top of page

क्या कुछ बदला

सन्दीप तोमर

 

क्या कुछ बदला
मेरे होने या न होने से
धरती आज भी उसी रफ्तार से घूम रही है
चाँद भी उसी तरह
अपनी चाँदनी बिखेर रहा है
ध्वल रोशनी कम नहीं हुई
तारे आज भी टिमटिमाते हैं
तुमने कहा था कि "तुम बदल गए"
माना कि हालात ने मुझे बदल दिया
परंतु--
एक मेरे बदलने से कितना अंतर आया (?)
प्रकृति के अपने नियम हैं
नियति का अपना चक्र है
ये किसी एक के बदलने या कि
नहीं बदलने से रुकता नहीं
इसी तरह व्यक्ति की भी
एक नियति है, एक प्रकृति है
उसके भी जीने का एक ढंग है
किसी एक के होने या न होने से
क्या फर्क पड़ता है
निवेदनार्थ-
मत रुकने देना मेरे बाद
अपनी चर्या को ही
तुम उसी शिद्दत से मुझे याद करना
जिस तरह मेरे होने पर
उमड़ते थे जज़्बात
मत रुकने देना उनका प्रवाह ही
ये जींवनोउल्लास
सम्भवतः जीवित रखेगा
तुम्हारे अंदर
एक जिजीविषा को।

******

1 view0 comments

Recent Posts

See All

Comentarios


bottom of page