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और क्या चाहिए?

सरला सिंह  

सुबह पांच बजे अलार्म बजा, सुभी आज बेमन से उठी। अंग-अंग दर्द कर रहा था, दो मिनट और लेट जाती हूं। उसमें ही दस मिनट निकल गये। आखिर सवा पांच पर तो उठना ही पड़ा।
अलसाई आंखों को खोला और बाथरूम में जाकर मुंह धो आई। फिर फटाफट किचन में गई, एक बर्नर पर पानी चढ़ाया, सास को गर्म पानी दिया फिर सब्जियों को फ्रिज से निकाला।
क्या बनाऊं, कल इसके लिए सोच नहीं पाई थी। कल अचानक से पास में रह रहा बुआ सास का परिवार आ गया, डिनर भी यहीं था। रात को वो देर तक बैठे फिर उनके जाने‌ में देर हो गई फिर सोने में और सुबह आंख खुलने में।
भिंडी बना लेती हूं। ये सोचते ही लग गई भिंडी काटने में, सास आराम से गर्म पानी घूंट घूंट कर पी रही थी। मन में तो आया कह दे, मांजी आप सब्जी काट दें तो मेरी मदद हो जायेगी। पर हिम्मत नहीं हुई, रोज सोचती है पर कह नहीं पाती।
शादी को दस साल होने को जा रहे हैं, पर आज तक कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। सुभी के आते ही सास ने किचन से सन्यास ले लिया।
फटाफट सुभी ने भिंडी काटकर छौंक दी, इतने में बच्चों को उठाने का वक्त हो गया। एक तरफ सब्जी, दूसरे बर्नर पर चाय, तीसरे पर दूध चढ़ाकर बच्चों को उठाने चल दी। छोटे बच्चों को उठाओ, सहलाओ, लाड़ लड़ाओ, गोदी में बिठाकर पुचकारो तब जाकर उठते हैं। उसमें भी दस से पन्द्रह मिनट लग जाते हैं।
"मम्मी आज दूध नहीं पीना, आप पिला दो तो पी लूंगी।"
मन तो करता है अपने बच्चों को अपने हाथों से खिलाऊं, पर उसी वक्त गैस पर रखी सब्जी हिलानी थी, नहीं तो जल जाती। "छोटी अपने आप पियो मुझे और भी काम हैं।" सुभी ने यूं ही बनावटी गुस्से में कहा।
कभी कभी लगता है मैं अपने बच्चों को टाइम नहीं दे पाती, अब क्या करूं?
शिखा ने फटाफट परांठे सेंके और दोनों बच्चों को तैयार करके टिफिन पैक कर दिया। "अरे! मम्मी पानी की बोतल?"
"हां वो तो यही रह गई।" हड़बड़ी में सुभी ने वो भी भरी। दो मिनट भी देर हो जाये तो बस रूकती नहीं है, फिर बच्चों को स्कूटी से इतना दूर छोड़ने जाओं।
"सुभी चाय" ससुर जी अखबार का पन्ना पलटते हुए बोले। जैसे तैसे चाय दी और बैग लेकर दौड़ी।
बच्चों को बस में बैठाकर बोझिल कदमों से घर आते हुए पार्क में टहल रही औरतों को देखकर उसका भी मन हुआ कि वो भी सुबह की ताज़ा हवा में टहले पर अभी उसे नैतिक का टिफिन पैक करना था, नाश्ता बनाना था। घर आकर उसने रोज की तरह सास, ससुर, पति के लिए नाश्ता बनाया, फिर सारे बिस्तर समेटे, यहां-वहां पड़े कपड़े उठाये, वाशिंग मशीन में कपड़े लगाये। किचन के दूध, दही के बर्तनों को खाली किया।
उसने तसल्ली से बैठकर चाय भी नहीं पी कि तभी खबर मिली कि आज मेड नहीं आयेगी, उसके पांव में चोट लगी है।
घर का काम निपटाने में वक्त लग गया, लंच बनाया, लंच का काम निपटा था कि बच्चों को लाने का वक्त हो गया, छोटी एक बजे स्कूल से आती है। उसे लेकर आई, उसका खाना पीना किया, कपड़े बदले, बड़ी मुश्किल से उसे सुलाया था कि तभी बड़े बेटे को लाने का टाइम हो गया। सुभी का मन कर रहा था कि वो भी एक झपकी ले ले, पर फिर स्कूटी स्टार्ट की और बेटे को तीन बजे बस स्टॉप से लेकर आई। दोनों बच्चों के आने का अलग वक्त है, दो बार चक्कर हो जाते हैं।
ससुर जी टीवी देख रहे थे, वो भी ला सकते थे, पर ये भी सुभी का काम था।
सोनू की स्कूल की बातें सुनने में लीन थी, उसे खाना दिया था कि छोटी शोर शराबे से उठ गई। फिर उसे बहलाने में लग गई। सुभी, चार बज गए, चाय का टाइम हो गया, बना दो। सुभी की सास पलंग पर करवट बदलते हुए बोली।
सुभी तेज कदमों से किचन में दौड़ी और चाय चढ़ा दी। अपनी भी चाय का कप लेकर कमरे में आई। दोनों बच्चों की डायरी चैक की, उन्हें होमवर्क करवाया, छोटी का डिक्टेशन था, उसे स्पेलिंग याद करवाई, सोनू के कल मैथ्स का टेस्ट था, उसे समझाया। इसी में छह बज गये, सास-ससुर जल्दी खाना खा लेते हैं, एक बर्नर पर सब्जी चढ़ाई तो दूसरे पर बच्चों के लिए दूध। सीटी बजते ही आटा मला, बच्चों को दूध देकर तैयार किया और दोनों को ड्राइंग क्लास छोड़कर आई।
आकर सास-ससुर को खाना खिलाया फिर बच्चो को लाने का वक्त हो गया। शाम को पार्क में चहलकदमी करती औरतों को देखकर उसका भी मन करता वो भी कुछ देर यहां रूके, सबसे बात करे।
लेकिन नैतिक के ऑफिस से आने का वक्त हो जाता है, जाते ही चाय चढ़ा दी। तभी नैतिक के चिल्लाने की आवाज आई, सुभी मेरा टॉवल कहां है? कितनी बार बोला है मुझे बाथरूम में चाहिए, मुंह हाथ धोने के बाद चाहिए होता है। वो मैंने धो दिया था, बाहर सूख रहा है अभी लाती हूं। सुभी जैसे ही टॉवल लेकर आई।
नैतिक के मम्मी-पापा कह रहे थे कि "पता नहीं सारा दिन करती क्या है? घर में ही तो रहती है" ये सुनकर सुभी कड़वे घूंट पीकर रह गई।
सदा से औरतों के घरेलू कामों को कम आंका जाता रहा है। वो कितना भी कर लें, सुबह से रात तक लगी रहती हैं, घर के लिए अपनी नींद, चैन, सेहत, करियर तक त्याग देती हैं, फिर भी यही सुनने को मिलता है कि घर पर ही तो रहती है, कुछ नहीं करती।
ये उसके रोज के दिन में सी एक था लेकिन आज कुछ अलग हुआ सुभी का दिल आहत हो गया था क्योंकि नैतिक ने भी सहमति के साथ सुना था। सब कुछ देखते जानते हुए भी उसके लिए एक शब्द भी नही बोला। एक औरत को पति से ही उम्मीद होती है, जब वो भी टूट जाय तो अस्तित्व ही नही रहता खुद का, ऐसा लगता हैं।
सुभी दूसरे दिन उठी यथावत काम किया, उसके बाद अपने और बेटी के कपड़े पैक किये, नैतिक को फोन किया।
"मैं कुछ दिन के लिए मायके जा रही हुँ, माँ ने बुलाया है, 1 साल हो रहा है उनको देखा नही है।"
"अरे ऐसे कैसे अचानक"
और माँ को ही देखना है तो में दिखा लाऊंगा रुकने की क्या जरूरत है। मेरी भी तबियत ठीक नही है, आराम कर लूंगी कुछ दिन वहां सुभी ने कहा।
अरे वो तो यहां भी कर सकती हो और करती ही हो नैतिक ने खीजते हुए कहा।
हां तो आराम ही तो करती हुँ यहां की जगह वहां कर लूँगी।
अब तो नैतिक आगबबूला हो गया ठीक है जाओ बच्चों को भी ले जाना, हो गई उनकी तो पढ़ाईं।
गुड़िया को ले जा रही हुँ स्कूल में बात कर ली है, सोनू के स्पोर्ट्स चल रहे है तो यहीं रहेगा। कहकर फोन काट दिया।
जाते समय सास ससुर के पैर छुए और निकल गई, उन्होंने पूछना भी जरूरी नही समझा। बेटे से बात हो गई थी। शायद तो गुस्से में देख रहे थे, पिछले 10 सालों में कभी कोई कसर नही छोड़ी थी। घर के काम में सभी की सेवा खुशामद करने में, लेकिन कभी प्यार के 2 बोल सुनने नही मिले, कभी पलट के नही बोला ना आज हिम्मत थी सो चुपचाप चली गई।
इधर फिर सुबह हुई, नैतिक लेट उठा बेटे का भी स्कूल छूट गया, किचिन में आया तो माँ ने चाय बड़ी मुश्किल से बनाई, नास्ता बाहर किया और घर में भी सबको दे गया।
जैसे तैसे सुबह का निपटा तो दोपहर के खाने की चिंता सास को सताने लगी कहां तो मुँह सी निकलते ही हर चीज हाजिर हो जाती थी और अब दाल रोटी भी नही बन पा रही। दाल चावल बना लिए, वो ही सबने खाय।
साम को चाय फिर डिनर सो हालात खराब हो गई सासु माँ की। उस पर कपड़े साफ सफाई से लेके हजारों काम घर में दिखने लगे उसी घर में जिसमें कोई काम नही था सुभी के लिए।
दूसरे दिन ससुर को छोड़ने जाना था बेटे को स्कूल और फिर लेने जो उनको पहाड़ सा काम लग रहा था। बात बात पर सुभी का नाम चिल्लाते सभी फिर शांत हो जाते।
2 दिन बीत चुके थे तीसरे दिन नैतिक शाम को लौटा तो मम्मी पापा के ही पास बैठ गया। पापा ने कहा "क्या हुआ बेटा"
कोई काम ठीक से नही हो रहा है, ना टाइम सी उठ पा रहा ना सो पा रहा ना ही पेट भर खा पा रहा हुँ। ऑफिस का काम भी पेंडिंग है। उधर बेटे के स्कूल सी नोटिस आया है, होमवर्क नही हुआ है। हमारा भी यहीं हाल है "ना जाने बहु कब आएगी"
सुभी के 2 दिन ना रहने से हमारी ये हालत हो गई है, और हम कहते है "वो करती क्या हैं" नैतिक की आँखे भर आई थी।
हां बेटा बहु ने घर ऐसे संभाला था जैसे लगता था अपने आप ही सब हो रहा है। काम का बोझ उसी को समझ आता है जो ढोता है, करवाने बाले को जब समझ आता है जब वो करता है। हम सबने अपनी जिम्मेदारी उसके ऊपर ही छोड़ दी इसलिए काम की आदत ही छूट गई। वो हमारे हिस्से का भी काम कर रही थी बिना किसी शिकायत के, जा बेटा उसे ले आ।
दूसरे दिन नैतिक सुभी को ले आया वो भी आ गई बिना कुछ कहे क्योकि घर की हालत क्या होगी उसको अंदाजा था। और नैतिक का लेने जाना भी गवाही दे ही रहा था।
दूसरे दिन सुभी उठी तो नैतिक उठ चुका था बच्चों को को तैयार कर रहा था, सुभी हड़बड़ा सी गई कैसे आँख नही खुली तुरंत बाथरूम में गई, आकर सीधा किचिन में जाने लगी तो नैतिक ने बोला।
तुम चाय बना लाओ हम साथ में पियेंगे।
वो किचिन में गई तो सासु माँ पहले से थी बोली चाय ले जाओ बहु मैंने बना दी है, हम लोगों ने पी ली है नास्ते के लिए सब्जी काट दी है आकर बना लेना।
आज पहली बार सुकून से नैतिक के साथ चाय पी थी सुभी ने। 
फिर किचिन में आके नास्ता बनाया बच्चों को रखा और जैसे ही स्कूटी की चाभी उठाई, ससुर बोले लाओ बहु में छोड़ आऊँ बच्चों को थोड़ी हवा भी लग जायगी सुबह की इतने सरलता से सरा काम हो गया था।
सुभी आकर शांत बैठ गई। सासु माँ आई नैतिक भी। सासु माँ बोली बहु हमें समझ आ गया है, वो जो तु बताना चाहती थी। अब से हम सब तुम्हारे साथ काम में हाथ बटायेंगे, हम भूल गये थे कि एक बहु के आने से हमारी जिम्मेदारियाँ बट जाती हैं, खत्म नही होती तू नौकरानी नही बहुरानी है।
नैतिक ने कहा कई बार हमने बोला है तुमको "तुम करती क्या हो"
आज समझ आ गया है, ये घर सूचारु रूप से सिर्फ तुम्हारी बदौलत ही चलता है।
तभी ससुर जी आ गये बोले बहु आज हम सब अपनी जिम्मेदारी समझेंगे जो बन सकेगा तुम्हारी हेल्प करेंगे।
नैतिक ने सुभी से पूछा बताओ तुम्हें क्या चाहिए।
सुभी ने कहा, "बस अब और क्या चाहिए"
सुभी रो रही थी सबकी आँखों में आँसू थे लेकिन ये खुशी के आँसू थे।

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