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अनहोनी...

डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव

गरीबी से जूझती सरला दिन-ब-दिन परेशान रहने लगी थी। भगवान के प्रति उसे असीम श्रद्धा थी और नित नेम करके ही वह दिन की शुरुआत करती थी।
आज भी नहा धोकर घर की पहली मंजिल पर बने पूजाघर में जाकर उसने श्रद्धा के साथ धूपबत्ती की और कल रात जो उसके पति को तनख्वाह मिली थी, उसे भगवान के चरणों में अर्पित कर दी। पूजा खत्म करके वह घर के कामों में लग गई। बच्चों को तैयार करके उसने स्कूल भेज दिया और पति के लिए चाय नाश्ता बनाने लगी। पति नहाकर जैसे ही पूजा घर की तरफ़ बढ़ा। कमरे से धुआँ निकल रहा था, वह अंदर की तरफ़ भागा "सरला!" उसने ज़ोर से आवाज दी।
"क्या हुआ" वह भी आवाज सुनकर ऊपर की तरफ़ भागी। "हाय राम! यह क्या हुआ?"
कमरा धुएं से भर गया था, शायद पंखे के कारण जोत से आग फैल गई थी। पास पड़ी सब धार्मिक किताबें और कुछ फोटो जल कर राख हो गए थे। वह वहीं जमीन पर बैठ गई। अब क्या होगा कैसे बताए पति को कि जो पैसा वह महीना भर मेहनत करके लाया था, सब उसने स्वाह कर दिया। उसका अंतर्मन रो रहा था।
"चलो कोई बात नहीं अब जो होना था सो हो गया। शुक्र करो कमरे में कोई सामान नहीं था, नहीं तो पता नहीं क्या होता।"
यह सब बाद में संभाल लेना। अभी मुझे काम के लिए लेट हो रहा है। "सरला का दिल बैठा जा रहा था, मन ही मन खुद को कोसती जा रही थी। क्या जवाब देगी पति को जब वह पैसे के लिए पूछेगा?
"सामान की लिस्ट बना लेना, शाम को बाज़ार चलेंगे, राशन वगैरह लाना है ना। "हाँ! बना लूंगी, दुःखी मन से वह बोली।"
पति के निकलते ही उसने घर को ताला लगाया और अपने सुख दुःख की सहेली रूक्मणी के घर पहुंची, उसे देखते ही सरला रोते हुए उससे लिपट गई "अरे क्या हुआ, रो क्यों रही हो?
सारी घटना सुनकर वह भी परेशान हो गई, उसे सांत्वना देती हुई बोली, "भगवान पर भरोसा रखो वह सब भली करेंगे।"
वह चुपचाप उठी और बोझिल कदमों से घर की तरफ़ चल दी। घर का ताला खोल बुझे मन से वह पूजा घर में जाकर बैठ गई। जले हुए सामान के बीच भगवान की फोटो उल्टी पड़ी हुई थी, उसने उसे सीधा कर दिया। तभी उसकी आंखें फैल गई। जिस प्लेट में उसने रूपए रखे थे वह ज्यों के त्यों सही सलामत पड़े थे। कांच का फ्रेम होने के कारण उसने प्लेट को पूरी तरह ढक दिया था।
अचानक यह सब देख सरला की आंखों से ख़ुशी के आंसुओं का सैलाब बहने लगा। भगवान के प्रति उसका विश्वास और आस्था अचानक से और मजबूत महसूस होने लगी।
अपने भगवान पर हमेशा विश्वास बनाए रखे। मेरे ठाकुर कभी किसी का गलत या अमंगल होने नहीं देते।
कभी-कभी आपको लगता होगा कि आपकी ज़िन्दगी में कुछ भी सही नहीं चल रहा है। आप सोचते कुछ और हैं और होता कुछ और है। पर कुछ समय बीतने के बाद आपको एहसास होता है कि जो हुआ था अच्छा ही हुआ। बस आपको उनपर पूर्ण श्रद्धा होनी चाहिये और हाँ एक बात और....
हर हाल में सब्र बनाए रखे।' सब्र की जड़े...चाहें जैसी भी हो। इसके फ़ल, सदैव मीठे होते हैं।

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