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आत्मनिर्भर

अल्पना सिंह

भवानी रिटायर्ड हो कर घर आई, तो उसका मन बहुत भारी-भारी लग रहा था। 30 साल सर्विस किया भवानी ने, पति के मृत्यु के बाद। इस सर्विस ने बहुत सहारा दिया था। पति की जगह तो कोई नहीं भर सकता लेकिन फिर भी दोनों बच्चों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा करने में। बेटी की शादी में कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाने दिया इस नौकरी ने। आज तक अपने आत्म सम्मान के साथ जी पाई तो इसी नौकरी के बदौलत, और आगे भी पेंशन ही सहारा बनेगी।
भवानी मन ही मन यहीं सोच रही थी, तभी भवानी का बेटा कुछ कागज ले कर कमरे दाखिल होता हैं, और अपनी माँ से बोलता है- “माँ, ये आपके पेंशन के कागज हैं, थोड़े दिनों में आपका पेंशन चालू हो जायेगा, लेकिन माँ आप हमें छोड़ कर गाँव क्यों जा रही है। मुझसे या सेजल से कोई गलती हो गयी है क्या?”
भवानी- “अरे नहीं रे पगले मुझे तुझसे या सेजल से कोई शिकायत नहीं हैं, बल्कि सेजल तो मेरा इतना ख्याल रखती कि मुझे खुद से डर लगता हैं कि कही मैं आलसी न बन जाऊँ।,” इतना बोल कर भवानी हँसने लगी। दरअसल बात ये है बेटे कि तेरी बड़ी चाची जी ने मुझे अपनी मदद के लिए बुलाया हैं। सुमन के लिए अहम फैसला लेने में मेरी मदद चाहिए उन्हें।
ओम ने आश्चर्य से अपनी माँ की ओर देखा और बोला- “चाची जी ने! ”
आप एक बार फिर सोच लो माँ, चाचा जी बहुत ही अकडू हैं वे आपकी बात कभी नहीं मानेंगे।
तेरे चाचा जी मेरी बात मानें या ना मानें लेकिन मैं फिर भी जाउंगी।
जनता हैं ओम, सालों पहले यदि तेरी दादी माँ ने हार मान ली होती तो ना आज मैं यहाँ होती, और ना तुम। सालो पहले जब अकस्मात तेरे पिता जी का साया हम लोगों के सर से उठ गया और उनकी जगह अनुकम्पा के आधार पर मुझे नौकरी मिली। तब घर के सारे लोग मेरे खिलाफ हो गये थे। 
घर की जवान विधवा बहु घर की दहलीज लाँघ कर काम करने जाये ये, किसी को मंजूर नहीं था। तुम्हारे चाचा जी को ही नहीं बल्कि तुम्हारे नाना जी को भी मंजूर नहीं था। लेकिन सिर्फ तुम्हारी दादा माँ थी जो मेरे साथ खड़ी थी, और मेरे लिए सारे घर वालो से लड़ गयी थीं। आज यदि मैं बिना किसी पर आश्रित, आत्म सम्मान के साथ यहाँ खड़ी हूँ, और तुम दोनों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरो पर खड़ा कर पाई हूँ, तो इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी दादा माँ को जाता हैं। और ओम यदि मैं दो औरतों की भी मदद कर पाई और उनके घर वालों को समझाने में कामयाब हो पाई कि पति के मर जाने से पत्नी की जरूरते नहीं मर जाती, उसकी इच्छा, उसकी ख्वाहिसे नहीं मर जाती। पत्नी को अपनी जरूरते पूरी करने के लिए आत्मनिर्भर होना बहुत जरुरी हैं, ताकि उसे अपनी और अपने बच्चो के जरूरतों के लिए दुसरे का मुहँ ना देखना पड़े।
सही मायने में यही सच्ची श्रधांजलि होगी तुम्हारी दादी माँ को। थोड़ी देर रुक कर भवानी एक गहरी साँस ले कर बोली- “और ओम मैं तो चाहूंगी कि तुम्हारे चाचा जी सुमन की दूसरी शादी ही कर दें। अभी उम्र ही क्या हो रही हैं उसकी, शादी के केवल पाँच साल ही तो हुए थे और भगवान् ने.....इतना बोलते-बोलते भवानी का गला भर आया और आँखों में आँसू छल-छला आये।
ओम ने आगे बढ़ अपनी माँ के हाथो को अपने हाथो में लेते हुए बोला- “आप बिलकुल सही बोल रही हैं माँ, लेकिन सुमन की एक बेटी है।”
भवानी बोली- “हां, इसीलिए तो मैं गाँव जा रही हूँ, यदि सुमन की इच्छा हुई तो उसकी बेटी को मैं गोद लेना चाहती हूँ। मेरी सारी जिम्मेदारियां ख़तम हो गयी हैं। मैं अपने पेंशन से भी उस बच्ची को पाल सकती हूँ। अच्छी शिक्षा दे सकती हूँ। थोड़ी देर रुक कर, भवानी गहरी साँस लेते हुए बोली- “चल मुझे बस स्टैंड तक छोड़ दे।”
ओम- बस से क्यों? मैं छोड़ देता हूँ अपनी कार से।
तभी सेजल बोलती हैं- “रुकिए माँ जी ये लेते जाईये, सेजल ने एक छोटा सा गणपति बप्पा की मूर्ति भवानी की हाथो में रखते हुए बोली- “माँ जी इन्हें लेते जाईये ये विध्नहर्ता हैं, इनकी कृपा से सब कुछ सही होगा, और माँ जी आप अकेली नहीं हैं हम सब आपके साथ हैं।

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