top of page

एक परिंदे का खत, मेरे नाम।

Updated: Sep 10, 2023

डॉ. जहान सिंह ‘जहान’


तुम अपने को कहते हो ‘जहान’।
अगर सुन सकते हो तो सुनो मेरा दर्द-ए-बयान।

मुझे मेरे हिस्से का आसमां दे दो।
कुछ हवा, चंद पत्ते, एक टहनी, घोसला दे दो।
गुड़िया ने अभी-अभी पंख खोले हैं।
उसे उड़ने का हौसला दे दो।
खेतों में अब छतें हैं। छतों पर अब दाने नहीं।
ऊची मीनारें और तारों का जाल फैला है।
मुझे मेरे हिस्से का खेत और खलिहान दे दो।
मैं कोई ड्रोन नहीं जहां चाहूं उतर जाऊं।
मुझे मेरे पंखों का सफर दे दो।
मुझे मेरे हिस्से का आसमां दे दो।

घरों की खिड़कियां कभी मेरी पिकनिक स्पॉट होती थीं।
अब वह एसी और कूलर की आरामगाह हो गई हैं।
मेरे बच्चे अब दोस्तों के घर जाने से डरते हैं।
जब वह दरवाजे पर कुत्ते से सावधान रहो की तख्ती पढ़ते हैं।
उन्हें खेलने की कोई जगह कोई पार्क दे दो।
मुझे मेरे हिस्से का आसमां दे दो।

कुएं पर पनघट नहीं
पोखर, बावली में पानी नहीं
मेरे हिस्से का बादल मुझे दे दो।
एक दिन की कमाई चिट्ठी लिखवाने में गवाई।
आजकल बिना लिए दिए कौन काम करता है।
सुना है इसी बस्ती में एक इंसान रहता है ‘जहान’
उस इंसान का पता दे दो।
मुझे मेरे हिस्से का आसमां दे दो।

****

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Komentarze


bottom of page