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अश्लीलता

अश्विन सिंह


एक शहर में ऐसा शोर था कि अश्लील साहित्य का बहुत प्रचार हो रहा है। अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्लील पुस्तकें बिक रही हैं।
दस-बारह उत्साही समाज-सुधारक युवकों ने टोली बनाई और तय किया कि जहाँ भी मिलेगा हम ऐसे साहित्य को छीन लेंगे और उसकी सार्वजनिक होलीका जलाएँगे।
उन्होंने एक दुकान पर छापा मारकर बीच-पच्चीस अश्लील पुस्तकें अपने क़ब्ज़े में की। प्रत्येक के पास दो या तीन किताबें थीं।
युवकों के मुखिया ने कहा - आज तो देर हो गई है लेकिन कल शाम को अखबार में सूचना देकर परसों किसी सार्वजनिक स्थान में इन अश्लील पुस्तकों को जलाएँगे। प्रचार करने से दूसरे लोगों पर भी असर पड़ेगा। कल शाम को सब मेरे घर पर मिलो। इतनी सारी पुस्तकों को इकट्ठी अभी घर नहीं ले जा सकता। बीस-पच्चीस हैं। पिताजी और चाचाजी भी घर पर फिलहाल मौजूद हैं। देख लेंगे तो आफत हो जाएगी। ये दो-तीन किताबें तुम लोग प्रत्येक छिपाकर अपने घर ले जाओ। कल शाम को जरूर ले आना।
दूसरे दिन शाम को सब मिले पर किताबें कोई नहीं लाया।
मुखिया ने कहा - किताबें दो तो मैं इस बोरे में छिपाकर रख दूँ। फिर कल जलाने की जगह बोरा ले चलेंगे।
लेकिन किताब कोई भी लाया नहीं था।
एक ने कहा - कल नहीं, परसों जलाना। पढ़ तो लें।
दूसरे ने कहा - अभी हम पढ़ रहे हैं। किताबों को दो-तीन बाद जला देना। अब तो किताबें जब्त ही कर लीं।
उस दिन जलाने का कार्यक्रम नहीं बन सका। तीसरे दिन फिर किताबें लेकर मिलने का तय हुआ।
तीसरे दिन भी कोई किताबें नहीं लाया।
एक ने कहा - अरे यार, बाप के हाथ किताबें पड़ गईं। वे पढ़ रहे हैं।
दूसरे ने कहा - अंकल पढ़ लें, तब ले आऊँगा।
तीसरे ने कहा - भाभी उठाकर ले गई। बोली की दो-तीन दिनों में पढ़कर वापस कर दूँगी।
चौथे ने कहा - अरे, पड़ोस की चाची मेरी गैरहाजिर में उठा ले गईं। पढ़ लें तो दो-तीन दिन में जला देंगे।
अश्लील पुस्तकें कभी नहीं जलाई गईं। वे अब औऱ अधिक व्यवस्थित ढंग से पढ़ी जाने लगीं।
यही हाल वर्तमान में हैं...सभी अश्लीलता का विरोध तो करते हैं मगर अश्लील वीडियो, रील्स और लेखों और कामुक फोटो वालों के उतने ही लाखों और करोड़ों फालोवर्स हैं।
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