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कमज़ोर लइकी

श्रीपाल द्विवेदी

ऋतु के व्हाट्स एप्प पर कई लड़कों से दोस्ती और चैटिंग पढ़कर राज का चेहरा लाल हो गया। गुस्से से आँखों से अंगारे निकलने लगे, मुट्ठियां भींच गई। क्रोध से पूरा शरीर काँपने लगा। दिमाग मे ऐसा लगा जैसे कोई हथौड़ा चला रहा हो। यद्यपि सारी चैटिंग नार्मल थी। अच्छे और मजाकिया चुटकुले और बातें थी जो फ्रेंड्स में होती है। कुछ दोस्तों ने ऋतु की खूबसूरती और उसके डीपी की तारीफ की थी इस बात पर राज और भी जल भुन गया था।
दोनों की शादी के अभी सात दिन ही हुए थे। "ऋतु!! ऋतु !! "पूरी ताकत और गुस्से से राज चिल्लाया। "क्या हुआ?" ऋतु घबराई सी कमरे में पहुँची तबतक उसके सास ससुर और ननद भी कमरे में आ गए थे।
राज ने सबके सामने चिल्लाना और अपमान करना शुरू किया। "माँ ये देखो इस लडक़ी के व्हाट्स एप्प पर कई लड़कों से दोस्ती हैं ये सही लड़की नही है?"
सासु माँ ससुर और ननद भी जलती नेत्रों से ऋतु को देखने लगे। ऋतु को अपनी गलती नही समझ आयी वो हतप्रभ खड़ी थी जो राज रात दिन उसके प्यार का दम्भ भरता था, उसकी खूबसूरती के कसीदे पढ़ता था, उसके लिए आसमान से तारे तोड़ लाने की बातें करता था उसके इस रूप की ऋतु ने कल्पना भी न की थी।
"राज मैंने भी तुम्हारा व्हाट्स एप्प देखा तुम्हारी भी कई लड़कियों से दोस्ती है। तुम्हारी बहन रानी के भी कई लड़के अच्छे दोस्त होंगें इसमें गलत क्या है?" ऋतु के बोलते ही "चुप! जबान लडाती है" सास की जोरदार आवाज़ गूँजी।
चटाक!!!! राज का जोरदार तेज थप्पड़ ऋतु के गाल पर पड़ा। गाल पे लाल लाल उँगलियो के निशान पड़ गए। आँखे पनिया गई।
चटाक!!!!!!! पहले से भी अधिक जोरदार और तेज थप्पड़ की कमरे में आवाज़ हुई। इस बार सबके सामने ऋतु का जोरदार थप्पड़ राज को पड़ा। ऐसा थप्पड़ कि राज को दिन में ही चाँद तारे ग्रह उपग्रह सब दिख गए।
"मुझे कमजोर लड़की न समझना मैं पढ़ी लिखी और अपने हक़ और अधिकार जानने वाली भारतीय आर्मी के मेजर की बेटी हूँ। किसी भी हाल में चरित्र उज्ज्वल रखना और गलत सहन नहीं करना दो बातें पापा ने सिखाई हैं। इसके बाद किसी ने मुझे किसी भी तरह से परेशान करने की कोशिश की तो फिजिकल, मेन्टल टॉर्चर और डोमेस्टिक वॉइलेन्स का केस डाल दूँगी। सासु माँ आपने बेटे को खूब पढ़ा लिखा कर बड़ा ऑफिसर तो बना दिया काश थोड़ा लड़कियों से बात करने की तमीज और उनकी इज़्ज़त करना भी सिखा देतीं।"
इसके बाद कुछ दिनों तक घर का माहौल काफी तनावपूर्ण रहने लगा। दीवारों में कान होने के कारण पड़ोसियों में भी इस नई बहू के बिगड़े तेवर की चर्चा होने लगी और पड़ोसियों की खुसर फुसर ने हवन में घी का काम किया। एक दिन पहले की आदर्श बहु अब बहुत बुरी बहु बन गयी थी।
इस घटना के कुछ दिन बाद राज अपने काम के सिलसिले में दो दिन के लिए दूसरे शहर गया हुआ था। उसके पिता जी भी गाँव के किसी रिश्तेदार की बीमारी की खबर सुनकर गाँव गए हुए थे। घर पर सिर्फ राज की माँ बहन रानी और ऋतु थीं।
माँ छत पर कपड़ा सूखने डालकर आ रही थीं कि अचानक पैर फिसलने से वह ऊपर की सीढ़ियों से लुढकते लुढकते नीचे आ गिरी। जोर से चिल्लाकर बेहोश हो गयी। सर फट गया और तेजी से खून बहने लगा। पैर फ्रैक्चर होकर थोड़ा मुड़ सा गया। रानी और ऋतु चीख सुनते ही दौड़ पड़े। रानी माँ को ऐसे हाल में देखकर नरवस हो गयी वो जोर-जोर से रोने लगी।
ऋतु ने संयम रखते हुए एकपल भी देर न करते हुए सबसे पहले एक साफ कपड़े से सर पर पट्टी बंधी इससे थोड़ा खून बहना कम हो गया फिर माँ को गोद में उठाकर कार की पिछली सीट पर लिटाया और रानी को बिठाकर सीधे हॉस्पिटल ले गयी।
हॉस्पिटल में तुरंत इमरजेंसी के सारे कागजात तैयार कर माँ को ICU में भर्ती कराया और तुरंत माँ के लिए अपना ब्लड डोनेट भी की। चोटें काफी गंभीर लगीं थी और ऋतु अकेले ही बहु की तरह नहीं बल्कि बेटे की तरह खाना पीना सोना जागना भूलकर सब काम कर रही थी।
रानी को माँ के पास बिठाकर कभी डॉक्टर से बात करती कभी दवाइयाँ लाती कभी रिपोर्ट पढ़ती। राज और उसके पापा को खबर कर दी गयी थी फिर भी उनलोगों के आने में नौ दस घंटे का समय लग गया था।  इन नौ घंटो में ऐसा लग रहा था जैसे ऋतु खुद यमराज से टक्कर लेने को तैयार थी।
सुबह हॉस्पिटल में जब माँ की आँख खुली तो देखा पैरों में प्लास्टर है सर पर पट्टी बंधी है सामने राज ऋतु को गले लगाए है। रानी और उसके पापा की आँखों में आँसू हैं और डॉक्टर बोल रहा है। थैंक्स मेरा नहीं इनका कीजिये जिन्होंने टाइम रहते हॉस्पिटल ले आये वरना हमारे हाथ भी कुछ संभव न था।
कल तक जिन आँखों में ऋतु के लिए नफरत था आज उन्ही आँखों में कृतज्ञता के भाव थे और सवकी आँखों से आँसू निकल रहे थे।

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