलदल में हरि की जान भी जा सकती थी, वहाँ कोई बचाने वाला भी नहीं था लेकिन उनके लिए इनसानियत पहले थी। बच्चे की माँ भी सबके साथ खड़ी हरिप्रसाद का इन्तज़ार कर रही थी। किनारे पर आते ही रतन ने भागकर पति को हाथ का सहारा दिया। फिर उन्होंने नल के नीचे उस बच्चे की सारी गंदगी साफ़ की रतन सामने खड़ी सब देख रही थी और भीतर ही भीतर पति के सद्भाव के आगे झुकी जा रही थी।
पत्नी को देखकर वकील साहब बोले माफ़ करना रतन तुम्हारा लाया क़ीमती सूट ख़राब हो गया। भीगी आँखों से रतन बोली ऐसा ना कहिए मैंने आज जो पाया है उससे अधिक क़ीमती कुछ भी नहीं। भगवान का शुक्र आप सही सलामत हैं। सुनकर वकील साहब बोले मुझे कुछ कैसे हो सकता था रतन मेरे साथ उस माँ की ममता थी। अपने बच्चे के लिए उसकी प्रार्थना थी और मैं भी उस प्रार्थना के साथ बाहर आ गया। आज इस माँ का दर्द दूर करके जो ख़ुशी मिली वो मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता और फिर साड़ी तो तुम्हारी भी इस नेकी में रंग गई वकील साहब ने मज़ाक़ के मूड में कहा तो एक हंसी की खिल खिलाहट से रौनक़ भर गई। सूअर माँ और बच्चा जैसे लाखों दुआयें देकर चल दिए और रतन अपने घर में में एक मंदिर जैसा दिल लेकर वापिस लौट आई।
****
Komentar