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सनकी

महेश कुमार केशरी


नहीं इस बार कभी जोर से दिल नहीं धड़का थाl ना ही कभी कोई ऐसी खुशी महसूस हुई थीl जैसी बीस साल पहले उसको देखकर होती थीl कभी-कभी सोचता हूँ कि वो शायद एक लड़कपन के दिनों की एक गलती थीl जब उसे दिल दे बैठा थाl
तारा कब की जा चुकी थीl तारा से इस तरह उसने कभी बेरूखी से बात नहीं की थीl जितना वो आज उससे बेरूखी कर गयाl और, आश्चर्य ये कि अंगद को किसी तरह का कोई मलाल भी नहीं थाl बल्कि, वो तो खुश थाl अपने उस व्यवहार के लिये कि तारा को सरेआम झाड़ दिया थाl दसियों ग्राहकों के सामनेl उस समय उसके दिमाग के तने स्नायुओं को कितनी राहत मिली थीl
जब उसने तारा से साफ-साफ कह दिया था- "कि नहीं मैम, मैं इस दूकान का मालिक जरूर हूँl लेकिन, मैं भी नियमों से बँधा हूँl माफ कीजिये, मैं आपकी कोई मदद इस मामले में नहीं कर सकता l आपको मैं, एक्सचेंज करने की सुविधा बिल्कुल भी नहीं दे सकताl और, हाँ मैं ऐसा आपके साथ ही नहीं कर रहा हूँl मैं, अपने सभी ग्राहकों के साथ एक जैसा ही व्यहवार करता हूँl नो मतलब, नोl"
उसे खुद भी पता है, कि वो इसी शहर की फोर्टिन-बी कालोनी के सी-ब्लाक में रहती हैl यहाँ तक कि उसने उसका घर भी देखा हैl लेकिन फिर भी वो तारा को पैसे जमा करने के बावजूद भी सामान घर ले जाकर अपनी माँ या भाभी को दिखाने की इजाजत नहीं देताl"
तारा की छोटी बहन कंचन ने अनुरोध किया -"प्लीज, सर मुझे पूरा विश्वास है, कि मेरी माँ और भाभी को ये साड़ी जरूर पसंद आयेगीl प्लीज, सर, सिर्फ एक घँटे के लिये ले जाने दो ना, ये साड़ीl प्लीज मैं तुरंत लौटा दूँगीl "
"रहने दो जिद क्यों कर रही है? जब नहीं दे रहें हैं तोl चल कहीं दूसरी जगह देखते हैंl यही एक दूकान थोड़े है, पूरे मथुरा मेंl"
यही ऐंठन तारा में आज से बीस साल पहले भी थीl आज भी उसकी ऐंठन कम नहीं हुई हैl निहायत बद-दिमाग और कम अक्ल की लड़की है, ताराl अंगद को कभी-कभी अफसोस होता है कि उसको प्यार भी हुआ था, तो इस कम अक्ल की बेवकूफ अक्खड़ लड़की सेl वो भी तो गधा ही हैl उसकी अक्ल पर ही पर्दा पड़ गया थाl जो तारा से प्यार कर बैठा थाl"
इन बीस सालों में क्या-क्या बदला है? तारा कितनी खूबसूरत थी, बीस साल पहलेl अब तो गोरा चेहरा काला पड़ गया हैl चेहरे पर पहली वाली मुस्कुराहट नहीं रहीl तारा शक्ल से तो खूबसूरत थीl लेकिन, धोखेबाज लड़की हैl सामान लेने आती थी तो कैसे मुसकुराती थीl मैं तारीखों को कैलेंडर में मार्क करके रखता थाl उसकी पसंद की सोनपापडी,पेठा अमावट सारी चीजें उसके आते ही पैक कर देता थाl लेकिन, उसकी मुस्कुराहट धोखा दे गई थीl"
मैं कभी-कभी सोचता हूँ, कि मैं किससे प्रेम करता था? उससे या उसके चेहरे सेl अगर उसको मुझसे प्रेम नहीं थाl तो वो मुझे देखकर मुस्कुराती क्यों थी?
नहीं शायद मैं ही गलती पर थाl सामान्य शिष्टाचार वश भी तो लोग मुस्कुराते हैंl
ये भी तो हो सकता है, कि उसकी तरफ से ना होl चलो कोई बात नहींl ना हो तो ना ही सहीl लेकिन कम-से-कम संकेत तो देना ही चाहिये थाl
लेकिन, लड़की है बेचारी कैसे संकेत देती? साथ में उसकी माँ भी तो होती थीl
इधर चेहरा कैसा काला पड़ गया है, तारा काl ठीक ही हुआl भगवान के घर देर है, अंधेर नहींl ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होतीl
मेरा लेटर उसने अपने बाप को दिखाया थाl मेरा भगवान गवाह है कि मैनें भगवान से कभी कम श्रद्धा नहीं रखी तारा परl मेरा खुदा तो तारा ही थीl मैनें तो शादी तक के बारे में सोच लिया थाl अपने बच्चों के नाम तक रख लिये थेंl लेकिन, एक दिन उसने कहा कि नहीं धरती और आकाश कभी नहीं मिल सकतेl
मैनें उसे भरोसा दिलाया था, कि देखो उधर समुंद्र की तरफ जहाँ से सूरज निकल रहा हैl वहाँ, क्षितिज हैl जहाँ धरती और आकाश आपस में मिलते हैंl
उस वक्त तारा हँसी थीl तुम जागती आँखों से सपने मत देखोl क्षितिज कहीं नहीं होताl सब आँखों का भ्रम हैl जैसे रेगिस्तान में मृग-मारिचीका के कारण होता हैl पानी कहीं नहीं होताl केवल पानी के होने का भ्रम होता हैl प्रेम भी कुछ-कुछ वैसा ही होता हैl
फिर, अचानक मुझे याद आया कि उसने अपने बाप के सामने क्या कहा था -"जो, चीज मुझे नहीं लेना होती थी l उसे ये जबरजस्ती दे देते थें l "
"मैं तुमसे आखिरी बार पूछ रही हूँ, कि मैं इसे खरीद कर ले जा रही हूँl अगर पसंद नहीं आयेगी तो वापस कर लोगे ना? "तारा की आवाज में इस बार भी वही अकड़ थीl जो आज से बीस साल पहले हुआ करती थीl
पता नहीं अंगद के दिमाग के तंतु तनते चले गयेl दाँत भींचते चले गयेl दिमाग में खून का रफ्तार दूने वेग से बहने लगाl दिल की धड़कनें फिर बढ़ गईंl पाँव लड़खड़ाने लगेl
उस दिन दूकान में भीड़ भी बहुत ज्यादा थीl दसियों पुरूष और महिला ग्राहकों को निबटा रहा था वोl तभी तारा ने वो सवाल उससे दोहराकर पूछा थाl
"उसकी आवाज अचानक, जोर से चीखीl मैं मोर्चे से एक बार पीछे हट चुका हूँl बहुत चोट खाई थीl उस समय मैने़ंl अब इतना ताब नहीं रहा हैl कि बार-बार मोर्चे पर पीछे हटूँl"
"मैं,सामान की बात कर रही हूँl"
"उस समय भी मैं कोई सामान नहीं थाl आज भी नहीं हूँl बहुत खेल लिया था उस समय तुमने मेरे दिल सेl अब और नहींl तुम लड़कियों की मर्दों के दिलों से खेलने की ये रवायत अब हमेशा के लिये खत्म होनी चाहियेl तुमने मुझे बरबाद कर दियाl"
"मैनें किसी के दिल से नहीं खेला हैl"
"खेला है, मेरे दिल सेl"
"इसका, कोई सबूत है, तुम्हारे पासl"
"पूछो, अपने दिल पर हाथ रखकर, कि तुमने कभी मुझसे प्यार नहीं किया?"
"लो, दिल पर हाथ रखकर कसम खाती हूँ, कि कभी तुमसे प्यार नहीं कियाl"
"मैं, तुमसे प्रेम करता थाl मुझे सालों नींद नहीं आईl किताब पढ़ता था, तो मुझे कुछ समझ में नहीं आता थाl किताबों की इबारत में तुम्हारा ही चेहरा दिखाई पड़ता थाl"
"तुम्हारा, चेहरा पहले की तरह गोरा नहीं रहाl ये काला क्यों पड़ता जा रहा है? तुम इतनी बदसूरत तो कभी नहीं थीl"
"दवाई, रिएक्शन कर गई थीl"
"झूठ, तुम्हें ईश्वर ने सजा दी हैl झूठ बोलने कीl और हमेशा ऐसी सजा तुमलोगों को ईश्वर देगाl अगर फिर मेरे जैसे बेकसों को घोखा दिया तो और बद्दुआएँ लगेंगीl"
"ओह ! क्या सच? मैं अपनी गलती मानती हूँl"
"शायद, तुम ठीक कह रहे होl तभी मेरा चेहरा इतना खराब होता जा रहा हैl ईश्वर ने तुम्हारी आहों की सजा दी हैl"
"क्या, तुमने कभी मुझे बद्दुआएँ थी?"
" धत्, भला, प्रेम करने वाला कभी अपनी प्रेमिका को बद्दुआएँ दे सकता है! बिल्कुल नहीं!"
"सच!"
"सच! तुम्हारी कसम!"
"तुम झूठ बोल रहे होl"
"मैनें ईश्वर से भी ज्यादा तुमसे प्रेम किया है, ताराl प्रेम में आदमी कभी झूठ नहीं बोलताl"
"मैं तुमसे कितनी बार कह चुका हूँl मैं ये एक्सचेंज बिल्कुल भी नहीं करूँगाl तुम्हारे लिये कोई अलग से नियम नहीं बनेगाl समझीं तुमl अब अपना ये वाहियात शक्ल मुझे कभी मत दिखानाl दफा हो जाओ यहाँ सेl कभी मत आना मेरी दूकान पेl जाओ नहीं तो धक्के मार कर निकाल दूँगाl पाजी कहीं कीl चल भाग यहाँ सेl"
तारा और उसकी बहन डरकर दूकान से बाहर निकल गईंl
बाहर आकर कंचन, तारा से बोली - "दीदी, आपको जानता था, वो?"
तारा झेंपते हुए बोली - "पता नहीं कोई सनकी थाl"
उस रात, तारा को सारी रात नींद नहीं आई थीl
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