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कर्मों की दौलत

डॉ रश्मि दुबे


कड़वे बोलों की बोली से
जब जब दिल भर आता है।
तीर ज़ुबां का जब भी लगता
जख़्म नहीं भर पाता है।
घटता रिश्तों का मीठा पन
होते दिल भी दूर कहीं।
धीरे-धीरे जीवन में
दुर्दिन का साया आता है।
मर्यादा जो भूल गया हो
सीधे सच्चे रिश्तों की।
तन्हा रह कर वह इंसा
बस चोट जहां में खाता है।
क्या लेकर आया था मानव
क्या लेकर तू जाएगा।
कर्मों की दौलत ले इंसान
इस दुनिया से जाता है।
किस मद में तू चूर हुआ
यह दुनिया बिल्कुल नश्वर है।
किस से क्या उम्मीद करें
बस ईश्वर साथ निभाता है।

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