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अधूरी कहानी

समीर उपाध्याय

अक्षत और आभा दोनों कॉलेज में साथ पढ़ते थे। दोनों के बीच प्रेम के अंकुर फूटे। दोनों ने जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाने की प्रतिज्ञा भी ली। अक्षत एक सामान्य घर से था और आभा एक बड़े घर की बेटी थी। इसलिए आभा के माता-पिता अक्षत को अपनाने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने आभा को समझा कर एक बहुत बड़े उद्योगपति के साथ उसकी शादी करवा दी। इस प्रकार अक्षत और आभा की प्रेम कहानी अधूरी रह गई।
आज पूरे देढ़ साल बाद अक्षत और आभा की एक शॉपिंग मॉल में मुलाकात हो गई।
आभा - "अक्षत, आज तुम्हें देखकर अतीत की पुरानी यादें फिर ताजा हो गई।"
अक्षत - "अब बीते हुए कल को याद करने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है।"
आभा - "आज अक्षय तृतीया है। तुम्हें याद होगा एक बार अक्षय तृतीया के दिन हम दोनों शिव मंदिर में गए थे और मैंने शिवजी की अक्षत से पूजा की थी और पति के रूप में तुम्हें पाने की प्रार्थना की थी।"
अक्षत - "लेकिन अब इन सब बातों का कोई फायदा नहीं है।"
आभा - "मम्मी-पापा का सामना करने की मुझमें हिम्मत नहीं थी। लेकिन अब वे नहीं रहे।"
अक्षत - "लेकिन तुम्हारी शादी तो एक बहुत बड़े उद्योगपति के साथ हुई थी ना?"
आभा - "छ: महीने पहले एक विमान दुर्घटना में वे चल बसे। अक्षत, आज अक्षय तृतीया का दिन है। मैं चाहती हूं कि आज शिव मंदिर तुम मेरे साथ चलो, क्योंकि मैं शिवजी पर अक्षत चढ़ाकर तुम्हें पाने की प्रार्थना करना चाहती हूं। अब हमारा एक होने का रास्ता सरल हो गया है।"
अक्षत - "आभा, तुम्हारी शिव पूजा तुम्हें मुबारक। बेहतर यही होगा कि तुम अपने लिए किसी दूसरे मार्ग की तलाश कर लो।"
आभा - "अक्षत, मुझे माफ कर दो।"
अक्षत - "मेरी शादी रंगोली के साथ हो चुकी है। तुम्हारे जाने के बाद मेरे एकाकी और नीरस जीवन में रंगोली ने जीवन के सारे रंग भर दिए हैं। उसका निर्मल और निश्चल प्रेम ही मेरे लिए सब कुछ है। उसके त्याग, विश्वास और समर्पण भाव से मेरा जीवन रंगों से सजी हुई रंगोली जैसा बन गया है। अब मैं उस रंगोली में दूसरे रंग भरना नहीं चाहता।"
यह कहते हुए अक्षत आगे चल दिया और आभा वहीं पर खड़ी उसे देखती रह गई।

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