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सौदा

महेश कुमार केशरी

"मुझे ये सब कुछ ठीक नहीं लग रहा है? "जग्गू बाबू ने निर्विकार भाव से निर्लिप्त होकर जैसे अपने आप से कहा। लेकिन, पता नहीं कैसे ये बात प्रमोद बाबू के कानों में चली गई थी। वो बैठक से बाहर जा रहें थें। शायद किचेन से प्लेट लेने। और तभी जग्गू बाबू की बात प्रमोद बाबू के कानों में पड़ी थी। आज प्रमोद के बड़े बेटे प्रयाग की शादी की बात चल रही थी। और लड़की वाले आज प्रयाग के फैमिली से मिलने आये थें। ऋचा नोएड़ा में किसी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है। वैसे प्रमोद बाबू का बेटा प्रयाग भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, मुंबई में। चौबीस लाख का सालाना पैकेज मिलता है। शादी के बाद प्रयाग, ऋचा को लेकर मुंबई में रहेगा। एक बड़ा फ्लैट खरीदा है, उसने मुंबई में साढ़े चार करोड़ का।
"नहीं, कुछ नहीं, ऐसे ही।" जग्गू बाबू टालने की गरज से बोले।
लेकिन, प्रमोद ने अपने पिता के मन को टटोला - "ठीक है, आप मुझे अपना नहीं समझते तो मत बताईये।"
"अरे, नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। तुम बैठो मेरे पास।"
और जग्गू बाबू ने प्रमोद का हाथ खींचकर वहीं सोफे पर अपने पास बिठा लिया और बोले - "तुम जानते हो मुझे, सबसे खराब बात क्या लगी कि लड़की वालों ने प्रयाग को सैलरी सीट दिखाने को कहा। क्या उनको हमारी बात पर विश्वास नहीं था? और प्रयाग को देखो उसने भी अपनी सैलरी सीट तपाक से दिखा दिया। पुराने समय में लोग लड़के का खानदान, गुण-दोष, चाल-चरित्र देखते थें। अभी के समय में लोग सैलरी सीट देखने लगे हैं। आदमी में लाख ऐब हों। सब तनख्वाह छुपा लेती है। आखिर, ये कैसा समय आ गया है? जब हम सौदा करने लगे हैं। रिश्ते नहीं।"
"अरे पापा, आप भी किन पुराने ख्यालातों में गुम रहने वाले इंसानों में से हैं। अभी जमाना बदल गया है। लोग शान से दिखावा करते हैं। ऋचा के माँ-बाप ने भी तो ऋचा की सैलरी सीट दिखाई थी। ऋचा का सालाना पैकेज बारह लाख का है। जब लड़की वाले होकर सैलरी सीट दिखा सकते हैं। तो हम लड़के वाले होकर सैलरी सीट क्यों ना दिखायें? आखिर हम उनसे कम हैं क्या किसी बात में। प्रमोद बाबू ने गर्व के साथ सीना तानकर कहा था। और, आजकल हर जगह ऐसा ही हो रहा है। सब लोग ऐसा ही कर रहें हैं।"
इतना कहकर वो उठने को हुए। तभी जग्गू बाबू ने प्रमोद को टोका -"अभी मेरी बात खत्म नहीं हुई है, बैठो।"
प्रमोद बाबू वहीं सोफे पर फिर बैठ गये।
जग्गू बाबू ने प्रमोद का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा - "बेटे, प्रमोद इसी लालच और दिखावे ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है। अभी प्रयाग की शादी नहीं हुई है। और वो हमसे अलग एक फ्लैट खरीदकर रहने के लिये तैयारी कर रहा है। आखिर, इसी लालच और दिखावे ने आदमी को स्वार्थी और कमजोर बना दिया है। एकल परिवार की सोच बढ़ा दी है। पता नहीं इतना पैसा लोग कमाकर क्या करेंगें? जिसको देखो वही पैसे की पीछे भाग रहा है। एक मिनट रूककर साँस लेने की फुरसत भी नहीं है आज के आदमी के पास। दिनरात पैसा कमाते हैं। बच्चों को पढ़ाते हैं। बच्चे देश-विदेश में जाकर सेटल हो जाते हैं। फिर, वहीं के होकर रह जाते हैं। ना कभी आना ना कभी जाना। कभी गलती से दो दिनों के लिये आ भी गये। तो माँ-बाप से मिलने आने से पहले ही जाने का टिकट भी करवा लते हैं। दो-दिन के लिये आते हैं तो अपनी व्यस्तता दिन भर गिनवाते रहते हैं। आज अलाने से मीटिंग कैंसल करनी पड़ी है। आज फलाने बच्चे का स्कूल मिस हो गया।
कभी दो मिनट फोन पर ढँग से बात हो गई, तो हो गई। नहीं तो वो भी नहीं। इतनी आपा-धापी वाली जिंदगी हमें तो कभी रास नहीं आई बेटा। सही मायने में हमारा पुराना ग्रामीण ढाँचा वाला पारिवारिक जीवण ही अच्छा था। शादी में जाते थें, तो महीनों रहकर आते थें। गाँव में हँसी-कहकहे महीनों गूँजते रहते थें। संबंधो में एक तरह की मिठास थी, अपनापन था। वो सबकुछ अब नहीं बचा है। संयुक्त परिवार था। तब लोग साथ मिल-जुलकर रहते थें। खाते थे, पीते थें। आज की तरह एक-दूसरे को पछाड़कर आगे बढ़ने की होड़ तब हममें नहीं थी। आज कल शादी नहीं हो रही है, बेटा। सौदा हो रहा है सौदा। एक बात और मैं कहना चाहूँगा, तुमसे।
मेरा क्या है बेटा मैं तो कुछ दिनों का मेहमान हूँ। तुम अपना देख लो, अपनी पत्नी का देख लो। बूढ़ापा तुम्हें अकेले ही काटना है।
अच्छा, अब चलता हूँ। चार बज गये हैं। थोड़ा घूमकर आता हूँ।"
जग्गू बाबू सोफे की टेक लेकर खड़े हुए। और छड़ी खटखटाते हुए बाहर हवाखोरी के लिये निकल पड़े।
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