top of page

एक मौका और ...

डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव

एक बार मैं शहर से अपने गाँव जा रहा था। रास्ते में एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी यहाँ उसका 15 मिनट का स्टॉपेज था, इसलिए मैं थोड़ा टहलने के लिए स्टेशन पर उतरा।
स्टेशन पर बहुत भीड़ थी। उसी भीड़ में मेरी नजर अचानक एक बेंच पर बैठे आदमी पर गई। मैं उसको गौर से देखने लगा कि इतने में ही ट्रेन में हॉर्न दे दिया। मैं ट्रेन में वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गया और चाय वाले से चाय लेकर पीने लगा।
चाय पीते-पीते मैं अपनी पुरानी यादों में खो गया। मुझे याद आया वह दिन जब मैं रेलवे स्टेशन पर बैठकर अपनी परेशानी से निकलने का कोई रास्ता ढूंढने की कोशिश कर रहा था।
रात होने लगी थी। इतने में एक आदमी ने मुझसे माचिस मांगी। मैंने कहा, मैं सिगरेट नहीं पीता। वो मेरी बात पर हँस कर बोला, भाई!! मैंने आपसे माचिस माँगी है, सिगरेट नहीं।
मैं बोला, जब मैं सिगरेट नहीं पीता तो माचिस रख कर क्या करूँगा?
उस आदमी ने चाय वाले को माचिस और एक कप चाय देने को कहा और मुझसे बोला हाँ, आपने बात तो बिल्कुल ठीक कहीं!! पर मैंने सोचा......
इतना बोलते ही उसकी बात बीच में काटते हुए मैं बोला, आपने क्या सोचा, क्या नहीं, मुझे इससे कोई मतलब नहीं!! आप बेवजह मुझे परेशान कर रहे हैं। आप अपना काम कीजिए ना!!
इतना बोल कर मैं दूसरी बेंच पर जाकर बैठ गया। थोड़ी देर में चाय वाला आया और मुझे चाय देने लगा।
मैंने उससे पूछा कि मैंने कब चाय का आर्डर दिया?
वह बोला आपने नहीं, उन साहब ने आपको चाय देने को कहा है।
मैं गुस्सा होकर उसके पास गया और पूछा, - आपकी प्रॉब्लम क्या है?
भाई मैंने तो ऐसे ही आपके लिए चाय का आर्डर दिया था। मैंने सोचा कि बारिश ज्यादा है, ठंड भी है। आप थोड़े थके भी लग रहे हो! चाय पीने से शायद आप थोड़ा रिलैक्स महसूस करो।
मैंने कहा, हमारे देश में यही तो समस्या है कि कोई किसी को चैन से बैठने भी नहीं देता। जहाँ देखो वहाँ अपनी टांग अड़ाने लोग आ जाते हैं। मैंने सोचा था स्टेशन पर आराम से बैठ लूँगा। वहाँ मुझे कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा, क्योंकि स्टेशन पर किसी को किसी से कोई मतलब नहीं होगा, पर यहाँ आप आ गए।
इतने पर भी मैं नहीं रुका और आगे बोलता गया।
अरे भाई! आपको माचिस और चाय मिल गई ना!! तो एंजॉय करो, पर मुझे बख्श दो, मेहरबानी करके!!
और गुस्से और खीझ से लगभग अपने दोनों हाथों को जोड़ कर उसे प्रणाम करता हुआ वापस अपनी बेंच की ओर जाने को मुड़ा!
मेरी बात सुनकर वह आदमी फिर भी शांत भाव से बोला – भाई, क्यों डिस्टर्ब हो? क्या हुआ?
उसकी शांत बातें मुझे थोडा कौतुहल में डाल रही थी। मैंने भी थोड़ा शांत होते हुए उससे पूछा क्यों? आप जानकर क्या कर लोगे?
वह आदमी बोला, हो सकता है तुम्हारी परेशानी का कोई हल मिल जाए या अपनी परेशानी बताने से तुम थोड़ा हल्का महसूस करो।
उसकी बात सुनकर मुझे थोड़ी हिम्मत मिली और मैं उसे बताने लगा।
मेरे पिताजी एक सरकारी ऑफिस में चपरासी थे और मेरी मां लोगों के घर के बर्तन साफ कर करके मुझे पढ़ा रही थी।
मेरे पिताजी का सपना मुझे आईपीएस अफसर बनाने का था पर मुझे किसी की नौकरी करना पसंद नहीं था। मैं लोगों को नौकरी देना चाहता था। मैंने एक दिन अपने मन की बात अपने पिताजी को बताई।
पिताजी ने गाँव की जमीन बेचकर मुझे पैसे थमा दिए। मैं बहुत खुश हुआ। मैंने अपनी कंपनी शुरू की। समय आने पर मैंने शादी कर ली। मेरे दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं।
कुछ साल दो साल मेरी कंपनी अच्छी प्रॉफिट में चली। मैं बहुत खुश था। पर एक गलत इन्वेस्टमेंट ने सब कुछ चौपट कर दिया। पहले थोड़ा नुकसान हुआ। उसको भरने के लिए कुछ पूंजी और लगाई लेकिन वह भी डूब गई। धीरे-धीरे सब कुछ बिक गया। अब सिर पर खाली एक छत बची है। अगर कल किस्त नहीं चुकाई तो मकान नीलाम हो जाएगा फिर आसमान हमारी छत और धरती हमारा बिछोना होगी।
मेरी बात सुनकर वह आदमी बोला, तुम अपने आप को एक मौका और क्यों नहीं देते? शायद सब ठीक हो जाए।
उसने कहा आगे कहा, तुमने मनोज भटनागर के बारे में सुना है?
मैंने कहा, वही जो काफी फेमस एक्टर है!!
सुनकर वह आदमी बोला हाँ वही!!
याद है, कुछ साल पहले उसके पास चाय पीने के भी पैसे नहीं थे।
मैंने कहा, हाँ!! न्यूज़ पेपर्स में पढ़ा था।
वह आदमी बोला, उसने अपने आप को एक मौका दिया और आज देखो वह पहले से ज्यादा कामयाब है।
मैंने उसकी बात सुनकर कहा, यह सब फिल्मों की बातें हैं। असल जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं होता और फिर आप की हालत भी मुझसे खस्ता लग रही है। कपड़े फटे हुए, चप्पल टूटी हुई, आंखों में टूटा चश्मा, बाल सफेद, हाथों में लकड़ी!! वैसे आप हो कौन!! और आपका नाम क्या है?
मुझे अचानक से जैसे कुछ याद आया!!
सुनकर वह बोला, मैं ही मनोज भटनागर हूँ!!!
यह बोलकर वह बेंच पर से उठा और बोला, मैं रोज इस समय पुराने दिनों की याद करने यहाँ चला आता हूँ। और कोई मुझे मेरे उसी हाल में मिल जाता है तो उससे बातें कर लेता हूँ!!
इतना कह कर उसने वापस जाते हुए मुझसे कहा – एक और मौका दे कर देखो!! शायद सब कुछ बदल जाय!!
फिर मैंने देखा कि वह मनोज भटनागर ही था। बाहर जाकर एक चमचमाती कार में बैठकर वह चला गया।
उसके जाने के बाद मैंने मन ही मन अपने आप को एक और मौका देने का फैसला किया। अगले दिन बैंक से अपनी समस्या बता कर थोड़ा वक्त मांगा।
बैंक वाले ने मेरा रिकॉर्ड देखकर मुझे थोड़ा टाइम दिया और कुछ फाइनेंस भी किया। उससे मैंने फिर से कंपनी शुरू की और थोड़े ही समय में सब कुछ पटरी पर आने लगा। आज मैं फिर से कामयाब हूँ।
तभी टीटी की आवाज से मेरा ध्यान टूटा! मैंने अपनी टिकट दिखाई। फिर मैंने देखा कि मेरा स्टेशन भी आने वाला था।
कुछ देर में मेरा स्टेशन आ गया और मैं ट्रेन से उतर कर घर जाने के लिए टैक्सी ले कर चला गया!!
हो सकता है आप भी जीवन की परेशानियों से इसी तरह हताश, निराश, किसी रेलवे स्टेशन, पार्क या निर्जन स्थान पर बैठे हों। हो सकता है आपके पास कोई मनोज भटनागर न आये! लेकिन फिर भी, अपने लिए, अपने परिवार के लिए, क्या आप भी तैयार हैं, खुद एक मौका और देने के लिए!!!
याद रखिये कि सहारा देने के लिए हमेशा आपको एक हाथ उपलब्ध नहीं होगा! हो सकता है आपको खुद को ही सहारा देना पड़े। आखिरी दम तक टूट कर बिखरने से पहले एक बार फिर से सम्भलने की कोशिश जरूर कीजियेगा।

******

15 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page