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एक था राजा

डॉ कृष्ण कांत श्रीवास्तव
बहुत समय पहले की बात है। किसी राज्य में एक राजा राज करता था। राजा की तीन खूबसूरत रानियां थी। राजा अपनी पहली पत्नी के व्यवहार और बातचीत से अत्याधिक प्रभावित था और उसे बहुत प्यार करता था। राजकाज के सभी कार्यों में राजा अपनी इस पत्नी को साथ रखता था। राजा की दूसरी पत्नी तीनों में सबसे अधिक सुंदर और युद्ध विद्या में निपुण थी, इसलिए राजा अपने दूसरे नंबर की पत्नी को भी बहुत अधिक महत्व देता था। विपरीत परिस्थितियों में राजा की दूसरी पत्नी राजा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनकी मदद करती थी। इसलिए राजा अपनी दूसरी पत्नी के साथ मित्रवत व्यवहार करता था और जब भी कोई परेशानी होती तो वह अपनी दूसरी पत्नी से सुझाव लेता था।
राजा की तीसरी पत्नी असाधारण सुंदर तो थी परंतु बातचीत और युद्ध विद्या में उतनी निपुण नहीं थी। वह धार्मिक प्रवृत्ति की थी और अपने पति की लंबी उम्र के लिए सभी धार्मिक अनुष्ठान इत्यादि अवश्य करती थी। राजा अपनी तीसरी पत्नी से प्यार नहीं करता था, लेकिन उसकी तीसरी पत्नी उसको बहुत प्यार करती थी। राजा अपने राजकाज के कामो में बहुत ही व्यस्त रहता था। धीरे-धीरे राजा का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। राजा को एक ऐसे असाध्य रोग ने घेर लिया जिसके कारण उसके बचने की बहुत ही कम उम्मीद रह गयी। अनेकों वैद्य राजा के उपचार में लग गए परंतु रोग था जो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था। राजा को आभास हो गया कि अब उसका अंत समय निकट है। राजा को मौत का भय सताने लगा। भय के कारण राजा अकेले नहीं मरना चाहता था।
उसने अपनी पहली पत्नी को बुलाया और बोला, “मेरा अंत समय निकट है, कृपा कर आप हमारे साथ ऊपर भगवान के घर ऊपर चलो।” यह सुनकर वह बोली, “मैं आपके साथ नहीं जा सकती। मैं तो अभी और जीना चाहती हूं।” पहली पत्नी की बात सुनकर राजा बहुत निराश हुआ।
उसके बाद राजा ने अपनी दूसरी पत्नी को याद किया। जब उसने सुना कि उसके पति उसको अपने साथ ले जाना चाहते हैं तो वह उनसे जाकर बोली, “मैं तो अभी जवान हूं मेरी उम्र ही क्या है? मैं आप के साथ नहीं जाउंगी। मैं आपके मरने के बाद दूसरी शादी कर लूंगी।” यह सुनकर राजा बहुत ही दुखी हुआ। अपनी दोनों पत्नियों की बात सुनने के बाद राजा ने अपनी तीसरी पत्नी को बुलाया ही नहीं। परंतु उसकी तीसरी पत्नी खुद चलकर आ गयी और बोली, “महाराज, मैं आपके साथ भगवान के घर चलने को तैयार हूं। जब आप ही ना होंगे तो हमारा इस संसार में रहने का क्या फायदा।”
उसकी बात सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। फिर दूसरे ही पल निराश होकर बोला, “मैंने पूरी जिन्दगी तुमको प्यार नहीं किया और आज तुम बिना शर्त मेरे साथ ऊपर भगवान के घर तक चलने के लिए तैयार हो गई। निश्चित तौर पर मुझसे अपने जीवन में बहुत बड़ी भूल हो गई, जो मैं तुमको पहचान नहीं सका। मैं इस भूल के लिए अपने को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।”
मुझे मालूम है कि ईश्वर के घर सभी को अकेले ही जाना होता है। मैं तो केवल आप सभी लोगों की परीक्षा ले रहा था। आप मेरी इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गई, इसलिए मैं अपना राजपाट और सभी धन संपत्ति आपके हवाले करके जाता हूं। ऐसा कहकर राजा ने अपने प्राण त्याग दिए।
यह कहानी हमें बताती है कि जीवन में प्यार उससे करो जो आपको प्यार करता हो, उससे नहीं जिसे आप पसंद करते हो।
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