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असली हकदार

रमाकांत शास्त्री

रंजन बाबू बिस्तर पर भीगी हुई पलकों को साफ करते हुए हरपल बस यही प्रार्थना करते रहते कि ईश्वर उन्हें जल्दी से अपने पास बुला ले। लगभग साठ वर्ष पार कर चुके रंजनबाबू को कई बीमारियों ने धर दबोचा था। बिस्तर पर ही मलमूत्र त्यागने के चलते उनका बेटा तो उनके कमरे में आने से भी हिचकता था। वही उनकी पत्नी भी कई बीमारियों से जूझ रही थी, ऊपर से उम्र के चलते वह भी विवश थी। ऐसे में उनकी सेवा करने वाला उनका वर्षो पुराना सेवक बिरजू था। वही उनके खाने-पीने दवाओं सहित मलमूत्र सारी व्यवस्थाओ को देखता था। बीते कई दिनों से रंजनबाबू की हालत कुछ ज्यादा ही खराब थी डाक्टर लगभग हाथ खडे कर चुके थे।
यू तो बिरजू को इनसब के लिए अधिक मेहनताना नही मिलता था, मगर फिर भी वह अपने कर्तव्यनिष्टा के चलते रंजनबाबू की सेवा में लगा रहता। सेवा के दरम्यान बीते दो-चार महीनों से बिरजू की नजर हमेशा रंजनबाबू के गले से लटकती सोने की चेन पर बनी रहती थी। वह अक्सर सोचता था कि इतने वर्षों से सेठजी की सेवा में है अगर दया करके जीवन की अंतिम अवस्था में यह चेन वह उसे दे दें तो उसकी बेटी की शादी में उसे बहुत सहारा हो जाएगा।
रंजनबाबू से बिरजू ने एक दो बार बेटी की शादी और चेन के बाबत आरजु-मिन्नत भी की थी। लेकिन उसकी बातें सुनकर रंजनबाबू चुप हो जाते या बात टाल जाते थे।
लेकिन उस दिन दया करके सेठ ने बिरजू को स्वीकृति प्रदान कर दी कि वह चेन उसके गले से निकालकर ले ले।
उन्होने कहा, बिरजू, मेरी जिन्दगी का अब क्या भरोसा जाने कब, तू ये चेन निकाल ले।
रंजनबाबू की आज्ञा से बिरजू ने उसके गले से जैसे ही चेन निकाली उसी समय अचानक रंजनबाबू के बेटे दीपक ने आकर चेन उसके हाथ से छीन ली। यह कहते हुए कि एक असहाय मृत्युशैय्या पर पड़े आदमी के गले से चेन निकाल लेने का हक उसका नहीं बनता है। यह सरासर चोरी है तुमने चोरी की है।
अगर इस चेन पर किसकी का असली हक है तो वो मेरा है उनके बेटे का। बिरजू का सिर झुक गया उसके उदास चेहरे को देखकर रंजनबाबू ने धीमी और टूटी हुई आवाज में कहा, “बिरजू ने कोई चोरी नहीं की है। उसने मेरी बहुत सेवा की है। मैने ये चेन उसे उपहार स्वरुप दी है मेरे कहने पर ही इसने मेरे गले से चेन निकाली है।
दीपक ने कहा, आप चुप ही रहिए तो अच्छा है। कुछ ही दिनों के मेहमान हैं जल्द ही आप स्वर्गवासी होने वाले हैं।
आपका अब इस घर में किसी भी चीज पर हक नहीं है। हम जो चाहेंगे वही होगा। अब आपका ठिकाना धरती पर नहीं ऊपर है। और तुम्हारा ठिकाना इस घर के बाहर है..... सुना तुमने ....
अभी ये चेन तुरन्त बिरजू को दो, पता है तुम्हारे जन्म के पहले से ही यह इंसान इस घर की सेवा में लगातार लगा हुआ है।
मैंने तुम्हारी सारी बातें सुन ली है।
जब तक सांस तब तक आस है। अपने पापा को 'स्वर्गवासी होने वाले है बताकर उनके जीने की इच्छा पर कुठाराघात कर रहे हो। शर्म कर नालायक, जब मालिक स्वयं अपनी मर्जी से बिरजू को उपहार स्वरूप चेन दे रहे हैं तो हम कौन होते हैं उनको रोकने वाले।
ये सब चल-अचल सम्पत्ति उन्हीं का अर्जित किया हुआ है समझा। गुस्से में दीपक की मां ने कहा।
अपनी माँ का रौद्र रूप देखकर दीपक ने तुरन्त चेन बिरजू को वापस लौटा दी। बिरजू ने एकटक भीगी हुई आखें लिए मालकिन की और देखा तो वह रुधाए गले से बोली, बिरजू बेटा इस चेन पर उसके असली हकदार का ही हक है और वो तू है बेटा।
हमारा असली बेटा, इस घर इन बूढे माता-पिता का असली हकदार तेरे मालिक और मैने अपनी तमाम संपति का आधा हिस्सा स्वेछा से पहले ही तेरे नाम कर दिया है।
बिरजू रोते हुए मालकिन के पैरो में  झुक गया...!!

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