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खुशियों का सौदा

विनय कुमार मिश्रा

इस बड़े शहर में एक छोटा सा कॉस्मेटिक शॉप है मेरा। पति ने खोला था मेरे नाम पर। झुमकी श्रृंगार स्टोर। आज एक नया जोड़ा आया है मेरे दुकान पर। स्टाफ ने बताया कि सुबह से दूसरी बार आये हैं। एक कंगन इन्हें पसंद है पर इनके हिसाब से दाम ज्यादा है। इन्हें देख इस दुकान की नींव, मेरा वजूद, और अपनी कहानी याद आ गई। ऐसे ही शादी के बाद पहली बार हम एक मेले में साथ गए थे। मुझे काँच की चूड़ियों का एक सेट पसंद आया था। तब आठ रुपये की थी और हम ले ना पाए थे। ये बार-बार पाँच रुपये की बात करते मगर उसने देने से मना कर दिया। उन्हें मुझे वो चूड़ी ना दिलाने का अफसोस ज़िंदगी भर रहा था। क्यूंकि उस दिन मैं पहली बार उनके साथ मेले में गई थी और कुछ पसंद किया था। उसदिन इनके जेहन में इस दुकान की नींव पड़ गई थी। इतना प्रेम करते थे मुझसे कि फिर कभी कुछ माँगना ही ना पड़ा। मेरी खुशियों के लिए रातदिन एक कर दिया। ये सब याद कर मेरी गीली आँखे इनके फूल चढ़े तस्वीर की तरफ गई जिसके शीशे में ये जोड़ी नज़र आ रही थी।
"सर! सुबह ही कहा था कि हजार से कम नहीं होगा।"
"चलिये ना, कोई बात नहीं! फिर कभी ले लेंगे।" दोनों सीधे साधे गाँव के लग रहे थे बिलकुल जैसे हम थे। लड़की मेरी ही तरह स्थिति समझ रही है और लड़के में इनके जैसा उसे दिला देने की ललक और ज़िद्द। इस प्यार को मैं महसूस कर रही थी।
"एक बार और देख लीजिए ना अगर सात सौ तक भी..!"
"एक ही बात कितनी बार बोलूं सर, नहीं हो सकता।" जैसे मैं इनका हाथ लिए मेले के उस दुकान से वापस जा रही थी और ये मायूस हो कदम वापस ले रहे थे..ये जोड़ा भी दुकान से बढ़ने ही वाले थें।
"रुकिए आपलोग! कौन सा कंगन पसंद है।"
"ये गोल्डेन और रेड वाला मैम" स्टाफ ने कहा।
"इसपर तो कल ही फिफ्टी परसेंट डिस्काउंट लगाने को बोला था तुमको।"
"कब बोला था मैम?"
"अच्छा! लगता है मैं भूल गई थी। जी ये अब पाँच सौ का ही है, आप ले जाइए।" लड़के की खुशी देख मुझे महसूस हो रहा था कि उसदिन ये भी ऐसे ही खुश होते।
स्टाफ मुझे ऐसे देख रहा था जैसे आज पहली बार मैंने घाटे का सौदा किया हो। पर उसे क्या पता..
खुशियों का सौदा नहीं होता..!

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