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ऊँचे घर की बहू

कमलेश कुमार

निधि हमेशा अपनी क्लास में फर्स्ट आती जिसे देखकर उसके माता-पिता खुशी से फूले नहीं समाते। उसके पिता तो पूरे मुहल्ले में मिठाई बँटवाते। उनका सपना उसे ऊँचे पद पर देखना था और निधि उनकी चाहतों पर खरी उतरी भी। लेकिन विनय के घरवालों को उसका जॉब करना पसंद नहीं था।
अतः उन्होंने यह कहकर कि उनके घर की बहुएं नौकरी नहीं करतीं उसके पंख काट दिये।
वह विरोध करना चाहती थी पर उसे तो पता ही नहीं चला कि कब उसके पिता ने विनय के पिता को यह वचन दे दिया कि निधि नौकरी नहीं करेगी।
इस शर्त के साथ विवाह संपन्न हो गया और उस वेदी में उसके उन्मुक्त आकाश में पंख पसार कर उड़ने के सपने भी खाक हो गये। उसके ससुराल वाले हमेशा उसे जली- कटी सुनाते रहते। सास तो रात-दिन यही कहती तुम्हारे बस का कुछ नहीं है, तुमसे कोई काम ढंग से होता ही नहीं। न जाने क्या करती रहीं मायके में.. अरे.. कोई लच्छन तो सीखा होता।
अब वह कैसे बताये कि उसकी योग्यता को तो उनके पति के वचन निगल गये और पिता ने अपनी बेटी को ऊँचे घर की बहू बनाने के सपने की भेंट चढ़ा दिया, पर हर चीज़ की लिमिट होती है।
वह यह सुन-सुन कर थक गई तो अपने आपको उनके सामने प्रूव करने की चाह मन में उपजने लगी और उसने एक स्कूल में संपर्क किया जहाँ उसके सर्टिफिकेट देखकर ही तुरंत ही उसको जॉब मिल गई।
जब निधि ने घर आकर यह बताया तो सभी उसका मजाक बनाने लगे.. शक्ल देखी है अपनी.. पढ़ाने के लिए बहुत योग्यता की जरूरत होती है, खेल नहीं है टीचर बनना।
अरे जाने दो न मांजी.. चार दिन बाद ही स्कूल वाले घर का रास्ता दिखा देंगे तब अपनी औकात अपने आप समझ में आ जायेगी। निधि पढ़ाने लगी और पढ़ाने का तरीका बहुत अच्छा था वह दिनोंदिन बच्चों की पहली पसंद बनती जा रही थी। जिसे देखो वही निधि मैम के गुण गाता।
उसकी यह प्रसिद्धि उसके घरवालों के कानों तक भी पहुँचने लगी थी। आज उसे "बेस्ट टीचर" का अवार्ड मिलने जा रहा था।
जिसके लिए स्कूल की तरफ से उसके पूरे परिवार को आमंत्रित किया गया था। जब उसकी सास ने यह देखा तो उनकी छाती पर सांप लोटने लगे। उन्होंने क्या समझा था, उसे और उनकी इसी जलन ने उसे कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया।

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