top of page

कांच का टुकड़ा

डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव

एक बार एक राज-महल में कामवाली बाई का लड़का खेल रहा था। खेलते-खेलते उसके हाथ में एक हीरा आ गया। वो दौड़ता दौड़ता अपनी माँ के पास ले गया। माँ ने देखा और समझ गयी कि ये हीरा है तो उसने झूठमुठ का बच्चे को कहा कि ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने उस हीरे को महल के बाहर फेंक दिया।
थोड़ी देर के बाद वो बाहर से हीरा उठा कर चली गयी। उसने उस हीरे को एक सुनार को दिखाया, सुनार ने भी यही कहा ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने भी बाहर फेंक दिया। वो औरत वहां से चली गयी। बाद में उस सुनार ने वो हीरा उठा लिया और जौहरी के पास गया और जौहरी को हीरा दिखाया।
जौहरी को पता चल गया कि ये तो एक नायाब हीरा है और उसकी नियत बिगड़ गयी। और उसने भी सुनार को कहा कि ये तो कांच का टुकड़ा है। उसने उठा के हीरे को बाहर फेंक दिया और बाहर गिरते ही वो हीरा टूट कर बिखर गया।
एक आदमी इस पूरे वाक्ये को देख रहा था। उसने जाके हीरे को पूछा, जब तुम्हें दो बार फेंका गया तब नहीं टूटे और तीसरी बार क्यों टूट गए?
हीरे ने जवाब दिया - ना वो औरत मेरी कीमत जानती थी और ना ही वो सुनार। मेरी सही कीमत वो जौहरी ही जानता था और उसने जानते हुए भी मेरी कीमत कांच की बना दी। बस मेरा दिल टूट गया और मैं टूट के बिखर गया।
इसी प्रकार, जब किसी इन्सान की सही कीमत जानते हुए भी लोग उसे नकार देते हैं तो वो इन्सान भी हीरे की तरह टूट जाता है और कभी आगे नहीं बढ़ पाता है।
इसलिये अगर आपके आसपास कोई इन्सान हो, वो अपने हुनर को निखारते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करता है तो उसका हौसला बढाओ। यह ना कर सको तो कम से कम हीरे को काँच बताकर तोड़ने का काम भी मत करो। हीरा स्वत: एक दिन अपनी जगह ले लेगा।

******

24 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page