डॉ. रश्मि दुबे
भटकते हुए कारवां अक्सर
दरबदर नहीं होते।
सब के नसीब में खुदा
रहने को घर नहीं होते।
ग़ुरबत में जीते जो
दुनिया से बेखबर नहीं होते।
कि किस्मत में उनकी
तरक्की के सफर नहीं होते।
मत तौलो इंसानों को
अमीरी के तराजू में।
दोनों पाले तराजू के
कभी बराबर नहीं होते।
बैठा क्यों उदास लेकर
मुफ़लिसी के हजार ग़म।
जीते हैं वे तक भी
जिनके हम सफर नहीं होते।
हे ईश्वर करम कर लेना
तू बंदों पर अपने।
तू मिला जिसे उन पर
कुदरत के कहर नहीं होते।
****
コメント