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आशंकाओं के बादल

दीप्ति मिश्रा

नव्या कॉलेज के लिए तैयार होकर घर से निकलने लगी, तो मैं अपलक उसे निहारती रह गई। दिनों दिन उसका निखरता सौंदर्य देख जहां मेरा मन प्रसन्न होता, वहीं एक अनजानी सी आशंका और भय की परछाई मन की धरती को अपने आगोश में समेटने का प्रयास करने लगती।
समाज में आए दिन होनेवाली अप्रिय और अनैतिक घटनाओं से मेरा मन घबराया सा रहता था। कहीं मेरी बेटी किसी ग़लत इंसान के संपर्क में आकर कभी कोई ग़लत कदम तो नहीं उठा लेगी। एक दिन, पति नमन को मैंने अपनी मनःस्थिति बताई तो वह हंसकर बोले, “अक्सर हम अपनी कल्पना में उन घटनाओं को जन्म दे देते हैं जिनका अस्तित्व हमारे जीवन में होता ही नहीं है। व्यर्थ की चिंता छोड़कर पॉज़िटिव सोचो, तो सब कुछ अच्छा ही होगा।” सही तो कह रहे हैं वह, बेटी अपना करियर बनाने में व्यस्त हैं और मैं व्यर्थ ही अपनी नकारात्मक सोच के चलते परेशान रहती हूं।
किंतु उस रात मुझे लगा, मेरी चिंता व्यर्थ नहीं है। मैं गर्म दूध लेकर नव्या के कमरे में पहुंची, तो वह धीमे स्वर में फोन पर किसी से कह रही थी, “मैं किसी को नहीं बताऊंगी और समय पर पहुंच भी जाऊंगी।”
मेरा हृदय धक से रह गया। किससे मिलने जाना है उसे? क्या पूछ लूं उससे? नहीं, नहीं, कहीं नव्या यह न समझ ले कि मैं छिपकर उसकी बातें सुन रही थी। रातभर मैं बेचैनी में करवटें बदलती रही। सुबह की प्रतीक्षा में। हो सकता है वह कुछ बताए। किंतु बिना कुछ कहे नव्या कॉलेज के लिए निकल गई। मेरे मन में दर्द की तेज लहर उठी। कहीं उसका किसी लड़के के साथ अफेयर तो नहीं चल रहा? इस विचार मात्र से मैं पसीने-पसीने हो उठी।
सारा दिन आशंकाओं के बादल मन को घेरे रहे और नज़र घड़ी की सुई पर अटकी रही। पांच बज गए, तो मुझे घबराहट होने लगी। रोज़ तो वह चार बजे तक कॉलेज से लौट आती है, फिर आज क्या हो गया? मैं बार-बार बेचैनी से अंदर-बाहर के चक्कर काट रही थी।
पांच बजे तक मेरा सब्र जवाब दे गया। किसी अनहोनी की आशंका से हृदय कांप रहा था। मैंने मोबाइल पर नमन का नंबर मिलाया। तभी बाहर गेट पर कार आकर रुकी और उसमें से नमन और नव्या उतरते दिखाई दिए।
“इतनी देर कैसे हो गई? कहां थी तू अब तक? मेरे तीखे स्वर पर नव्या और नमन हैरान हो उठे।
नमन बोले, “अरे, यह कॉलेज से सीधे मेरे ऑफिस आ गई थी। इसने सोचा पापा को भी आज जल्दी घर ले चलूं।“
"किंतु आज इसे किसी से मिलने भी तो जाना था।”
“ओह, तो यह बात है। आपने फोन पर हुई मेरी सहेली से बात सुन ली थी, इसलिए आप मुझसे नाराज़ हैं। मुझे रात को ही आपको सब कुछ बताना चाहिए था।”
नव्या ने स्नेह से मेरा हाथ पकड़ा और मुझे सोफे पर बैठाते हुए बोली, “सुनो, मम्मी, वह मेरी सहेली कनिका है न, उसका पिछले एक साल से विवेक नाम के लड़के से अफेयर चल रहा है। कनिका के पैरेंट्स उसकी पढाई़ पूरी होने के पश्चात उसकी शादी करना चाहते हैं, जबकि वह विवेक के प्यार में पागल पढ़ाई बीच में छोड़कर शादी करना चाहती है। यहां तक कि लिव इन में रहने की भी धमकी देती है।
आज वह इस बारे में मेरी राय जानना चाहती थी। मम्मी, कॉलेज कैंटीन में पूरे दो घंटे तक मैंने उसे समझाया कि भावुकता में बहकर जीवन का इतना बड़ा फ़ैसला लेना ग़लत है। भावावेश में लिए गए फ़ैसले अक्सर ग़लत साबित होते हैं। समय के साथ इस प्यार की खुमारी अवश्य उतरेगी और जीवन में ठहराव आएगा, तो तुम्हें अवश्य अपने फ़ैसले पर पछतावा होगा कि व्यर्थ ही अपना एक वर्ष ख़राब किया।“
“फिर वह कुछ समझी या नहीं।‘’ मम्मी ने उत्तेजित स्वर में पूछा।
पापा बोले, “वह समझे या न समझे, अब यह उसकी प्रॉब्लम है। दीप्ति, मैं मानता हूं, समाज में जैसी घटनाएं घट रही है और युवा पीढ़ी जिस ग़लत रास्ते की ओर बढ़ रही है, उससे तुम्हारा चिंतित होना स्वाभाविक भी है। किंतु दीप्ति, आज यह बात तुम अच्छी तरह समझ लो, जो दूसरों को रास्ता दिखाते हैं, वे स्वयं रास्ता नहीं भटकते। तुम्हें अपनी बेटी पर और अपने दिए संस्कारों पर विश्वास होना चाहिए।"
नमन की बातें मेरे हृदय की गहराइयों तक उतर गई थी और आशंकाओं के बादल धुआं बनकर उड़ गए थे।

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