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कटोरी पनिहारिन

डॉ. जहान सिंह जहान

“कटोरी में जिसने चाहा खाया और उसे झूठा करके छोड़ दिया।”
कटोरी, ओ कटोरी, कहां मर गई? बड़ी ठकुराइन चिल्ला-चिल्ला कर थक गई। तभी पीछे से आवाज आई, मालकिन मैं आ गई। अरे कलमुही खसमाखानी कहां थी? बुलाते-बुलाते मेरा तो गला दुखने लगा। कटोरी डरी सहमी बोली। मैं छत पर अनाज साफ कर रही थी। उसे छोड़ नासपिटी, बड़े ठाकुर को आज तहसील जाना है। जल्दी जा उनके नहाने के लिए पानी भर दे। जी मालकिन कहती हुई कटोरी गुसलखाने की तरफ लपकी।
कटोरी भरापूरा बदन, घुंघराले बाल, चटक श्यामला रंग, तीखा नाक नक्श, ठुडी पर गोदन, बड़ी-बड़ी आंखों में काजल, दांतों में मिस्सी, कानों में बालियां, गले में सुतिया वजनदार, कमर में काले धागे की करधनी, कांख के ऊपर चोली, नाभि के नीचे घाघरा टखने तक, पैरों में मोटी-मोटी खडूवा और लछछे। एक कलाई पर नाम का गोधन और दूसरी कलाई में उसके खसम नथ्था का नाम। बस्ती की एक खूबसूरत औरत, बड़े घरों की बहुयें, बेटियां उससे ईर्ष्या करती थीं। हवेली के बाहर मलिन बस्ती में एक झोपड़ी डालकर मढैया में रहती थी।
ठाकुर जगताप सिंह एक निर्दई अय्याश जमीदार था। उम्र ढल रही थी, पर मजबूत कद काठी रोबीली मूछें, भारी आवाज अभी भी शासन करने के लिए काफी थी। कटोरी जिस दिन बिदा होकर आई। उसकी डोली हवेली के चबूतरे पर उतारी गई। ठकुराइन ने मुंह दिखाई की रस्म अदा की और भेंट दी। किसी प्रजा की शादी होकर आती है, तो दुल्हन पहले हवेली में उतारी जाती, ऐसी प्रथा थी। कटोरी पर नजर पड़ते ही, ठाकुर अपना दिल बैठा।
कटोरी गुसल खाने में पानी भर रही थी। अचानक कलसा फिसला और वह भीग गई। चोली, घाघरा तरबतर हो गया। वो शरमाई सी बदन संभालने लगी। देखते ही देखते ठाकुर भेड़िया बन गया और कटोरी भेड़। कटोरी छटपटाती रही गिड़गड़ती रही और वह भूखे दरिंदे की शिकार हो गई।
कुछ देर बाद कटोरी रोती और डर से कांपती गुसलखाने से निकली। ठाकुराईन को समझते देर न लगी। उसने कटोरी को सीने से लगाया और पुचकार कर शांत कराया। और हाथ जोड़कर विनती करने लगी कि यह बात हवेली के बाहर न जाए। अब हमारी इज्जत तुम्हारे हाथ है। मैं ठाकुर को समझाऊंगी कि आगे इस तरह की हरकत ना करें।
कटोरी ने चुप रहना ही हितकर समझा क्योंकि नथ्था बहुत गुस्सैल मर्द है। अगर उसे पता चला तो कुछ अनर्थ हो जाएगा। ठकुराइन एक समझदार और अच्छे किरदार की महिला थी। उसके कटोरी के ऊपर कई एहसान थे। कटोरी ने चुप रहना ही ठीक समझा। छोटे ठाकुर शिव प्रताप सिंह जो बाहर चबूतरे पर बैठा था। उसने कटोरी को गुसलखाने से ऐसी हालत में निकलता देख लिया। अपने बड़े भाई के चरित्र के बारे में वह अच्छी तरह से जानता था। पूरा मामला उसने भॉप लिया और उसकी भी भूख जाग गई। फिर वह मौके की तलाश में रहने लगा और एक दिन उसने भी मुंह काला कर लिया।
छोटे ठाकुर शिव प्रताप सिंह शराब, वेश्यावृत्ति में लिप्त घर पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता था। पत्नी रूप कुमारी जिस दिन से हवेली में आई, आज तक बाहर न निकली अकेली और मायूस रहती थी। आज व्रत है। पूजा के लिए खुद फूल चुनने हैं। तैयार होकर नथ्था कहार को साथ चलने की आवाज दी। नथ्था जी मालकिन कहकर गाड़ी के पीछे-पीछे चल दिया। रूप कुमारी खुली हवा, नहर का ठंडा ठंडा पानी, आम का बाग, वह एक पिंजरे से निकाल कर पंख फैलाए आसमान में उड़ती मैंना बन गई। सोचते-सोचते बचपन में चली गई और आम तोड़ने की जिद करने लगी। नथ्था को घोड़ा बनकर पीठ पर खड़ी होकर आम तोड़ने लगी। नौकर तो नौकर उसे आज्ञा का पालन करना होता है। अचानक रूप कुमारी का पैर फिसला और नथ्था के ऊपर गिर पड़ी। नथ्था चौड़ा सीना, मजबूत बाजू, घने बाल, काली मूंछे, एक मर्द का अहसास देती गर्म सांसे। दोनों की हदें टूटी सरहदें मिलकर एक हो गई। एक तूफान आया। जो बारिश के बाद ही थमता है। बात हवेली तक पहुंची। बड़ी ठकुराइन एक समझदार प्रशासनिक महिला थी। उसे रूप कुमारी की प्यास का अंदाजा था और छोटे ठाकुर के कर्मों की एक झलक। अतः इसे नैसर्गिक न्याय मान कर दोनों को माफ कर दिया।
कटोरी पनिहारिन
बस्ती के पनघट की रौनक,
हर कोई उसको निहारे।
वो जब कमर पर गागर संवारे।।
कुंवर राजेंद्र सिंह बड़े ठाकुर का पुत्र शहर से गर्मी की छुट्टियां मनाने हवेली में आया। एक दिन वह बाहर चौपाल पर बैठा संगीत सुन रहा था। कटोरी आंगन में धान कूट रही थी। एक बेर बेचने वाली लड़की अंदर आई और बेर खरीदने के लिए कुंवर से मनुहार कर रही थी। कुंवर ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी और खींच लिया। वह चिल्लाई और रोने लगी। कटोरी ने आवाज सुनी और दौड़ी चली आई। दृश्य देखकर हस्तप्रद रह गई। उसकी आत्मा ने उसे कचोटा, जमीर जागा और बोली मौन तोड़ा। अब चुप न रहूंगी और अन्याय नहीं सहूँगी और अन्याय होने भी नहीं दूंगी। उसने ठाकुर को ललकारा, हाथ में मुसल था, उसे हवा में लहराया, एक दुर्गा का रूप। ठाकुर डर कर पीछे हट गया। कटोरी ने लड़की को गले लगाया चुपाया और बाहर भेज दिया। बड़ी ठकुराइन छत से देख रही थी। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। लगा एक स्त्री भी पुरुष समाज से लड़ सकती है। यदि साहस कर ले। नीचे उतरकर कटोरी को गले लगाया। कुंवर गजेंद्र बहुत शर्मिंदा था और रात को ही शहर वापस चला गया।
कटोरी अब कटोरी ना थी
कटार बन चुकी थी।
बस्ती में अन्याय के लिए हथियार बन चुकी थी।
बेर बेचने वाली लड़की ने बात बस्ती में जंगल की आग की तरह फैल गई थी। मलिन बस्ती की लड़कियां, औरतें जो भी रसूखदार मर्द की भूख का शिकार बनती रही, उन्होंने भी मौन तोड़ा और कटोरी की तरह साहस दिखाया। कटोरी पनिहारिन अब बस्ती के महिलाओं की एक नेता बन गई। नथ्था ने भी उसका पूरा साथ दिया।
एक दिन कटोरी बस्ती की पीड़ित महिलाओं के साथ तहसीलदार से मिली। अंग्रेजी हुकूमत थी। अंग्रेज के बगल में उनसे मिलने का इंतजार कर रही थी। तभी उसकी पत्नी रूथ ने कटोरी को देखा और उसे अपने लिए ग्रह सेवक चुन लिया। नथ्था ने भी सहर्ष अपनी सहमति दे दी। वहां काम के दौरान उसे समझ में आया कि शिक्षा बहुत जरूरी है। इस अंधेरी दुनिया से बाहर निकालने के लिए। मैडम रूथ से उसने अपनी इच्छा बताई। रूथ ने बस्ती में एक पाठशाला खुलवाने के लिए मदद की। कटोरी ने एक कन्या पाठशाला आरंभ कर दी। अब अपने अधिकारों के लिए शिक्षा ही एक रास्ता है। कटोरी ने ऐसी अलख जगाई कि आसपास के क्षेत्र के लोगों में अन्याय के लड़ने की शक्ति महिलाओं को मिलने लगी। कटोरी कन्या पाठशाला के 90 वर्ष पूरे होने पर एक जलसा किया गया। कटोरी पनिहारिन का बड़ा चित्र आज भी पाठशाला में सुसज्जित है। नई पीढ़ी के लिए उदाहरण बन गई।
“अगर साहस है तो, हर बुराई से लड़ सकते हैं।”

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