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कौआ हकनी

एस डी ओझा

वह कौआ हकनी थी। कौओं को भगाया (हांका) करती थी। उसे यह काम खुद राजा ने सौंपा था। कभी वह राजा की अंक शायिनी हुआ करती थी। जी हाँ, राजा की पटरानी। इस पटरानी के दुर्दिन तब शुरु हो गये थे जब राजा मगह देश से एक और रानी लाए थे। रानी रुपमती के रुप लावण्य के आगे पटरानी फीकी पड़ गयी थीं। रुपमती को भी उनका पटरानी होना फुटली आँखों भी नहीं सुहाया था। उसकी ईर्ष्या तब और बढ़ गयी जब उसे पता चला कि पटरानी हमल से है। इसका मतलब कि पटरानी का हीं बालक राजा बनेगा। क्योंकि बड़ा बेटा हीं राज्य का उत्तराधिकारी हुआ करता था।
रानी रुपमती प्रत्यक्षतः तो पटरानी की खूब देख भाल किया करती थी, पर उसके दिमाग में एक भयानक षड़यंत्र चल रहा था। वह किसी भी तरह से पटरानी के गर्भ को नष्ट करना चाहती थी। वह पूरे रनिवास पर अपना कब्जा जमाए हुई थी। राज पुरोहित को भी उसने अपने पक्ष में कर रखा था। राज वैद्य भी उसकी हीं भाषा हीं बोलते थे। राज वैद्य से पटरानी को धीमा जहर दिलवाना शुरु किया था ताकि जच्चा व बच्चा दोनों नष्ट हो जाएँ। लेकिन जच्चा व बच्चा आखिर तक सही सलामत हीं रहे थे।
रुपमती ने गर्भ नष्ट करने के लिए पटरानी के आने जाने के रास्ते में तेल भी गिरवा दिया था। पटरानी फिसल कर गिरीं तो जरुर। उन्हें चोट भी आई, लेकिन उनका गर्भ सुरक्षित रहा। रुपमती गर्भ गिराने में सफल नहीं हुई। नियत समय पर पटरानी को एक बेटा व एक बेटी पैदा हुए थे। पटरानी का दर्द से हाल बेहाल था। वे बेहोश थीं। उन्हें पता हीं नहीं चला कि उन्होंने जुड़वा बच्चों को जना है। रानी रुपमती ने उन बच्चों को गायब करवा दिया। अफवाह फैला दी गयी कि पटरानी ने एक ईंट और एक पत्थर को जन्म दिया है।
राज पुरोहित ने इस घटना को बड़ा हीं अशुभ माना था। उसका मानना था कि राज्य पर कभी भी बड़ी बिपत्ती आ सकती है। उसने राजा से कहकर पटरानी को रनिवास से निकलवा दिया। उन्हें कौआ हाकने का काम मिला था। वह दिन भर भाग भागकर शाही बाग से कौए उड़ाया करतीं थीं। उन्हें तीन बक्त का भोजन शाही रसोई से मिल जाया करता था। सब उन्हें कौआ हकनी के नाम से बुलाने लगे थे। शाही बाग में हीं उन्हें एक कमरा रहने के लिए दे दिया गया था।
रानी रुपमती ने उन बच्चों को जान से मरवा दिया था। मारकर उनकी लाश शाही बाग में गड़वा दिया था। जहाँ लाश गाड़ी गयी थी, वहाँ एक मोला और एक केतकी के पौधे उग आए थे। मोला भाई था। केतकी बहन थी। भाई बहन आपस में खूब बातें किया करते थे। जब हवा चलती तो दोनों एक दूसरे को छूकर अठखेलियाँ किया करते थे। दोनों भाई बहन अपनी माँ की इस हालत से बहुत दुःखी हुआ करते थे। जब पूर्व पटरानी उनके पास से गुजरतीं तो भाई बहन अपनी माँ को देखकर बहुत हीं पुलकित हो उठते थे।
केतकी में एक दिन फूल आए तो सारा बाग मह मह कर उठा। एक दिन राजा बाग में सुबह सुबह टहल रहे थे। उन्हें केतकी के फूल बड़े सुहाने लगे। उनकी खूश्बू से उनका मन प्रफुल्लित हो उठा था। वे फूल को तोड़ने के लिए केतकी की ओर जब बढ़ने लगे तो केतकी ने अपने भाई मोला से कहा था -
सुनबे तऽ सुनु भइया मोलवा रे ना!
ऐ भइया राजा पापी अइले फूल लोर्हनवा रे ना !
भाइ ने कहा था -
सुनबे तऽ सुनु बहिना केतकी रे ना !
ऐ बहिनी डाढ़े पाते खिली जो आकाशवा रे ना !
भाई की बात मानकर बहन अपनी डालियों को आकाश की ऊँचाइयों की तरफ ले गयी। राजा फूल नहीं तोड़ पाए थे। उन्होंने माली से कहा। माली के हाथ भी फूलों तक नहीं पहुँच पाये थे। सीढ़ी मंगवाई गयी। सीढ़ी छोटी पड़ गयी। कई बड़ी सीढ़ियाँ मंगवायी गयी। सीढ़ियां छोटी पड़ती रहीं और बहन केतकी ऊपर उठती गयी। कौआ हकनी भी वहीं थी। उसने भी कोशिश करने की ठानी। कौआ हकनी भी फूल तोड़ने के लिए आगे बढ़ी थी। केतकी ने फिर भाई से कहा था -
सुनबे तऽ सुनु भइया मोलवा रे ना !
ऐ भइया अम्मा सोहागिन अइली फूल लोर्हनवा रे ना !
भाई ने कहा था -
सुनबे तऽ सुनु बहिना केतकी रे ना !
ऐ बहिनी डाढ़े पाते सोहरि जो जमीनिया रे ना !
भाई के कहने पर केतकी अपनी डाली को नीचे झुकाकर जमीन पर ले आई। कौआ हकनी ने फूल तोड़ लिया और राजा को दे दिया। राजा इस चमत्कार से आश्चर्यचकित रह गये। तभी राजा के सामने एक बालक और बालिका प्रकट हुए। उन्होंने राजा को अपना परिचय उनके पुत्र और पुत्री के रुप में दिया था। राजा अपनी संतान से मिलकर बहुत खुश हुए थे। उनके सामने रनिवास में हुए षड़यंत्र का पर्दाफाश हो चुका था। राजा ने रुपमती को मृत्यु दण्ड दिया था। राज वैद्य और राज पुरोहित को देश निकाला मिला था। कौआ हकनी को फिर से पटरानी का दर्जा मिला। राजा पटरानी और अपनी संतानों के साथ सुख पुर्वक रहने लगे।

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