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अल्बर्ट का ढाबा

शीला पाण्डेय

क्लास में सभी बच्चों ने फ़ीस जिसे विद्यालय विकास निधि कहते हैं, दे दिया था, सिर्फ़ अल्बर्ट पाल को छोड़ कर। अल्बर्ट फ़ीस लाए हो? अल्बर्ट ना में सिर हिलाता। देखो कल ज़रूर लाना। तुम्हारे वजह से हम रजिस्टर क्लोज़ नहीं कर पा रहें हैं। मालूम है न नाम कट जाने के बाद बहुत मुश्किल होती है फिर से नाम लिखवाने में, फार्म भरना पड़ेगा। अल्बर्ट हाँ में सर हिलाता।
क्लास में घुसते ही मैंने पूछा - अल्बर्ट फ़ीस लाए हो?
अल्बर्ट ना में सर हिलाया। ऐसे भी बोलता कम था।
अल्बर्ट क्यों नहीं लाए?
माँ ने नहीं दिया।
विजय श्री अचानक बोल पड़ी - मैम ये पिछले क्लास में भी नहीं देता था। अनुका बनर्जी मैडम ने पूरे साल का फ़ीस अल्बर्ट का खुद दिया।
अच्छा, ये तुमने पहले क्यों नहीं बताया।
मुझे तो इस बारे में कुछ भी नहीं पता।
ओह, अच्छा, चलो पता करती हूँ, कारण क्या है?
जब अनुका से पूछा तो मालूम हुआ कि उसके पिता को नौकरी से निकाल दिया गया है। वह दिन भर शराब पीकर पड़ा रहता था।
फ़िलहाल मैंने अल्बर्ट के फ़ीस दे दिए। कहा कि किसी चीज़ की कमी हो तो मेरे पास आना।
एक दिन अल्बर्ट आया कि मैम जूते फट गए हैं। मैंने कहा कि इस पेड़ पर से बीस कटहल तोड़ कर कैंप के पीछे गेट पर जाकर बेच दो। इस तरह कटहल का भी उपयोग हो जाएगा और तुम्हारा काम भी हो जाएगा। अल्बर्ट अपना एक दोस्त लेकर आया और कटहल तोड़कर ले गया। दूसरे दिन अल्बर्ट ने चहक-चहक कर बताया कि उसे दो सौ रूपये मिले। मैंने कहा - आज जाकर जूता-मोज़ा और एक नया शर्ट ले लेना। मैंने उसे पचास रूपये और दिए।
उसी शाम अल्बर्ट फिर आया। नया जूता-मोज़ा और शर्ट पहन कर। देखकर मन प्रसन्न हो गया। वह मेरे पचास रूपये वापस देने लगा कि मैम दो सौ में ही सब आ गया। मैंने कहा इसे रख लो, काँपी-पेंसिल की ज़रूरत हो तो ख़रीद लेना। वह ख़ूब परिश्रमी छात्र था। उसके काले चेहरे पर एक ग़ज़ब का नूर टपकता था। पूरा साल बीत गया। अल्बर्ट कक्षा छह में पहुँच गया। हमारे पतिदेव का तबादला कोलकाता हो गया और मैं भी कोलकाता के काशीपूर विद्यालय में आ गई। कई वर्ष बीत गए।
मेरे पतिदेव को बाई रोड सफ़र करने का बड़ा शौक़ है। कार वे स्वयं चलाते हैं। एक बार हम झारखंड से गुजर रहे थे तो एक ढाबे में चाय पीने रूके। देखा ढाबे का मालिक उठकर मेरी बड़ी आवभगत कर रहा है। आलमारी से चाय की कप निकाली गई। टेबल कई बार पोंछा गया। चाय बहुत ही अच्छी थी, फिर दूसरी बार मंगायी गई। मैं पैसा देने काउन्टर पर पहुँची तो मालिक ने पैसा लेने से इंकार कर दिया। बोला आपसे पैसा लेकर पाप नहीं करूँगा। आपके आशीर्वाद से बड़ा आदमी बन गया हूँ।
मेरे दो-दो तीन स्टार होटल हैं। मैंने शुरुआत इस ढाबे से किया था इसलिए यहाँ बैठता हूँ। लेकिन मैं तुम्हें पहचान नहीं रही हूँ, तुम कौन हो भाई? मालिक बोला - पहचानना तो आपको ही पड़ेगा मैम। मैं आपको सिर्फ़ एक क्लू दे सकता हूँ। वो है - दुर्गापुर। अल्बर्ट, बेटा, तुम्हें देखकर बहुत ख़ुशी हुई। मेरे पतिदेव आवाज़ दे रहे थे - चलो देर मत करो। मैं गाड़ी में बैठ गई तो अल्बर्ट मिठाई का बड़ा पैकेट गाड़ी में रख दिया। कई बार हाथ जोड़कर प्रणाम करता है। जब तक गाड़ी आँखों से ओझल नहीं हो गई, सड़क किनारे खड़ा हाथ हिलाता रहा। पूरे रास्ते मैं अल्बर्ट की कहानी अपने पतिदेव से सुनाती रही।
ईश्वर कभी-कभी कितना सुंदर काम हम से करवाता है।
प्रभु की महिमा अपार। अल्बर्ट के प्यार ने सच में मुझे ख़ास बना दिया। पटना से कोलकाता आना-जाना लगा ही रहता है। आते-जाते मैं जब भी मिलती हूँ अल्बर्ट से तो जीवन में उत्साह का नया संचार होता है। अल्बर्ट कहता हैं कि मैं हरेक व्यक्ति से जो मेरे क़रीब है उसको आपके और अनुका मैम के बारे में ज़रूर बताता हूँ। ख़ूब ख़ुश रहो अल्बर्ट। अल्बर्ट ने हमें कई दिनों तक ख़ुश रहने का शुभ शगुन दे दिया था।

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