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आत्मबोध

आभा सिंह

वह रात भर सो नहीं सका था। नितांत अकेला सड़क पर चला जा रहा था। एक विद्रूप सी हंसी उसके होठों पर तैर गई। ऐसा लगा जैसे उसके होंठ कानों तक खींच रहे हैं। कानों में दर्द सा हुआ। लेकिन सबसे ज्यादा दर्द उसके सीने में हो रहा था। वह लाचार बेबस सब कुछ महसूस कर रहा था। 'उसे अपने बॉस की हरकत याद आने लगी। जब वॉस ने बिना किसी गलती के अधिकारों की बात करने पर दफ्तर से निकाल दिया और तो और चपरासी से पिटवाने की धमकी भी दे दी थी। उसकी जगह उस लड़के को दे दी जो उसे बहुत ही जूनियर था।
वॉस उस पर मेहरबान था क्योंकि वह बास के तलवे भी चाटने को तैयार रहता था। वह वॉस के साथ ऑफिस के बाद कहीं भी जाने को तैयार रहता था। जिस भी प्रकार का कार्य वॉस कहते वह करने को तैयार रहता था। उसका मन खराब होने लगा उसने सड़क पर थूक दिया। चलते-चलते सड़क के किनारे बनी पुलिया पर बैठ गया। मन ही मन कहा, “जिसे नौकरी से ना निकला गया हो वह उसकी हालत समझ नहीं सकता।” उसकी हालत उस फटे पायजामें जैसी थी जिसे पहनो तब भी नंगा ना पहनो तब भी नंगा। वह क्या करें कहां जाए किस से कहे अपनी व्यथा।
उसकी इच्छा हुई कि अपनी मां से व्यथा कहे। किंतु उसने सोचा कि वह बहुत दुखी हो जाएगी। मां ने बड़ी मेहनत से उसे पढ़ा लिखा कर इस योग्य बनाया था। उसे याद आया मां ने पढ़ने के लिए दो बीघा खेत बेच दिया था। अब मात्र तीन बीघा जमीन बची है। उसी से थोड़ा बहुत अनाज मिल जाता है। दुनिया भर के खर्चे वह कैसे पूरा करेगा। मां उसकी शादी करवाना चाह रही थी। नौकरी लगते ही लोग दौड़ने लगे थे। अब क्या होगा कैसे होगा? अब उसे फिर से नौकरी की तलाश करनी पड़ेगी। दफ्तर-दफ्तर दौड़ना पड़ेगा। उसे लड़के ने बॉस को फंसा कर पीठ में छुरा भोग दिया था। हे ईश्वर क्या करें, कहां जाएं। सोच कर मां से कहने का विचार छोड़ दिया।
उसके मन में आत्महत्या का विचार उभरने लगा। वह अपने घर की तरफ लौट आया। उसने चाय बनाई। पीते हुए, अपना दूरदर्शन चला दिया। इस समय दूरदर्शन पर महात्मा गांधी का विचार आ रहा था। आत्महत्या पाप है। मरना है तो जीने के लिए मरो। इस वाक्य ने उसे झिझोड़ कर रख दिया। उसके मन मस्तिष्क में गांधी जी के विचार उमड़ घुमड़ कर आने लगे।
थोड़ी देर में उसका विचार बदल गया। उसने सोचा क्यों ना इसी जगह रहते हुए प्रयास करूँ और अपनी माता जी को बुला लूँ। थोड़ा सुकून मिलेगा और इस प्रकार उसने आत्महत्या का विचार त्याग दिया, और जीवन की डोर थाम ली।

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