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अपमान

कृष्ण कांत श्रीवास्तव

एक बार की बात हैं। गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठकर, उन्हें कुछ समझा रहे थे। बुद्ध के सभी शिष्य, बुद्ध को बड़े ध्यान से सुन रहे थे। बुद्ध और उनके सभी भिक्षु, यह देखते हैं कि उनकी तरफ एक आदमी बड़ी तेजी से आ रहा है, और वह आदमी, बहुत क्रोध में है और वह कुछ बड़बड़ाता आ रहा है।
उस व्यक्ति को देख, गौतम बुद्ध के कुछ शिष्य समझ जाते हैं कि यह व्यक्ति कुछ गलत करने के उद्देश्य से, गौतम बुद्ध के पास आ रहा है। इसीलिए गौतम बुद्ध के दो शिष्य दौड़कर, उस आदमी के पास चले जाते हैं और उसे रोक लेते हैं।
वह उस व्यक्ति से पूछते हैं, कि तुम कौन हो और तुम्हें किससे मिलना है?
वह व्यक्ति गौतम बुद्ध के शिष्यों से कहता है, कि मेरे रास्ते से हट जाओ, आज मैं इस बुद्ध को सबक सिखाकर ही रहूंगा। उस व्यक्ति की बात सुन गौतम बुद्ध के शिष्य, उस व्यक्ति को शांत करने की कोशिश करते हैं, पर वह व्यक्ति शांत नहीं होता है।
बुद्ध उस व्यक्ति को देखते हैं और मुस्कुराते हैं। फिर अपने शिष्यों से कहते हैं, कि मेरे प्रिय भिक्षुओं, उसे आने दो मेरे पास, वह मुझसे कुछ कहना चाहता है।
बुद्ध की आज्ञा का पालन करते हुए बुद्ध के भिक्षु, उस व्यक्ति के रास्ते से हटते हैं। फिर वह व्यक्ति बुद्ध के पास आकर खड़ा हो जाता है। जैसे ही व्यक्ति बुद्ध के पास पहुंचता है, वह बुद्ध को गालियां देना शुरू कर देता है। बुद्ध उस व्यक्ति की गलियां सुनते रहते हैं परन्तु उसे कोई भी उत्तर नही देते। बहुत देर तक बुद्ध को गालियां देने के बाद वह व्यक्ति अपने मन में सोचता है, कि मेरी गालियों का तो बुद्ध पर कोई भी असर नहीं हो रहा है। इसीलिए उस व्यक्ति का क्रोध, और भी ज्यादा बढ़ जाता है, और वह व्यक्ति बुद्ध के उपर थूक देता है। उसके बाद बुद्ध एक कपड़ा उठाकर, उस थूक को पोंछ देते हैं।
यह देख कर गौतम बुद्ध के सभी भिक्षुक, क्रोध से भर जाते हैं। पर बिना बुद्ध के आज्ञा के, कोई भी भिक्षुक अपना क्रोध प्रकट नही करता। वह व्यक्ति दुबारा से बुद्ध के ऊपर थूकता है, और बुद्ध दुबारा से एक कपड़ा उठाते हैं, और उस थूक को साफ कर लेते हैं।
फिर बुद्ध मुस्कुराकर इस व्यक्ति से कहते हैं, कि मित्र, तुम कुछ और कहना चाहते हो? जैसे ही वह व्यक्ति बुद्ध का यह प्रश्न सुनता है, वह व्यक्ति भीतर तक हिल जाता है।
फिर वह व्यक्ति बुद्ध को कोई भी उत्तर नही दे पाता है और तुरंत वहाँ से चला जाता है।
बुद्ध के सभी भिक्षुओं के मन में, यह प्रश्न होता है कि उस व्यक्ति ने बुद्ध का इतना अपमान किया, लेकिन बुद्ध ने उस व्यक्ति को यह क्यों कहा, कि क्या वह और कुछ कहना चाहता है। सभी भिक्षुओं में से एक भिक्षुक बुद्ध से कहता है कि आपने उस व्यक्ति से यह क्यों कहा कि क्या वह कुछ और कहना चाहता है। जब कि यह तो स्पष्ट था कि वो व्यक्ति यहां कुछ कहने नही आया था, बल्कि वह तो आपका अपमान करने आया था।
वह व्यक्ति, बुद्ध का अपमान करके अपने घर तो चला जाता है लेकिन पूरी रात सो नहीं पाता है। उसके मन में सिर्फ यही प्रश्न घूमता रहता है, कि मैने बुद्ध का अपमान किया उन्हें गलियाँ भी दी, फिर भी उन्होंने मुझ से यह क्यों पूछा कि क्या मैं कुछ और कहना चाहता हूं?
जब कि मैं वहाँ कुछ कहने नही बल्कि उनका अपमान करने गया हुआ था। अगले दिन वह व्यक्ति सुबह-सुबह जल्दी उठकर बुद्ध के पास चला जाता है और उनकी चरणो में लेट जाता है। बुद्ध के सभी शिष्य, उसको देखकर आश्चर्य चकित होते हैं, कि जो व्यक्ति, कल बुद्ध का अपमान करके गया हुआ था, आज वह रो रहा है, और बुद्ध के चरणों में पड़ा हुआ है।
बुद्ध उस व्यक्ति को उठाते हैं, और उस व्यक्ति से कहते हैं, कि मित्र क्या तुम कुछ और कहना चाहते हो? इतने में ही बुद्ध का एक भिक्षुक, बुद्ध को टोकता है और उनसे पूछता है, कि बुद्ध, जब कल यह व्यक्ति आपका अपमान कर रहा था, तब भी आपने यही बात कही थी कि क्या तुम्हें कुछ और कहना है?
और आज यह व्यक्ति, आपके चरणों में पड़ा रो रहा है? आप तब भी यही बात कह रहे हैं? इसका क्या अर्थ है? बुद्ध कृपा कर समझाइए हमें।
बुद्ध कहते हैं, कि बात को कहने के लिए शब्द असमर्थ हैं, कल भी यह व्यक्ति मुझसे कुछ कहना चाहता था, पर शब्द असमर्थ थे।
इसीलिए क्रोध में आकर उसने मुझ पर थूककर वो बात मुझसे कहने का प्रयास किया। और आज भी शब्द असमर्थ हैं और उसकी जगह इसके आंसू कह रहे हैं, जो यह कहना चाहता है। उसके बाद वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है, कि बुद्ध, मुझे क्षमा कीजिए, मैने आपका अपमान किया है।
बुद्ध कहते हैं, कि तुम्हें क्षमा मांगने की कोई भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि क्रोध भी तुमने किया, और उसकी पीड़ा भी तुमने ही पाई है।
इसमें तुमने दूसरे किसी को क्या नुकसान पहुंचाया है? बुद्ध अपने सभी भिक्षुओं, और उस व्यक्ति से कहते हैं कि “क्रोध जलते हुए अंगारे की तरह है, जिसे हम अपने हाथ में पकड़ते हैं किसी और पर फैंकने के लिए। लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि सबसे पहले उस अंगारे से ख़ुद का ही हाथ जलता है।”

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