अमरेन्द्र
मूर्ख भला कब कहता है,
मैं हूँ एक अज्ञानी।
उल्टा-सीधा करता है,
यही है उसकी निशानी।
केवल ग्रंथों को पढ़ने से,
नहीं बनता कोई ज्ञानी।
उलझे को सुलझाता है,
वही है पक्का ज्ञानी।
जो हालात को समझ न पाए,
वह भी है एक अज्ञानी।
कोई मरता वह हँसता रहता,
उसे कौन कहेगा ज्ञानी?
लिखने-बोलने से पहले,
जो विचार करे वो ज्ञानी।
जो विज्ञान को झुठलाता,
नहीं उससे बड़ा कोई अज्ञानी।
करनी सबका बतलाता है,
कौन है कितना ज्ञानी।
मूर्ख भला कब कहता है,
मैं हूँ एक अज्ञानी।
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