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आखरी नाव

डॉ. जहान सिंह ‘जहान’

असम के घने जंगलों में खासी पहाड़ियों के बीच ब्रह्मपुत्र की उपनदी गरगई के किनारे पर बसी एक छोटी ढोंग बस्ती। गोल छप्पर नुमा झोपड़ी कुछ टूटे पत्थर और लकड़ी के बने आकार जिन्हें मकान कह सकते हैं। नंगे खेलते बच्चे, भोंकते कुत्ते, कीचड़ की सौगात में लिपटी गाय, भैंस, बकरियां, तीखे लाल, नीले, काले, पीले रंगों के कपड़े। शाल, चादर से यौवन ढकने की कोशिश करती युवतियां नई दुनिया से बहुत दूर दैनिक कार्यों में उल्झी। छोटे-छोटे पानी के गड्ढे, उन में हलचल करती मछलियां, इधर-उधर भागते मुर्गे, मुर्गियां। पान, सुपारी, मक्का, धान ही उनकी पूजी, जिसे बड़ी सफाई से टूटी झल्लियों या मिट्टी के बर्तनों में संजोकर कोने में रखती स्त्रियां। कपड़ों के टुकड़ों को कमर में बांधे हुक्का पीते, पान सुपारी खाते, अलसाये मर्द या तो मछली पकड़ने में या कंकड़ों के टुकड़ों से कोई शतरंज का जैसा खेल खेलने में ही लगे रहते। अमावस्या या पूर्णिमा को हाट-बाजार कर लेना बस। बाकी जीवन जीने का संघर्ष महिलाओं पर निर्भर रहता है।
लगातार यही सामान्य जिंदगी जिसमें केवल रोटी, कपड़ा और मकान की जद्दोजहद ही शामिल रहती है। लेकिन यही सोया हुआ गांव कार्तिक मास में एक नगर के संसाधनों से सुसज्जित हो जाता है। यहां एक विशाल मेला दुर्गा पूजा के साथ लगना शुरू होता है। और पूरे एक मास तक चलता है। इसी बस्ती से कुछ दूर एक दुर्गम रास्ते पर ऊंची पहाड़ी है। जहां ‘काल मठ’ स्थापित है। जो दूर-दूर तक अपनी तांत्रिक विद्या के लिए जाना जाता है। इस पर फहराता लाल पताका, शंख घड़ियाल की ध्वनि स्वतः लोगों का ध्यान आकर्षित करती है। रोशनी का साधन उस पर जलती हुई मशाल जो वहां आने वालों को बहुत दूर से सम्मोहित करती है। और लोग खिचे चले आते हैं। ऐसा विश्वास कि वहां जाने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है। खासतौर पर यदि मठाधीश तांत्रिक ‘स्वामी काल भैरव आनंद’ स्वयं आशीर्वाद देदें। मेले में आने जाने वाले मर्द, स्त्रियां सब कोशिश करते हैं कि उनके दर्शन हो जाए। कुछ आस्था विश्वास पर कुछ जिज्ञासा बस और विदेशी पर्यटक शोध कार्य की भावना पहुंच से पहुंचते रहते हैं।
गोवहारी का मेट्रो जीवन, तेज दौड़ती जिंदगी। इंजीनियर सुबोध बरुआ ने अपनी इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त कर एक प्रसिद्ध बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीनियर पद पर इस नगर में नौकरी कर ली। उनकी योग्य पत्नी डॉ. देवो मालती गोगोई बही के महिला कॉलेज में समाजशास्त्र की शिक्षिका है। छात्र-छात्राओं, विभाग एवं अपनी कॉलोनी में प्रसिद्ध एवं प्रिय है। इन दोनों के प्यार, पति-पत्नी के रिश्ते और अच्छे इंसान का लोग उदाहरण देते हैं। अगर कोई कमी थी तो शादी के बाद इतने वर्षों में मां-बाप ना बनने की। दोनों को आपस में कोई मलाल नहीं था। क्योंकि शिक्षित एवं समझदार हैं। लेकिन समाज की नजरें कभी-कभी विचलित कर देती थीं।
हर वर्ष इंजीनियर सुबोध दो माह के लिए अमेरिका रहते थे। इन गर्मियों के अवकाश में डॉ. देवो मालती अपनी ससुराल में आ जाती है। जो टोंग बस्ती से चालीस मील की दूरी पर है। ससुराल में सब कुछ ठीक होते हुए भी सास का ताना, पिछड़े इलाके होने से हर औरत मर्द की कुछ ना कुछ इस प्रकार की छींटाकशी ‘बांझ स्त्री’ का संबोधन, तीज त्यौहार की पूजा में शामिल ना होने देना। बच्चों के जन्म पर किसी को प्यार से आशीर्वाद ना देने देना। बरगद पूजा में शामिल ना करना। कुंवारी लड़कियों को देर रात तक साथ में खेलने ना देना। इन छोटी-छोटी लेकिन तीखी बातों ने डॉ. मालती के जीवन में इतनी कड़वाहट भर दी कि सब कुछ होते हुए जीवन आधारहीन निरुद्देश प्रतीत होने लगा। पढ़ी-लिखी होने के नाते, सब सहज तरीके से सहन करती। डॉ. मालती अंदर से बिखर चुकी थी। मेले की चर्चा कई बार सुनी ‘काल मठ’ के स्वामी की शक्तियों के बारे में गांव की औरतों की आए दिन बातचीत से डॉक्टर मालती को अनायास ‘काल मठ’ ने सम्मोहित करना प्रारंभ कर दिया। और इंजीनियर सुबोध के आने पर ‘काल मठ’ जाने का मन बना लिया। उसने सुबोध से कहा कि मैं यहां दो महीने से बोर हो रही हूं। चलो पास में ही मेला लगा है, घूम आए। मेरा मन भी बहल जाएगा। अमेरिका से आए सुबोध को मेले में जाने का प्रस्ताव अटपटा सा जरूर लगा। फिर भी मालती की खुशी के लिए हां कर दी। मठ तक पहुंचने के लिए नदी पार करनी पड़ती है। इस कार्य के लिए एक ही मोटर बोट चलती है। जो यात्रियों को इस पार से उस पार पहुंचाती है।
मेले का शोर, चाट, मिठाई, फलों की दुकान, कपड़े, इत्र, मिट्टी के खिलौनों से लेकर लोकगीत, नाटक, नृत्य-मंडली, जादू, सर्कस, नट के कर्तव्य, मौत का कुआं, एक मिनट में फोटो, पर्यटन, टॉकीज में चलचित्र, एक बिल्कुल नया अनुभव सुबोध और मालती को।
मालती ने सुबोध से निवेदन किया कि उस मठ में एक बहुत सिद्ध तांत्रिक रहते हैं, चलो दर्शन करें। मैं एक समाजशास्त्री हूं और आप तकनीकी वैज्ञानिक। जिज्ञासा के अनुरूप एक अच्छा अनुभव होगा। सुबोध तुरंत जवाब दिया, “I don't believe in such things if you want to go you can, I will enjoy here.” मालती का अंतर्द्वंद जिज्ञासा और कुछ प्राप्त करने की उत्कंठा ने बरबस चलने को मजबूर कर दिया।
मालती बोली, “You'll Wait here till I Returns.” सुबोध ने बड़ी नम्रता से Yes बोला। मालती चल दी, रास्ता दुर्गम घुमावदार सीढ़ियां और घना जंगल ज्यादातर यात्री वापस लौट रहे थे। शाम होने को थी, कुछ बरसात की संभावना बन रही थी। जो इस क्षेत्र में सामान्य बात है। मालती थकी हारी ऊपर पहुंची। अंधेरा होने लगा था, लेकिन अंदर एक अनोखी इच्छाशक्ति प्रेरणा सूत्र का कार्य कर रही थी। अंधेरा होने लगा था। काल मठ द्वार पर अजीब सा सन्नाटा। मालती बिना रुके अंदर चली गई और तांत्रिक स्वामी काल भैरव आनंद के कक्ष में प्रवेश कर गई। अद्भुत आकर्षण लाल तमतमाता हुआ चेहरा, सुदृढ़ शरीर, बलिष्ठ भुजाएं, रुद्राक्ष के माला से लिपटी गर्दन, चौड़ी छाती, चारों तरफ जलती आग, बंद आंखें, ललाट पर सूर्य की किरणें जैसा प्रकाश बिखेरता तिलक। एक अजीब सी वातावरण में सम्मोहक खुशबू। मालती के अंदर मां बनने की इच्छा का ज्वालामुखी फूट पड़ा। उसने अनचाहे अनजाने में अपने वत्र उतार दिए और नग्न अवस्था में पुकार कर बोली। “काल भैरव स्वामी” देख मेरी तरफ मैं भी नारी हूं। मुझसे मेरी नारी होने का अधिकार कोई नहीं छीन सकता। बिना “मां” का स्वरूप लिए नारी अधिकार हीन होती है।
स्वामी तांत्रिक आंख खुलते हैं। आंखों से अचानक तेज रोशनी निकलती है और आकाश में भयानक बिजली कड़कती है। मालती भय से तांत्रिक की बाहों में समा जाती है। मालती के शरीर में अनगिनत ज्वालामुखी फूटने का एहसास होता है। बाहर बहुत तेज बारिश होने लगती है। मालती अर्थ चेतना अवस्था से जब वापस आती है, तो घबरा कर अपने को ठीक करती है। शरीर में अजीब सा दर्द, लेकिन अंदर पूर्ण तृप्ति, संतोष एवं सुख की चरम सीमा की अनुभूति। बहुत देर होने से सुबोध भी ‘मठ’ के पास पहुंच गया। बाहर से सुबोध की आवाज आती है, “यदि पूजा-पाठ हो गया हो तो चलो।” तब तक हूटर की आवाज जोर-जोर से सुनाई देती है। यह जाने वाली आखरी नाव है। आज 23 अक्टूबर है। यदि नाव मिली तो कल अमेरिका जाने वाली फ्लाइट छूट जाएगी।
तेज कदमों से सुबोध और मालती नाव की तरफ चल पड़े। बरसात हो रही थी। रुक-रुक कर बिजली भी कड़क रही थी। आज ना जाने क्यों मालती को सुबोध का हाथ पकड़ना अच्छा लग रहा था। अंदर की क्षणिक उत्पन्न हुई आत्मग्लानि, मालती ने अपने चेहरे पर हाथ फेरते हुए दरिया में त्याग दी। मैं एक स्त्री हूं। मुझे पूर्ण जीने का अधिकार है। यह प्राकृतिक का सत्य है। जिसे झूठलाया नहीं जा सकता। रात में सुबोध की अमेरिकी यात्रा की कहानी सुनते और प्यार करते-करते कब दोनों सो गए पता ही नहीं चला।
समय आगे बढ़ा और मालती मां बनी। एक सुंदर सी कन्या को जन्म दिया। खबर से सुबोध के घर में खुशी छा गई। वहीं गर्मी का अवकाश, गांव का मेला, मालती का मठ में पहुंचना, स्वामी के दर्शन की लालसा में। लेकिन पुजारी ने बताया कि पिछले 23 अक्टूबर को स्वामी जी ब्रह्मलीन हो गए हैं। और उनके सिंहासन पर ‘मालती’ के फूल रखे हैं, आप दर्शन कर ले।
मालती की आंखें नम थी। सुबोध कुछ समझ पाता उससे पहले मालती ने पूछा, “क्या जीवन स्थानांतरित किया जा सकता है?, नहीं मालूम।” आखरी नाव का हूटर जाने का संकेत दे रहा था।
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