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ओजस्विनी

मनीषा शुक्ल

जब मेरी बेटी दसवीं क्लास में पढ़ती थी, तभी हमारे यहां शीला नामक एक कामवाली बाई थी। वह हमारे यहां झाड़ू पोछा, बर्तन और कपड़े करती थी। उसका लड़का मेरी बेटी से 2 साल बड़ा था। उसने ज्यादा पढ़ाई नहीं की थी पर उसकी मां के कहने पर हमने उसे हमारे सामने एक एड एजेंसी में नौकरी पर लगवा दिया।
उसे वहां रात को एडवर्टाइज के बैनर पेंट करके लगाने जाने का काम मिला था। रात को काम करने की वजह से उसकी आदतें बिगड़ने लगी थी। हमने उसे एक दो बार टोका पर उसमें कोई फर्क नहीं आ रहा था।
उसने उसकी मां से जिद की कि उसे मोटरसाइकिल दिला दो। तब मोटरसाइकिल की कीमत 35 से 40,000 तक की थी। शीला का पति एक जगह पर नाइट वॉचमैन था। शीला ने हमें बताया तो हमने उसे समझाया।
उसने अपनी मां को अपनी जान देने की धमकी दी। शीला के बताने पर मैंने उसे कहा कि ऐसे कोई मोटरसाइकिल के लिए जान नहीं देता। तुम उसे कह दो कि तुम्हें जान देनी है तो दे दे पर मैं मोटरसाइकिल के पैसे नहीं दूंगी। पर मां का दिल था, वह डर गई और उसने बैंक से लोन लेकर उसे मोटरसाइकिल दिलवा दी।
फिर क्या था लड़के को धीरे-धीरे दारू का व्यसन भी हो गया। इधर मां मेहनत करके पैसे कमा रही थी। और यहां लड़का फालतू में उड़ा रहा था‌। उसकी दारु पीने की आदत की वजह से उसकी एड एजेंसी की नौकरी चली गई।
अब उस लड़के ने जिदकी, मुझे मुंबई काम करने जाना है‌। उसकी मां ने उसे ना कहा तो उसने फिर से जान देने की धमकी दी। वह दो-दो दिन मां को डराने के लिए घर से बाहर रहने लगा।
फिर से उसकी मां पिघल गई और उसको मुंबई जाने दिया।
वहां तो उसकी संगत और भी खराब लड़कों के साथ हो गई। काम मिलना तो दूर यह उसकी मां को उसे मुंबई पैसे भेजने पड़ते थे। इस बार उसकी मां ने हमारी बात मानी और पैसे भेजने बंद कर दिए। आखिर उसे लड़के को वापस उसकी मां के पास आना ही पड़ा।
उसके पिता की वजह से उसे भी एक जगह वॉचमैन की नौकरी मिल गई‌। फिर उसे एक लड़की पसंद आ गई‌। उसने फिर से अपनी मां से जिद की, कि मुझे तो इसी लड़की से शादी करनी है। और उसकी मां उसे लड़की के घर गई और हाथ पैर जोड़कर समझ कर अपने लड़के से उसे लड़की की शादी करवाई।
शीला की बहू भी उसके साथ दो-चार घरों में काम करती थी‌। अच्छी लड़की थी। पर उसका बेटा फिर भी नहीं सुधरा। उसने अपनी पत्नी से भी पैसे लेकर दारू पीना चालू कर दिया। इस वजह से उसकी वॉचमैन की नौकरी फिर से चली गई।
इस बीच उनको एक बेटा भी हो गया। उसकी बीवी तो बेचारी काम कर रही थी, पर घर में बच्चा आने से वह उसके पति को दारू के लिए पैसे नहीं दे सकती थी। उसके पति ने उस पर हाथ उठाना चालू कर दिया। आखिर में वह लड़की उसे छोड़कर अपने मायके चली गई।
अब शीला के लड़के के पास पैसे मांगने के लिए उसके मां-बाप ही रह गए‌। वैसे शीला के पति को भी दारू पीने की आदत थी। पर वह अपनी नौकरी की वजह से ज्यादा नशा नहीं करता था। वैसे भी शीला के पति को उसके लड़के पर बहुत गुस्सा था क्योंकि उसकी नौकरी चली गई थी।
एक दिन दोनों बाप बेटों में बहुत लड़ाई हो गई। पता नहीं बेटे ने बाप को क्या बोला कि बाप ने दोपहर में अपने गले में रस्सी डालकर अपनी जिंदगी खत्म कर ली। शीला तो तब काम पर आई हुई थी। वहां से फोन आने पर वह भाग कर घर में गई।
पुलिस को शायद उसने कुछ पैसे दिए तो उसके पति का केस वैसे ही निपट गया। उसके बेटे में कोई सुधार नहीं था। शोभा ने खाना बनाने के काम चालू किया। इससे उसकी आमदनी भी बढ़ रही थी। पति नहीं और बेटा नशा करता था।
बेटे की पत्नी ने डायवोर्स की मांग की‌। शीला ने शर्त रखी की बेटा उसको चाहिए। उसने मेरे यहां भी खाना बनाने का काम बांधा था। मैंने उसे डांटा कि तुम्हारा पति तो शराब पीता था, बेटा भी पूरे दिन नशे में धुत रहता है, और ऐसे में तुम्हें बेटे का बेटा क्यों चाहिए।
ऐसे खराब माहौल में तुम अपने पोते को भी बिगाड़ दोगी।
इससे अच्छा है बेटा मां के पास रहे। पर पोते के मोह ने उसे अंधा कर दिया था‌। आखिर डाइवोर्स भी हो गया और उसे पोता भी मिल गया। इस बीच शीला की मां उसकी मदद को आई। उसने घर की जिम्मेदारी संभाल ली।
अब उसको अपने पोते की फिक्र नहीं थी। पर उसका बेटा उसके हाथ से जा रहा था। बहुत नशा करने की वज़ह से उसके बेटे को लिवर की बीमारी हो गई। सब लोग, जहां वो काम करती थी, वो उसकी मदद करके थक गये थे। क्योंकि वह हर बार अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही थीं। उसके बेटे के इलाज में उसके काफी पैसे लग गये।
आज भी वो सुबह 8 बजे से रात के 8 बजे तक काम करके अपने बेटे और उसके बेटे को बड़ा कर रहीं हैं। वो अब 55 साल की तो हो गई है। पोता पढ़ने में ज्यादा होशियार नहीं है। पता नहीं, वो भी कभी कमाकर उसकी दादी का सहारा बने के नहीं।
उसकी जिंदगी देख कभी कभी हमें लगता है कि हम यूंही फरियाद करते रहते हैं। हम अपना रोना रोते हुए मैदान छोड़ देते है। जब की यह अकेली औरत तकदीर से लडते हुए बिना थके, बिना रुके अपने फर्ज निभा रही हैं।

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