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अंतिम मुलाकात

संस्मरण

अंतिम मुलाकात

त्रिपुरा सुंदरी

मेरे पिता एक बार दिल्ली आये और उस समय मैं वहां ओखला स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ता था। वह गांव से नवल सिंह के साथ मुझसे मिलने यहां आये थे और सुबह में नौ - दस बजे के आसपास उनको मैंने यूनिवर्सिटी में देखा। दिल्ली आने कि कार्यक्रम शायद उन्होंने आकस्मिक रूप से ही बनाया था और उस समय एसटीडी सेवा शुरू नहीं हुई थी। हमलोग पत्र व्यवहार से ही आपसी बातों का आदान प्रदान किया करते थे। यह 1990-91 के आसपास की घटना होगी। नवल सिंह के छोटे बेटे उदयशंकर उस समय सैनिक अधिकारी के रूप में दिल्ली में ही तैनात थे और इंडिया गेट के पास पंडारा हाउस में रहते थे। अपने पिता नवल सिंह को उन्होंने दिल्ली घूमने के लिए बुलाया था और इसी दौरान नवल सिंह ने पिता जी को भी साथ में दिल्ली चलने के लिए कहा था और इस प्रकार पिता जी दिल्ली आये और दो-तीन दिन नवल सिंह के साथ उदयशंकर जी के घर पर ही ठहरे।
यह जनवरी का महीना था और पिता जी 26 जनवरी के आसपास दिल्ली आये थे। उदयशंकर जी ने इस दौरान राजपथ पर गणतंत्र दिवस का परेड देखने के लिए पिता जी के साथ मेरा पास भी बनवा दिया था। इस दिन यानी 25 जनवरी की रात में मैं भी पंडारा हाउस में ही उदयशंकर जी के आवास पर रुका और सुबह परेड देखने गया।
इस दिन राजपथ पर राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने भारतीय पुलिस सेवा के बिहार कैडर के एक अधिकारी रणधीर वर्मा जो धनबाद में एस.पी. थे उनको मृत्योपरांत देश में वीरता के सर्वोच्च सम्मान अशोक चक्र से अलंकृत किया था। वे धनबाद में बैंक लुटेरों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गये थे। उनकी पत्नी रीता वर्मा ने यह सम्मान ग्रहण किया था। इसके अगले दिन पिता जी के साथ दिल्ली परिवहन निगम की दिल्ली दर्शन बस सेवा से हम दिल्ली के दर्शनीय स्थलों पर घूमने भी गये।
पिता जी इसके अगले दिन मगध एक्सप्रेस से गांव लौट गये थे। नवल सिंह को अपने बेटे उदयशंकर के पास अभी कुछ दिन और रुकना था। पिता जी को ट्रेन में मैं चढ़ाने गया था और उनका स्लीपर क्लास में रिजर्वेशन था। इसके बाद पिता जी से मुलाकात नहीं हो पायी क्योंकि गांव लौटने के चार-पांच महीने के बाद ब्रेन हेमरेज से उनका देहांत हो गया। उनके निधन के बारे में अगले दिन मुझे टेलीग्राम से पता चला और फिर शाम में मगध एक्सप्रेस से बड़हिया रवाना हुआ लेकिन यहां मेरे आने से पहले मेरे बड़े भाई ने उनका दाहसंस्कार कर दिया था।
जिस समय मेरे भाई ने पटना से मुझे टेलीग्राम भेजा था उस समय वह पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती थे और लिहाजा मैं पटना स्टेशन पर उतरकर वहीं गया लेकिन अस्पताल में पिछले दिन भर्ती होने वाले मरीजों की सूची को रजिस्टर में देखकर अस्पताल के लोगों ने पिछले दिन देर रात में उनके देहांत के बारे में बताया। इसके बाद मैं इस अस्पताल के बाहर नेशनल फार्मेसी नामक दुकान पर इस वाकये के बारे में जानकारी प्राप्त करने गया। इसके मालिक नरेंद्र प्रताप सिंह मेरे पिता जी के परिचित थे और पटना में बी. ए. की पढ़ाई के दौरान मेरे पिता जी को इनके पिता सीताराम सिंह ने होम टीचर के तौर पर अपने घर में आश्रय प्रदान किया था और बाद में पिता जी डिप्टी कलक्टर बन गये थे।
नेशनल फार्मेसी के लोगों को पिता जी के देहांत के बारे में पता था और उनमें से कोई आदमी पिता जी के शव वाहन पर साथ गांव भी गया था। उनसे सारी बातें मालूम हुईं। उस समय पानी बरस रहा था और मैं किसी तरह पटना स्टेशन फिर वापस लौटकर आया और आधी रात में लालकिला एक्सप्रेस से बड़हिया पहुंचा और उस समय बिहार में बिजली ज्यादा नहीं रहती थी मैं किसी कुली के साथ अंधेरे में बाजार को पार करने के बाद गांव पहुंचा और बाहर बरामदे में भाइयों को कुछ पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ सोया देखा। मेरे आने की खबर सुनकर मां भी भीतर घर से बाहर निकल आयी और रोने लगी।
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