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अंतिम सीख

रमा शंकर मिश्र

सीबा वर्षो से ज्ञानेश के घर में नौकरानी का काम करती थी। उसको सबसे ज़्यादा लगाव ज्ञानेश के दादाजी से था। दादाजी के तो "हाथ पैर" ही जैसे सीबा थी। घर के काम निपटाकर जो समय बचता वह दादाजी के साथ ही बीतता। कभी-कभी देर रात तक बातें करते-करते सीबा वहीं सो जाती। सीबा के कारण ज्ञानेश के म़म्मी-पापा दादाजी की ओर से निश्चिन्त रहते। ज्ञानेश की दोनों दीदीयां भी सीबा को अपने आगे-पीछे दौडातीं रहती। सीबा दीदी-दीदी कहकर उनको खुश रखती, उसके चेहरे पर जरा भी झल्लाहट नहीं दिखाई देती। सीबा उम्र में उनसे दो-चार साल छोटी थी, रूप-सौन्दर्य में तो सीबा के क्या कहना?
वह ज्ञानेश के दादा-दादी की पुरानी नौकरानी की बेटी थी जिसकी सड़क हादसे में मौत हो चुकी थी। दादा-दादी ने सीबा को अपने पास ही रख लिया। जब तक वह छोटी थी तब तक उसे पढ़ाया, आठवीं कक्षा पास करने के बाद उसे घर के काम में लगा दिया। दादी के देहांत के बाद दादाजी, सीबा को सिर्फ अपनी जिम्मेदारी मानने लगे।
बड़ी दीदी की शादी पर ज्ञानेश घर आया। तब उसने देखा - सीबा के बिना तो घर में किसी का काम ही नहीं चल रहा है। शायद सभी उस पर विश्वास करते हैं; परंतु कम पढ़ी-लिखी होने के कारण कई समस्याओ को सीबा अपनी सूझ-बूझ से सुलझाने का असफल प्रयास करती। उसकी "प्रयास प्रवृत्ति" को ध्यान में रखते हुए ज्ञानेश ने अपने मम्मी-पापा व दादा से कहा कि छोटी दीदी की शादी के बाद, बाजार से सामान लाना, घरेलू हिसाब-किताब रखना, बीमारी में आप लोगों को अस्पताल लेकर जाना, दवाईयों को देख-पढ़कर लाना, छोटे-मोटे bill pay करना जैसे आदि कार्यो को करने में आप लोगों को मुश्किल आएगी? इसलिए सीबा को दसवीं का प्राइवेट फार्म भरवा देते हैं। सीबा भी पढ-लिख जाएगी, हमारा भी काम आसान हो जाएगा। सबको यह बात खूब पसंद आई।
पढ़ाई-लिखाई की बात सुनकर पहले तो सीबा कुछ हड़बड़ाई। बाद में ज्ञानेश के निर्देशानुसार पढ़ाई में रम गयी। इन पांच-छ सालों के अंदर ही छोटी दीदी की भी शादी हो गई। ज्ञानेश भी पढ़ाई पूरी करके जाब पर लगा गया। सीबा ने तो अकेले घर का सारा काम करने के बाद B.A. top class करके सबको हैरान ही कर दिया।
इसी बीच ज्ञानेश की छोटी दीदी के ससुराल पक्ष के एक रिश्तेदार की ओर से सीबा के लिए रिश्ता आया। मम्मी-पापा तो जैसे इस रिश्ते का इंतजार कर रहे थे। अब वे हर हाल में सीबा को निपटा देना चाह रहे थे। पर ज्ञानेश ने एतराज करते हुए कहा- सीबा ये रिश्ता तुम्हें पसंद है, तो वहां तुम्हारी शादी होगी वरना नहीं। सीबा बोली- आप लोगों ने मेरे माता-पिता, भाई-बहन बनकर मुझे शिक्षा जैसे अनमोल रत्न को पाने का मौक़ा दिया। आपसे बड़ा हितैषी कौन हो सकता है मेरा? आप मेरे लिए जैसा घर-वर ढूंढेंगे वह मुझे सहर्ष स्वीकार होगा। ज्ञानेश फिर बोला- सीबा तुम ये ना सोचो कि हमने तुम्हें पढ़ने आदि का मौका दिया, इसलिए हमारे सभी निर्णय तुम्हें स्वीकार होंगे। तुम ये सोचो कि आने वाले जीवन में हम प्रत्यक्ष रूप से तुम्हारे साथ नहीं होंगे। तब तुम्हें हर परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाना पढेगा। अब सीबा को समझ आया कि ज्ञानेश को उसके भविष्य की कितनी चिंता है। दादाजी ने ज्ञानेश से कहा- तुम नई पीढ़ी के हो। वर सहित उसके घर वालों को बुला लो, सीबा की सहमति होगी तो बात आगे बढ़ेगी, वरना नहीं। सीबा की संतुष्टि और सहमति के बाद ज्ञानेश ने उसकी शादी भी अपनी बहिनों के ही समान धूमधाम से की।
सीबा विदाई के समय दादाजी के गले लगकर बहुत देर तक रोती रही। दादाजी ने उसे समझाकर कहा- सीबा! समझाने लायक बातें मैंने पहले ही तुम्हें समझा दी है मुझे संतोष है कि तुम अच्छे घर-परिवार में जा रही हो। एक बात फिर कहता हूं- जैसे तुम यहां रहती थी, ससुराल में भी वैसे ही रहना। यह मेरी अंतिम सीख है।

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