डॉ. पारुल अग्रवाल
दिव्या अपने परिवार से प्रेम करने वाली स्त्री थी। पर उसमें एक खराबी थी कि वो थोड़ा अंधविश्वासी थी। आजकल उसके पति का काम थोड़ा मंदा चल रहा था और बेटे-बेटी बीमार चल रहे थे। ऐसे में उसको लग रहा था कि उसके हंसते-खेलते घर को किसी की नज़र लग गई है। इन सब परेशानियों को दूर करने के लिए वो किसी अच्छे ज्योतिष की खोज में लग गई। वो अक्सर सोशल मीडिया पर जो ज्योतिष पेज़ हैं उनसे अपनी समस्या का निवारण पूछने लगी। अब सोशल मीडिया जहां सबसे बड़ी ताकत वहीं इसके अपने कुछ नुकसान भी हैं। जब वो ज्योतिष पेज़ पर अपनी समस्या पूछती तो वहां पर कई फर्ज़ी हस्तरेखा और जन्मपत्री देखने वाले लोग भी थे। उनमें से ही एक राजेंद्र नाम के आदमी ने भांप लिया कि दिव्या अभी मानसिक रूप से परेशान है और इसको बेवकूफ बनाकर पैसे हड़प सकते हैं।
उसने दिव्या के विषय में सारी जानकारी पता लगाकर सोशल मीडिया के द्वारा निजी संदेश भेजा। उसने संदेश के द्वारा दिव्या को ये बताया कि उसे ज्योतिष विद्या से ये पता चला है कि वो बहुत दुख के दौर से गुजर रही है और अब वो अपनी सिद्धि से उसकी सारी परेशानियां दूर कर देगा। दिव्या को तो जैसे एक सहारा मिल गया। उसने अपने पति और बच्चों की जन्मपत्री दिखाने की बात की। तब उसने बोला कि पूजापाठ और जन्मपत्री दिखाने की दक्षिणा लगेगी क्योंकि जन्मपत्री के साथ वो उपाय के रूप में पति और दोनों बच्चों के लिए एक सुरक्षा कवच भी बनाकर भेंजेंगे। पूरा हवन अनुसंधान अपने प्राचीन मंदिर में करेंगे जहां दिव्या जैसा आम इंसान तो पहुंच भी नहीं सकता। सब मिलाकर उसने पूरे इक्कीस हज़ार का खर्चा बताया। इस समय घर में एक भी फालतू पैसा खर्च के लिए नहीं था पर उस फर्ज़ी ज्योतिष की बातों का ऐसा सम्मोहन था कि दिव्या ने इक्कीस हज़ार रुपए का जैसे-तैसे इंतज़ाम कर उसको भेज दिए। ये बात उसने घर में किसी को नहीं बताई। पैसे ज्योतिष के खाते में भेजने के बाद दिव्या की राजेंद्र से बात हुई पर दो-तीन के बाद उसका कोई भी फोन और संदेश नहीं मिलना बंद हो गया।
अब दिव्या बहुत ही धर्मसंकट में थी। बहुत सोचविचार कर उसने उस पेज के एडमिन से बात की तो उन्होंने तुरंत ही स्पष्ट करते हुए कहा कि इस पेज़ पर बहुत सारे लोग जुड़े हैं। वैसे भी सारे लेन-देन की जिम्मेदारी हर किसी की अपनी होती वैसे भी राजेंद्र नाम की कोई भी आईडी अब हमारे पृष्ठ पर नहीं दिख रही। दिव्या के तो जैसे होश उड़ गए। आज उसे अंधविश्वास की कीमत चुकानी पड़ी थी। एक धूर्त के जाल में फंसकर वो गच्चा खा गई थी। उसने रोते-रोते सारी बात अपने पति और बच्चों को बताई। उसकी हालत बहुत खराब थी तब उसके पति ने उसको प्यार से समझाते हुए कहा कि ये भविष्य के लिए सबक था। रही बात घर के सदस्यों की तबियत खराब और कामधंधा धीमा चलने की बात तो ये सब चलता रहता है। यही तो ज़िंदगी है। समय के साथ सब ठीक हो जाता है। दिव्या ने भी अपने कान पकड़ लिए थे।
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