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अगर जन्म उत्सव है।

आचार्य जहान सिंह


अगर जन्म उत्सव है, तो मृत्यु क्यों नही।
आने-जाने वाला एक ही, फिर जश्न क्यों नही।।
आने वाला, एक अनजान मेहमान।
न जाने कैसा होगा वो इन्सान।।
उस पर सब इतने मेहरबान।
जश्न मनाये पूरा खानदान।।
नाचगान-संगीत, दिल खोलकर दान।
ऐसा क्या खास है श्रीमान।।
जाने वाला, जाना पहचाना मेहमान।
जांचा-परखा और वर्ता इन्सान।।
बरसों का साथ, हर काम में उसका हाथ।।
अच्छा-सच्चा समर्पित सिपाही।
कर्म, दायित्व का निर्वाही।।
सुख-दुख में एक समान।
उसके परीक्षाफल में पहला स्थान।।
किया उसने आपका नाम रोशन।
उसके लिए कोई नही जश्न।।
वो उत्सव का हकदार।
तुम उसके कर्जदार।।
ग़म-विलाप, दुख जिसके कंधों पर।
लांधकर भेज देते है घाट पर।।
अजनबी के लिए उत्सव।
घर की शान के लिए बस आँसू।।
'जहान' यह तेरा कैसा ईमान।
जब आने-जाने वाला, एक ही इन्सान।।
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