“मैं तो सुबह से घूम-घूम कर थक गई हूं और कितना घूमना है।” रानी ने कहा।
“अरे, अभी से थक गई हो ये तो कुछ भी नहीं है। ऐसे थकोगी तो बड़े-बड़े किलों को कैसे देखोगी। ऐतिहासिक स्थलों को देखने के लिए बहुत चलना पड़ता है और सीढ़ियां भी चढ़नी पड़ती हैं।” श्याम ने कहा।
“फिर भी घूमते हुए बहुत समय हो गया है। मुझे तो भूख लग रही है और प्यास भी।”
“हां, तो चलो हम सभी कुछ खा लेते हैं।” जतिन ने कहा।
“चलो किसी होटल में चलते हैं।” श्याम बोले।
नही, ये हमारा शहर है। आज मैं आप सब को अपनी मन पसंद दुकान से कुछ अपनी पसंद की स्वादिष्ट चीजे खिलाऊंगा।” और जतिन ने एक गली की तरफ इशारा किया, चलो वहां चलते हैं। रानी ने उस पतली सी गली को देखकर ही बुरा सा मुंह बना लिया और जतिन से बोली, “चलो हम तो उस होटल में चलते हैं। वहां आराम से बैठकर कुछ अच्छा खायेंगे।” सभी सहमत हुए।
होटल में बैठकर सभी ने अपनी-अपनी पसंद की चीजों का ऑर्डर दे दिया।
“अरे, जतिन कहां चले गए उन्हें क्या खाना है। वो भी ऑर्डर कर देते।” परंतु जतिन वहां नहीं थे।
श्याम उनको देखने होटल के बाहर चले गए। वहां उन्होंने देखा तो जतिन उसी पतली गली में एक दुकान के सामने खड़े होकर मजे से कुछ खाते हुए दिखाई दिए। श्याम वापस आ गए। तब तक सबके मनपसंद ऑर्डर टेबिल पर आ चुके थे। सब खाने में व्यस्त हो गए।
खाना खाकर जब सभी होटल से बाहर आए तो जतिन जी भी वही खड़े हुए दिखाई दिए। “अरे, आप भी कुछ खा लीजिए। कहां चले गए थे आप?” रानी ने पूछा।
जतिन ने डकार लेते हुए कहा मैंने भरपेट रबड़ी-इमारती और कचौड़ी समोसा खाया है वह दुकान वाला सबसे अच्छी इमारती बनाता है। मेरा तो और कहीं खाने का मन ही नहीं करता। जो भी खाओ मन तृप्त हो जाता हैं और मैं तो घर के लिए लेकर भी जाता हूं। एक पैकेट की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा।
हां, वो होटल वाला भी सब चीजें अच्छी बनाता है। फूले हुए भटूरे, कुरकुरा डोसा और मजेदार चाइनीज। वाह !! क्या स्वाद है सभी चीजों में। सभी ने एक स्वर में कहा।
हां, होटल वाले भी अच्छा बनाते हैं परन्तु बात आत्म संतुष्टि की है जो मुझे इसी दुकान पर मिलती है। मैंने बचपन से ही मोहन हलबाई की दुकान की रबड़ी, इमारती खाई है जो मुझे आज भी पसंद है।
बहुत देर से सुन रही रानी ने कहा यह तो जतिन जी अपने शहर की अपनेपन की मिठास है जो सब जगह नहीं मिलती है।
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