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अपनी बेटी

गीता वाधवानी

रजनी कुछ दिनों से महसूस कर रही थी कि जब वह अपने मोहल्ले से निकलती है और जब शाम को अपनी जॉब से मोहल्ले में वापस आती है। तब उसे देखकर कुछ लोग कानाफूसी शुरू कर देते हैं। एक बार उसने ध्यान से सुनने की कोशिश की। तो उनकी बातचीत में उसे अपने पति नीलेश का नाम सुनाई दिया। जबसे नीलेश की जॉब चली गई थी तब से वह घर पर ही एक कमरे में छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था और खाना भी बना लेता था। उसकी मदद के कारण रजनी बिना टेंशन के अपनी जॉब पर चली जाती थी। इधर कुछ दिनों से उसे नीलेश के व्यवहार में कुछ बदलाव दिखाई दे रहे थे और साथ ही मोहल्ले के लोगों में कुछ कानाफूसी भी हो रही थी।
तब एक दिन अचानक रजनी दोपहर के समय अपने ऑफिस से घर आ गई। उस समय नीलेश बच्चों की ट्यूशन ले रहा था। कमरे का दरवाजा हल्का सा बंद था। रजनी ने उसे हाथ से धकेल दिया और सामने का दृश्य देखकर उसके मन में घृणा और क्रोध उत्पन्न हो गया। उसका शक सही निकला।
नीलेश एक छोटी बच्ची को अपनी गोद में बिठाकर उसके शरीर को गलत तरीके से स्पर्श कर रहा था। यह देखते ही रजनी गुस्से में उबल पड़ी और जोर से चिल्लाई- "शर्म करो, तुम्हें तो अपनी इस हरकत पर डूब मरना चाहिए। क्या तुम भूल गए हो कि इस उम्र की हमारी भी एक बच्ची है। कुछ दिनों से मुझे तुम पर शक हो रहा था लेकिन मैं तुम्हें रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी। तुम जाकर कहीं डूब मरो क्योंकि मैं अपनी बेटी को साथ लेकर यहां से जा रही हूं। मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकती।"
नीलेश पहले तो अकड़कर बोला- "मैंने कुछ नहीं किया है मैं तो इसे प्यार से गणित के सवाल समझा रहा था।"
लेकिन जब रजनी ने उसे छोड़कर जाने की बात की तब वह गिड़गिड़ाने लगा और माफी मांगने लगा।
तब रजनी ने बात को गहराई से सोचते हुए, उसे घर को ना छोड़ कर जाने का फैसला किया क्योंकि उसे लगा कि नीलेश उसके जाने से पूरी तरह आजाद हो जाएगा। उसने मन में ठान लिया था कि नीलेश को अब सही राह पर लाकर ही रहूंगी।

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