मधु मधुमन
रीत कैसी ये जग में चलाई गयी,
नातवां पर ही उँगली उठाई गई,
भूल बेटे भी करते हैं अक्सर तो फिर,
क्यूँ बहू ही हमेशा सताई गयी।
एक धोबी के छोटे से शक़ पर फ़क़त,
जानकी को सज़ा क्यूँ सुनाई गई।
त्याग लक्ष्मण का सबने ही देखा मगर,
उर्मिला की तपस्या भुलाई गयी।
युद्ध तो कौरवों पांडवों में था फिर,
दाँव पर द्रौपदी क्यूँ लगाई गयी।
कृष्ण की प्रेम गाथाएँ गाते हैं सब,
रुक्मणी की व्यथा क्यूँ न गाई गई।
दोष तो इंद्र का था अनाचार में,
फिर अहिल्या क्यूँ पत्थर बनाई गई।
इम्तिहां की कसौटी पे ‘मधुमन‘ सदा,
एक नारी ही क्यूँ आज़माई गई?
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