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एक ऐसा भी सांप

बालेश्वर गुप्ता

पूरी रात आंखों में ही कट गयी। रमेश का क्रोध सुम्मी पर तो था ही पर उससे अधिक वो पीयूष पर आक्रोशित था। उसकी ही फैक्ट्री का मुलाजिम पीयूष कभी-कभी बंगले पर फाइलों पर हस्ताक्षर कराने आता था। तभी उसने उसकी बेटी सुम्मी को अपने प्रेमजाल में फंसा लिया होगा। उसकी दौलत पाने को चुपचाप सुम्मी से शादी भी कर ली। आस्तीन का साँप कही का। सोच-सोच रमेश पागल होने को हो गया। कैसे अपना मुंह समाज मे दिखायेगा?
आज ही पीयूष और सुम्मी आर्य समाज में शादी कर रमेश से आशीर्वाद प्राप्त करने आये थे। अवाक से रमेश ने उन्हें अपमानित कर घर से ही निकाल दिया था। लाड़ प्यार से पली सुम्मी से उसे ऐसी आशा बिल्कुल भी नही थी।
दूसरे शहर में अपने घर जा रहे पीयूष ने प्लेटफार्म पर भीड़ देखी तो उधर जाने पर पता चला कि एक लड़की आत्महत्या करने वाली थी कि कुछ लोगो ने उसकी मंशा भाप कर उसे ट्रेन के आगे कूदने से पहले ही पकड़ लिया। यह लड़की सुम्मी ही थी। पीयूष को देख वह और जोर से रोने लगी। पीयूष उसे लेकर अपने किराये के कमरे पर ले आया। तब पता चला कि एक धनाढ्य के बेटे से प्रेम हो जाने के कारण वो गर्भवती हो गयी है और उसने शादी करने से साफ मना भी कर दिया। यही कारण सुम्मी द्वारा आत्महत्या करने के इरादे का था।
पीयूष ने सुम्मी की हालत देखी और बोला सुम्मी मैं एक साधारण इंसान हूँ, तुमसे शादी कर सकता हूँ, पर इस बच्चे को नही अपना पाऊंगा, अभी उसमे जान भी नही पड़ी होगी, उसके बिना यदि तुम मेरी आय से जीवन यापन कर सको तो। एक प्रश्न सुम्मी के सामने रख पीयूष ने सुम्मी को उसके घर यह कह कर छोड़ दिया कि दो दिन बाद, यदि उसे प्रस्ताव स्वीकार हो तो आर्यसमाज भवन में आ जाना।
पूरी घटना सुम्मी के पिता को पता भी नही थी और शायद पता भी नही चलेगी। क्योकि पीयूष ऐसा सांप था जो स्वयं ही विष पी रहा था।

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