कंचन वर्मा
आज लगातार पांच दिन आईसीयू मैं भर्ती रहने के बाद भी दीनानाथ जी की हालत स्थिर बनी हुई थी। ब्रेन हेमरेज हुआ था उनको। आईसीयू के बाहर उनके तीनों बेटे चिंता में डूबे बैठे थे।
नर्स ने आकर कहा कि आज शाम को ही दीनानाथ जी का ऑपरेशन होना जरूरी है। मुंबई से विशेषज्ञ डॉक्टर को बुलाया गया है। आप तीन लाख रुपये जमा करवा दें। नर्स की बात सुनकर सबको सांप सूंघ गया। नर्स के जाने के बाद वे आपस में तू-तू मैं-मैं करने लगे। सब अपनी जिम्मेदारियों और आर्थिक तंगी का दुखड़ा रोने लगे और रुपए की व्यवस्था में अपने आप को असमर्थ बताने लगे। इसी बीच दीनानाथ जी की बेटी भी आ गई। इकलौती बेटी इंजीनियर की पत्नी, पैसे की कोई कमी नहीं। बेटों ने उम्मीद से अपनी बहन को सारी बात बताई पर बेटी भी सुनकर चुप हो गई और बेटों का ही अनुसरण किया। कोई भी रुपया देने को राजी नहीं हुआ। नर्स जब दोबारा आई तो उन्होंने जवाब दिया कि हम पैसे की व्यवस्था करके आते हैं। और ऐसा कहकर सब चले गए।
शाम हो गई पर कोई नहीं लौटा। मुंबई से डॉक्टर रमेश आ चुके थे। उनके सामने दीनानाथ जी की फाइल प्रस्तुत की गई। उन्होंने बारीकी से अध्ययन किया और जाकर मरीज को देखा। फिर उन्होंने उनके रिश्तेदारों के बारे में पूछा जवाब मिला कि बेटे-बेटी आए थे लेकिन पैसे की व्यवस्था का नाम लेकर चले गए और कोई भी नहीं लौटा, शायद अब कोई लौटेगा भी नहीं। डॉक्टर ने कहा पैसे की सारी व्यवस्था हो जाएगी। ऑपरेशन की तैयारी करो। डॉक्टर रमेश ने खुद तीन लाख रुपये जमा करवा दिए और ऑपरेशन करने में जुट गए। ऑपरेशन सफल रहा। दो दिन बाद दीनानाथ जी को होश आया। उन्होंने अपनी संतानो से मिलना चाहा। नर्स ने जवाब दिया कि वह सब चले गए और सारी बात बता दी। सुनकर दीनानाथ जी की आंखों से आंसू बह निकले। आंखों के सामने पूरा जीवन घूम गया। एक साधारण अध्यापक, साधारण वेतन और चार संतानों का लालन-पालन। खुद हमेशा अभावों में जीते रहे पर संतानों को कोई कमी न होने दी। पत्नी के देहांत के बाद दीनानाथ जी ने दूसरा विवाह नहीं किया। अपनी संतानों को माँ-बाप दोनों का प्यार दिया। और आज ये दिन देखना पड़ा। संतानों ने उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया। आखिर उनकी परवरिश में कहां कमी रह गई?
तन्द्रा टूटी फिर दीनानाथ जी ने पूछा कि फिर मेरे ऑपरेशन के लिए रुपये किसने दिए? नर्स ने बताया कि डॉक्टर रमेश जो मुंबई से आए थे उन्होंने दिए थे। उन्होंने ही आपका ऑपरेशन किया है। दीनानाथ जी को हैरत भी हुई खुशी भी। लगा डॉक्टर के रूप में साक्षात भगवान ही आये हैं। आज के जमाने में भला ऐसा कौन करता है? उन्होंने डॉक्टर से मिलने की इच्छा जताई। डॉक्टर साहब जब रुटीन चेकअप के लिए आए तो दीनानाथ जी ने हाथ बढ़ाकर डॉक्टर साहब के पांव पकड़ने चाहे पर डॉक्टर रमेश ने उनके हाथ बीच में ही रोक खुद उनके पांव पकड़ लिये। ये देख दीनानाथ जी भौचक्के रह गए फिर बोले... आप मेरे लिए भगवान हो, आपने ही मेरी जान बचाई है, पैर तो मुझे पकड़ने चाहिए। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आपने मेरे पैर क्यूं पकड़े?
आप कौन हैं आपने मेरे लिए इतना कष्ट क्यों उठाया? आखिर मुझसे आपका क्या रिश्ता है? डॉक्टर ने कहा कि मैंने आपकी जान बचाई है लेकिन आपने तो मेरा पूरा जीवन बचाया है। दीनानाथ जी ने कहा कि मैं कुछ समझा नहीं बेटा तब डॉक्टर रमेश ने कहा कि आपने मुझे पहचाना नहीं गुरुजी? मैं आपका शिष्य वही रमेश हूं जिसको कई साल पहले आपने पढ़ाया था। बोर्ड कक्षा की फीस नहीं दे पाने के कारण जब मैंने पढ़ाई छोड़ दी थी। तब आप मुझसे मिलने घर आए और कारण पूछा मैंने अपनी आर्थिक तंगी बताई तो आपने मेरी फीस भरी थी। इतना ही नहीं दो महीने परीक्षा तैयारी लिए आपने मुझे अपने पास रखा और पढ़ाया। आपको याद होगा कि उस साल मैंने हीं टॉप किया था। फिर आपका वहां से ट्रांसफर हो गया था। आपसे कोई संपर्क भी नहीं हो पाया कभी।
पर आपके शब्द, "रमेश तुम पढ़कर ही अपनी तकदीर बदल सकते हो, कामयाबी की ऊंचाइयां छू सकते हो" हमेशा के लिए मेरे हृदय पर अंकित हो गए। मैंने काम के साथ आगे पढ़ाई जारी रखी। और आज मैं आपके सामने हूं। अगर उस दिन आपने मेरी मदद नहीं की होती तो आज मैं इस मुकाम पर न होता। आज मैं जो कुछ भी हूं आपकी बदौलत हूं। आप मेरे भगवान हैं। दीनानाथ जी की आंखों में खुशी के आंसू थे। डॉक्टर रमेश की आंखों में भी आंसू थे। दीनानाथ जी को आज महसूस में हो रहा था कि गुरु-शिष्य का रिश्ता कितना निस्वार्थ और गहरा होता है। जो कर्तव्य उनकी संतानों ने पूरा नहीं किया, वह उनके शिष्य रमेश ने पूरा किया था। दीनानाथ जी ने डॉक्टर रमेश को कसकर गले लगा लिया। आज उन्हें डॉक्टर रमेश की वजह से नई जिंदगी मिली थी और उसके साथ-साथ एक नया रिश्ता भी। डॉ रमेश का भी इस दुनिया में कोई नहीं था। आज पिता-पुत्र का एक अनोखा रिश्ता बन गया था।
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