डॉ रश्मि दुबे
हर तरफ आघात ही आघात है।
ये हमारे सामने की बात है।
दिन पे दिन ही ये बिगड़ते जा रहे
जाने कैसे देश के हालात हैं।
सामने हर शख़्स ही हंसता मिले
पीठ पीछे पर छिपे आलात हैं।
देश की किसको पड़ी है आज भी
रोती जनता और बस हैहात है।
इन गरीबों की सुनेगा कौन कब
उनका कैसा दिन भला क्या रात है।
जब अमीरों की चलेगी रात दिन
आम जनता तो सदा लमआत है।
कब सुधर पाएंगे ये हालात ही
रश्मि मुश्किल ये बड़ा इस्बात है।
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