top of page

औलाद वाले

डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव

रास्ते में एक खंभे की लाइट जल रही थी। उस खंभे के ठीक नीचे एक 15 से 16 साल की लड़की पुराने फटे कपड़े में डरी सहमी सी अपने आँसू पोछते हुए खड़ी थी। जैसे ही उस बुजुर्ग की नजर उस लड़की पर पड़ी वह रूक सा गया।
लड़की शायद उजाले की चाह में लाइट के खंभे से लगभग चिपकी हुई सी थी। वह बुजुर्ग उसके करीब गया और उससे लड़खड़ाती जबान से पूछा तेरा नाम क्या है। तू कौन है और इतनी रात को यहाँ क्या कर रही है?
लड़की चुपचाप डरी सहमी नजरों से दूर किसी को देखे जा रही थी। उस बुजुर्ग ने जब उस तरफ देखा जहाँ लड़की देख रही थी तो वहाँ चार लड़के उस लड़की को घूर रहे थे। उनमें से एक को वो बुजुर्ग जानता था। लड़का उस बुजुर्ग को देखकर झेप गया और अपने साथियों के साथ वहाँ से चला गया। लड़की उस शराब के नशे में बुजुर्ग से भी सशंकित थी फिर भी उसने हिम्मत करके बताया। मेरा नाम रूपा है। मैं अनाथाश्रम से भाग आई हूँ। वो लोग मुझे आज रात के लिए कहीं भेजने वाले थे। दबी जुबान से बड़ी मुश्किल से वो कह पाई।
बुजुर्ग:- क्या बात करती है, तू अब कहाँ जाएगी।
लड़की:- नहीं मालूम।
बुजुर्ग:- मेरे घर चलेगी?
लड़की मन ही मन सोच रही थी कि ये शराब के नशे में है और आधी रात का समय है। ऊपर से ये शरीफ भी नहीं लगता है, और भी कई सवाल उसके मन में धमाचौकड़ी मचाए हुए थे।
बुजुर्ग:- अब आखिरी बार पूछता हूँ मेरे घर चलोगी हमेशा के लिए?
बदनसीबी को अपना मुकद्दर मान बैठी गहरे घुप्प अँधेरे से घबराई हुई सबकुछ भगवान के भरोसे छोड़कर लड़की ने दबी कुचली जुबान से कहा जी हाँ।
उस बुजुर्ग ने झट से लड़की का हाथ कसकर पकड़ा और तेज कदमों से लगभग उसे घसीटते हुए अपने घर की तरफ बढ़ चला। वो नशे में इतना धुत था कि अच्छे से चल भी नहीं पा रहा था। किसी तरह लड़खड़ाता हुआ अपने मिट्टी से बने कच्चे घर तक पहुँचा और कुंडी खटखटाई थोड़ी ही देर में उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला। पत्नी कुछ बोल पाती कि उससे पहले ही उस बुजुर्ग ने कहा ये लो सम्भालो इसको "बेटी लेकर आया हूँ हमारे लिए।" अब हम बाँझ नहीं कहलाएंगे आज से हम भी औलाद वाले हो गए।
पत्नी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे और उसने उस लड़की को अपने सीने से लगा लिया।

*****

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page