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खाली कश्ती लाख थपेड़े

डॉ. जहांन सिंह “जहांन”

गरीबी और बेरोजगारी को लादे, जीवन में कुछ करने की तीव्र इच्छा लिये एक नौजवान कानपुर आता है। एक पिछड़े गाँव एवं अभाव में बीता बचपन जिसके लिए खुशियां सिर्फ एक शब्द मात्र थी। नौजवान के पास अगर कुछ पूंजी थी तो उसका आत्मविश्वास।  रेलगाड़ी ने कानपुर तो पहुँचा दिया। रेल पर बैठना भी उसके जीवन का पहला अनुभव था। लेकिन अब कहाँ जाये? एक बुजुर्ग ने सरसैया घाट पर स्थित धर्मशाला का पता दिया। पूछते-पूछते पैदल वह धर्मशाला पहुँच गया। आठ आने रोज पर एक अलमारी, एक चारपाई मिल गई। रात ठहरने का सहारा तो मिल गया पर थकान और भूख से बेहाल घाट की तरफ निकल पड़ा।
मंदिर में आरती हो रही थी। लोगों की लम्बी लाइन में वो भी खड़ा हो गया ये सोचकर कि प्रसाद बाँटा जा रहा है| पूड़ी, हलवा का एक दोना उसको भी मिल गया। अपर्याप्त पर, स्वादिष्ट भोजन काफी दिनों बाद प्राप्त हुआ था। आखिरी बार उसने झब्बू काका की तेहरवीं में मीठा खाया था। प्रसाद खाया पेट भर पानी पिया, चारपाई पर लेटा, पता नहीं चला कब सुबह हो गई। उसके जीवन में कानपुर एक ऐसा पड़ाव था जिसने उसकी जिन्दगी बदल दी। होमगार्ड बना, ट्रक चलाया, ट्यूशन पढ़ाई, बी.ए. एम.ए. और पी.एच.डी की। इसी नगर में शिक्षा के उच्च पायदान पर पहुंच कर सेवानिवृत हुए। नगर में रहते हुए वो मेरे मित्र बन गए। एक शाम हम लोग मोतीझींल पार्क में बैठे बीते दिनों की यादों में  खो गये। उन्होंने अपने शिक्षण काल की एक मार्मिक घटना का जिक्र किया, जो मानवीय अवमूल्यन की, स्वार्थ की, मनुष्य जाति की गिरावट की पराकाष्ठा थी। डा0 रमेश बताते हैं कि....“समाज में स्त्री एक कश्ती की तरह है। कितने थपेड़े, कितने साहिल, न जाने कितने नाविक, नदी की रोमांचित लहरें, तूफान और खतरे भरे टेढ़े-मेढ़े रास्त्रों से गुजरती है। जिसे सहारा देने को हाथ तो उठते हैं। पर कीमत पहले वसूली जाती है।
जब वो अपना शोघधकार्य डॉ, शर्मा के अंडर में कर रहे थे, तब डॉक्टर शर्मा के आचरण की जानकारी प्राप्त हुई। डॉ शर्मा अति सामान्य व्यक्ति, नाक, नक्सा में कोई तालमेल नहीं, पर हृदय मेँ सुन्दर स्त्रियों का आकर्षण और मौका मिलने पर तन, मन व धन से अबलोकन और साथ प्राप्त करने की अति तीव्र कामना रखते हैं। उनको जो जीवन संगिनी प्राप्त हुई वह सामान्य ग्रहणी तक ही सीमित थी। उन्होंने लोकाचार और जैविक आवश्यकताओं के हेतु तीन नई पौधों से घर का आंगन सुशोभित कर दिया। अब ग्रहणी से नज़र हटा कर नये सुन्दर पुष्पों की तलाश और तीव्र हो गई। अन्तताः अपनी एक शिष्या का शिकार कर डाला। गाँव की गौरइया मेट्रो के गौरिल्ला के हाथ लग गई।
गाँव की लड़की उच्च शिक्षा के लिये कानपुर आई। कॉलेज का पहला दिन डॉ. शर्मा की क्लास, बस फिर क्‍या था, उनकी खोजी आँखें आकर मधु पर टिक गई। पारखी नज़रे जैसे ही मधु से ठकराई। गाइड फिल्म का संवाद दिल में गुंजायमान हो गया “राजू तेरी मंजिल इन आँखों में है”। डॉ. शर्मा आनंदमयी हो जाते हैं। फिर क्या शर्मा जी के पुराने हथकंडे, extra classes, library books, private guidance in department etc. और स्पर्श चिकित्सा का उपचार अन्त में प्रथम श्रेणी में पास करवाने का वादा। सरल सहज मधु को फुसलाने में कामयाब।
मधु जैसी कोमल लता और शर्मा जैसा जड़ियल वृक्ष मनचाहा सहारा मिला तो लता लपेट में आ गई। सर जी ने बहुत लम्बा लपेटा बी.ए.,एम.ए, पी.एच.डी तक का साथ। शर्म त्याग कर डॉ. शर्मा प्यार के समर में उतर गये, कॉलेज की लज्जा छोड़कर घर में भी निर्लज्ज हो गये। अपनी पत्नी से मधु को बेसहारा बता कर अपने ही घर में रहने का इंतजाम कर दिया। मधु जब तक समझ पाती बहुत देर हो चुकी थी। अब वो चाहे-अनचाहे 'सर' जी पर निर्भर हो चुकी थी। गुपचुप तरीके से चिकित्सीय मदद द्वारा समस्या से छुटकारा तो मिलता रहा पर कश्ती भूल की कीमत दे चुकी और सर प्यार की पहली पगार ले चुके थे। खबर फैली-नौकरी छूटी, बोरिया बिस्तर बाँध कर कानपुर से विदा हो गये।
डॉ. शर्मा ने मेरठ के कॉलेज में नौकरी ज्वाइन 'कर ली। मधु के माँ-बाप को समझा कर अपने साथ एम.ए. की पढ़ाई के लिये मेरठ ले गये और अपने घर में ही निवास दे दिया। मधु की कश्ती कितने बार डूबी और उछली कितने तूफानों से गुजरी। 'सर' ने उसका रजिस्ट्रेशन भी अपने साथ करवा लिया और मधु समझौता कर चुकी थी। उसने निश्चय किया कि जीवन में एक मुकाम हासिल करके, समाज को जवाब दूँगी। वक्‍त ने उसे साहसी बना दिया, उसने पी.एच.डी. पूरी की। डॉ. शर्मा पूर्ण रूप से चुक गये थे। मधु अब डॉ. मधु हो गई थी। उसने कानपुर में शिक्षिका का पद ग्रहण कर लिया। डॉ. शर्मा विचलित हो गये | वो जानते थे पिंजरे का पंक्षी जब निकलता है तो बहुत दूर तक उड़ान भरता है और कभी-कभी वापस भी नहीं आता है।  डॉ. शर्मा ने उसका भी तोड़ निकाल लिया और अपने एक परिचित डॉ. लाल के घर में रहने का इंतजाम करवा दिया। एक तीर से दो शिकार। मधु सुरक्षित और उनको मिलने में भी कोई असुविधा नहीं।
सच्चाई यह थी कि डॉ. लाल को मधु और शर्मा के रिश्तों को समझने में देर नहीं लगी और वो भी बहती नदी में हाथ धोने को आतुर हो चले और फिर एक दिन बाँघ टूट गया। मधु को अपना कैरियर बनाना था, उसने तरीकों और रास्तों पर ध्यान देना बन्द कर दिया। वहाँ उसे फ्री खाना, रहना तथा बाहरी भेड़ियों से सुरक्षा मिली और वो वक्‍त से समझौता कर चुकी थी। विजय डॉ. लाल का बड़ा लड़का जवान, खूबसूरत कॉलेज में फुँटबाल का कैप्टन। उसने अपने पिता के बदलते आचरण पर निगाह रखना चालू कर दिया और एक दिन उसने वो सब देखा जिसका उसको भय था। मधु और विजय के बीच रेत से बनी दीवार को टूटने में ज्यादा वक्‍त नहीं लगा। विजय भी उस कश्ती पर सैर करने लगा।
मधु का जीवन तारीखों का कलेंडर बन गया। हर दिन कोई नया नाविक। डॉ. शर्मा को समझने में देर नहीं लगी कि अब चिड़िया भी घौसला बदलने मेँ प्रशिक्षित हो चुकी थी। उन्होंने आयोग से स्थाई नौकरी लगवाने की कोशिश की और सोचा कि अपने पास घर लेकर स्थापित कर देंगे। नौकरी आयोग के एक अधिकारी की निगाह पड़ी। मधु को उसकी नज़र पहचानने में देर न लगी। उसने सोचा कि बस एक और नाविक का नाम सूची में जोड़ना है। फिर क्या था अधिकारी फिसल कर 'कश्ती पर सवार हो चुका था। नौकरी स्थाई हो गई। मधु ने गर्भधारण कर लिया। अब समाज के अच्छे लोगों में सुमार होने वालों की इज्जत तार-तार होने कि कगार पर थी। किसका बच्चा पिताओं की लम्बी कतार। बस क्‍या था पुराने पापियों ने “बन्दर की बला तबेले के सर”। उसकी शादी विजय के साथ करा दी गई। तूफान तो थम गया पर डॉ. शर्मा, डॉ. लाल सब कुछ लुटाकर पश्चाताप की आग में जल रहे थे। विजय हताश, निराश, ड्रग्स का सहारा लेकर एक अंधेरी गली में भटक गया। जिसका रास्ता असामाजिक था, जो उसकी मृत्यु पर खत्म हो गया।
समय से बेहतर कोई शिक्षक नहीं होता है। अब ये कश्ती बहुत मजबूत हो चुकी थी और दरिया के मिजाज को परखने की काबिलियत रखती थी। अब वो पुराने बंधनों से मुक्त थी। मधु बैठक में सुबह की चाय पी रही थी। पोस्टमैन ने एक पत्र दिया। शिक्षा विभाग से सूचना थी कि उसका दूसरा प्रमोशन होना है। मधु जानती थी कि ये प्रमोशन कैसे लेना है। उसने विभाग के मंत्री जी से शाम को उनके बंगले में मिलने का समय ले लिया और संजीदा होकर सोच रही थी.. “खाली कश्ती लाख थपेड़े”।
डॉ. मधु सेवानिवृत्त होकर एक बंच्चों का स्कूल चला रही है और हर बच्चे खास तौर पर लड़कियों को उनकी एक सलाह जरूर रहती है- “अगर फिसलने से बचाना है तो पहले कदम पर ही सावधान हो जाना है।”

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