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आत्ममंथन

शैलेन्द्र शर्मा


सोचना एकांत में,
जब कभी फुर्सत मिले
भावनाएँ, रंग क्यों पल-पल बदलतीं हैं।
क्यों हवा पुरवा तुम्हें
अब पूर्ववत् लगती नहीं
और पछुआ के कसीदे में
जुबां थकती नहीं
झाँक कर देखो जरा
अन्त:करण से खुले मन
वासनाएं, रंग क्यों पल-पल बदलतीं हैं।
कभी कोई दूर लेकिन
लगे कितना पास है
और कोई पास फिर भी
दूर का एहसास है
जाँचना फिर जाँचना
होकर सहज मन से कभी
कामनाएँ, रंग क्यों पल-पल बदलतीं हैं।
जो रहे गुणगान करते
क्यों छिटक कर दूर हैं
गो अभी सावन घटाएँ
पास हैं, भरपूर हैं
जब कभी अवसर मिले
खुद को परखना देखना
धारणाएँ, रंग क्यों पल-पल बदलतीं हैं।
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